धन, संतान और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए हर ब्रहस्पतिवार सुने भगवान विष्णु की ये पौराणिक कथा, वीडियो में जानिए इसके लाभ
यदि आपके जीवन में धन की कमी के साथ-साथ कई परेशानियां भी आ रही हैं तो आपको हर गुरुवार बृहस्पति देव की पूजा करनी चाहिए और व्रत कथा पढ़नी चाहिए। इससे आपके जीवन के सभी कष्ट दूर होंगे और कोई बाधा नहीं आएगी। गुरुवार व्रत, पूजा, कथा में कई ऐसी बातें बताई गई हैं जिन्हें व्यक्ति को ध्यान से करना चाहिए। जो व्यक्ति गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की भक्ति भाव से पूजा करता है और गुरुवार व्रत की कथा कहता और सुनता है, उसकी दरिद्रता और कष्ट भगवान विष्णु और बृहस्पति देव दूर करते हैं। गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। इसके बाद पूजा कक्ष में श्री हरि विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। फिर पीले रंग की धूप-पुष्प और अक्षत चढ़ाएं। इसके बाद चना-गुड़ और किशमिश का भोग लगाकर विधि-विधान से पूजा आरंभ करें। इसके बाद धर्मशास्त्रार्थतत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपारग। विविधार्थहरचिंत्य देवाचार्य नमोअस्तु ते। मंत्र का जाप करें। इसके बाद व्रत कथा पढ़ें। कथा पढ़ने के बाद केले के पेड़ पर जल चढ़ाएं।
गुरुवार व्रत कथा
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत गरीब था। उसके कोई संतान नहीं थी। उसकी पत्नी बहुत ही अपवित्र तरीके से रहती थी। वह स्नान नहीं करती थी, किसी देवता की पूजा नहीं करती थी। इससे ब्राह्मण देवता बहुत दुखी रहता था। बेचारा बहुत कुछ कहता था लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकलता था। भगवान की कृपा से ब्राह्मण की पत्नी ने एक कन्या के रूप में रत्न को जन्म दिया। जब वह कन्या बड़ी हुई तो वह सुबह स्नान करके भगवान विष्णु का नाम जपने लगी और गुरुवार को व्रत रखने लगी। जब वह अपनी पूजा समाप्त करके स्कूल जाती तो वह मुट्ठी में जौ लेकर जाती और स्कूल जाते समय रास्ते में उन्हें गिराती जाती। फिर लौटते समय वह इन सुनहरे जौ को उठाकर घर ले आती।
एक दिन वह कन्या छलनी में छानकर सुनहरे जौ साफ कर रही थी कि उसके पिता ने उसे देखकर कहा, बेटी सुनहरे जौ के लिए सोने की छलनी होनी चाहिए। अगले दिन गुरुवार था। लड़की ने व्रत रखा और बृहस्पतिदेव से प्रार्थना की और कहा कि यदि मैंने सच्चे मन से आपकी पूजा की है तो मुझे सोने की छलनी दीजिए। बृहस्पतिदेव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। प्रतिदिन की भांति लड़की जौ फैलाने गई। जब वह लौटकर जौ बीन रही थी तो बृहस्पतिदेव की कृपा से उसे एक सोने की छलनी मिली। वह उसे घर ले आई और उसमें जौ साफ करने लगी। परंतु उसकी मां का व्यवहार वैसा ही रहा। एक दिन लड़की सोने की छलनी में जौ साफ कर रही थी। उसी समय उस नगर का राजकुमार वहां से गुजरा। वह इस लड़की की सुंदरता और कार्य पर मोहित हो गया और घर आकर उसने अन्न-जल त्याग दिया और उदास होकर लेट गया। जब राजा को इस बात का पता चला तो वह अपने प्रधानमंत्री के साथ उसके पास गया और कहा- हे पुत्र, तुम्हें क्या कष्ट है? क्या किसी ने तुम्हारा अपमान किया है या कोई और कारण है, तो बताओ, मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो।
जब राजकुमार ने अपने पिता की बातें सुनीं तो उसने कहा- आपकी दयालुता के कारण मुझे किसी बात का दुःख नहीं है। किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है, परन्तु मैं उस कन्या से विवाह करना चाहता हूँ जो सोने की छलनी में जौ साफ कर रही थी। यह सुनकर राजा आश्चर्यचकित हो गया और बोला- हे पुत्र! तुम ऐसी किसी कन्या का पता लगाओ। मैं उससे तुम्हारा विवाह अवश्य करवाऊँगा। राजकुमार ने उस कन्या के घर का पता बताया। तब मंत्री उस कन्या के घर गया और ब्राह्मण देवता को सारी बात बताई। ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार से करने को तैयार हो गए और विधि-विधान के अनुसार ब्राह्मण की पुत्री का विवाह राजकुमार से हो गया। कन्या के घर से जाते ही उस ब्राह्मण देवता के घर में पहले की भाँति दरिद्रता रहने लगी। अब तो भोजन भी बड़ी कठिनाई से मिलता था। एक दिन दुखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गए। पुत्री ने अपने पिता की दुःखी दशा देखी और अपनी माता के बारे में पूछा। तब ब्राह्मण ने सारी बात बताई। कन्या ने अपने पिता को बहुत सारा धन देकर विदा किया। इस प्रकार ब्राह्मण ने कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत किया। कुछ दिन बीतने के बाद फिर वही स्थिति हुई। ब्राह्मण फिर अपनी पुत्री के घर गया और सारी बात बताई, तब कन्या बोली- हे पिता! अपनी माता को यहां ले आओ।
मैं उसे वह उपाय बताऊंगी, जिससे दरिद्रता दूर होगी। जब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ वहां पहुंचा तो वह अपनी मां को समझाने लगी- हे मां, तुम प्रातःकाल उठकर सबसे पहले भगवान विष्णु का पूजन करो, तो सारी दरिद्रता दूर हो जाएगी। परंतु उसकी मां ने एक भी बात नहीं सुनी और प्रातःकाल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों का जूठा खाना खा लिया। इससे उसकी पुत्री बहुत क्रोधित हुई और एक रात उसने कमरे से सारा सामान निकालकर अपनी मां को उसमें बंद कर दिया। प्रातःकाल जब उसे बाहर निकाला गया और स्नान कराकर पाठ कराया गया तो उसकी मां का मन ठीक हो गया और तब वह प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत करने लगी। इस व्रत के प्रभाव से उसके माता-पिता बहुत धनवान हो गए और उनके पुत्र हुए तथा बृहस्पतिजी के प्रभाव से उन्होंने इस लोक के सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त किया।