नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी पर बिहार की सियासत गरमाई, राजद-BJP की प्रतिक्रियाएं आईं सामने
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज रविवार 23 मार्च को इफ्तार पार्टी का आयोजन किया है। हर साल वे रमजान के महीने में इफ्तार पार्टी का आयोजन करते हैं, लेकिन इस बार अलग नजारा देखने को मिला। दरअसल, इस बार मुसलमानों ने नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार करने का ऐलान किया है।
इमारत-ए-शरिया ने एक पत्र प्रकाशित कर नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी पर अपना विरोध जताया। यह बहिष्कार इसलिए हुआ क्योंकि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन किया है, जबकि मुस्लिम संगठन इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं।
बहिष्कार पर आरजेडी और भाजपा की प्रतिक्रिया
यही कारण है कि इस साल नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी को लेकर राजनीति गरमा गई है। राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता ऐजाज अहमद ने बयान जारी कर कहा कि जनता दल यूनाइटेड, लोजपा रामविलास और टीडीपी केंद्र सरकार के समर्थन में खड़ी हैं, जिससे मुसलमानों के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। वक्फ संशोधन विधेयक मुसलमानों की धार्मिक परंपरा, धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान की प्रस्तावना के खिलाफ है।
इस बीच, बिहार भाजपा प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने कहा कि मुस्लिम संगठनों द्वारा इफ्तार पार्टी का बहिष्कार करने का फैसला निंदनीय है। जब मुस्लिम संगठनों ने बहिष्कार का फैसला किया तो इसका प्रचार राजद द्वारा किया जा रहा था। वक्फ बोर्ड की करोड़ों रुपए की संपत्ति की सुरक्षा के लिए वक्फ संशोधन विधेयक लाया गया है। इस संपत्ति पर अवैध कब्जे की शिकायतें लंबे समय से आ रही थीं।
पत्र में क्या लिखा था?
इमारत शरिया ने पत्र में लिखा है कि 23 मार्च को होने वाली नीतीश कुमार सरकार की इफ्तार पार्टी में शामिल नहीं होने का फैसला किया गया है। संगठन इस पार्टी का बहिष्कार करता है। यह निर्णय इस बात को ध्यान में रखते हुए लिया गया है कि नीतीश कुमार ने वक्फ विधेयक का समर्थन किया है। इस विधेयक के लागू होने से मुसलमानों का आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ापन और बढ़ जाएगा।
नीतीश कुमार सरकार धर्मनिरपेक्ष शासन का वादा करके सत्ता में आई थी। नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा का वादा किया था, लेकिन भाजपा के साथ उनका गठबंधन और विधेयक का समर्थन असंवैधानिक और अतार्किक है। यह नीतीश कुमार द्वारा किये गये वादों के खिलाफ है, इसलिए अब नीतीश कुमार पर कोई भरोसा नहीं है कि वह अल्पसंख्यकों के लिए कुछ करेंगे।