दुर्गा माता का यह चमत्कारी स्त्रोत के रोजाना पाठ से मिलती है सफलता, शांति और सुरक्षा, वीडियो में जानिए सही विधि और लाभ
धर्म ग्रंथों के अनुसार तीनों कालों के ज्ञाता महर्षि वेद व्यास ने मां दुर्गा स्तुति लिखी थी। उनकी दुर्गा स्तुति को भगवती स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि महर्षि वेद व्यास ने अपनी दिव्य दृष्टि से पहले ही देख लिया था कि कलियुग में धर्म का महत्व कम हो जाएगा। इसके कारण लोग नास्तिक, गैरजिम्मेदार हो जाएंगे और उनकी आयु अल्पायु होगी। इसके कारण उन्होंने वेदों को भी चार भागों में विभाजित कर दिया ताकि कम बुद्धि और कम स्मरण शक्ति वाले लोग भी वेदों का अध्ययन कर सकें। इन चार वेदों का नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रखा गया। इसी कारण व्यासजी वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने महाभारत की रचना भी की थी।
भगवान कृष्ण ने मां दुर्गा की आराधना में कहा था कि आप परब्रह्म का स्वरूप हैं, सत्य हैं, अनादि हैं और चिरंतन हैं। भक्तों पर कृपा करने के लिए आप शरीर धारण करती हैं और आप ही परम प्रकाश स्वरूप हैं। आप ही संपूर्ण का स्वरूप हैं, सबकी देवी हैं, सबकी आधार और पराशक्ति हैं, आप ही सभी बीजों का स्वरूप हैं, पूजनीय हैं और बिना किसी आधार के हैं। आप सर्वज्ञ हैं, सभी प्रकार से शुभ हैं और सभी मंगलों की मंगलमयी हैं। हे मां दुर्गा आपका स्वरूप इतना विशाल है कि उसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं है। लेकिन फिर भी भक्त आपको संसार के कण-कण में ढूंढ़ते हैं। मां दुर्गा की स्तुति करने के लिए संस्कृत श्लोक यानी दुर्गा स्तुति मंत्र पढ़ें
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थितः, या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थितः।
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थितः, नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः।।
ॐ अम्बायै नमः ।।
वैसे तो मां दुर्गा की स्तुति के लिए कई श्लोकों की रचना की गई है और अलग-अलग रूपों में उनकी स्तुति भी की जाती है। लेकिन यहां हम सबसे प्रसिद्ध दुर्गा स्तुति के बारे में जानते हैं।
जय भगवति देवी नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवी नरार्तिहरे॥1॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवी पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥
जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥
जय देवी समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥

