Samachar Nama
×

इंसान ही नहीं जानवरों के जाने पर भी है पाबंदी, 100 साल से वीरान पड़ा है इस देश का एक इलाका

दुनिया ने जब कोरोना वायरस की महामारी देखी, तो मानो पूरी सभ्यता हिल गई। लेकिन यह पहला मौका नहीं था जब मानवता को किसी महामारी या भीषण संकट का सामना करना पड़ा। इतिहास गवाह है कि बीमारियों और युद्धों ने कई बार मानव सभ्यता को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है। ऐसी ही एक दुखद कहानी छुपी है फ्रांस के एक गांव में, जिसका नाम है 'ज़ोन रोग' (Zone Rouge)
यह गांव पिछले 100 वर्षों से वीरान पड़ा है। यहां न इंसान रह सकते हैं और न ही जानवरों को जाने दिया जाता है। वजह इतनी खतरनाक है कि जानकर रोंगटे खड़े हो जाएं।

कहां है 'ज़ोन रोग' और क्यों है यह खास?

'ज़ोन रोग' फ्रांस के उत्तर-पूर्वी इलाके में स्थित है। यह इलाका कभी हरा-भरा था, जहां नौ छोटे-छोटे गांवों में लोग खेती करते थे और सामान्य जीवन जीते थे।
लेकिन प्रथम विश्व युद्ध (World War I) के दौरान यह इलाका तबाही की एक ऐसी मिसाल बन गया, जिसे इंसानी सभ्यता कभी नहीं भूल सकती। युद्ध में हुई भारी बमबारी, तोपों की गोलियां, और रासायनिक हथियारों के कारण पूरा इलाका मौत के कुएं में तब्दील हो गया।

युद्ध के जख्म, जो आज भी हरे हैं

जब 1914 से 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध चला, उस दौरान इस इलाके पर जर्मनी और फ्रांस की सेनाओं के बीच भीषण संघर्ष हुआ।
कहा जाता है कि यहां इतनी भारी मात्रा में गोला-बारूद का इस्तेमाल हुआ कि पूरा इलाका बारूद, लाशों और जहरीली गैसों से भर गया। युद्ध के बाद यहां मिट्टी में रसायन, पानी में आर्सेनिक, और हवा में जहरीली गैसों की भरमार हो गई।
इस जगह को साफ करना लगभग असंभव माना जाता है। फ्रांस की सरकार ने इसे 'रेड ज़ोन' (Zone Rouge) घोषित कर दिया, जिसका मतलब है कि यह इलाका मानव जीवन के लिए घातक है।
यहां जगह-जगह 'No Entry' और 'Danger Zone' के साइन बोर्ड लगे हुए हैं। इस इलाके में जाना तो दूर, आसपास खेती करना भी मना है।

क्यों है ज़ोन रोग इतना खतरनाक?

साल 2004 में कुछ वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की एक टीम ने यहां की मिट्टी और पानी का परीक्षण किया। नतीजे हैरान कर देने वाले थे।
यहां की मिट्टी में पाया गया आर्सेनिक (Arsenic) इतना खतरनाक था कि इसकी थोड़ी सी मात्रा भी किसी इंसान के शरीर में चली जाए तो कुछ ही घंटों में मौत हो सकती है।
इसके अलावा सीसा (Lead), मर्करी (Mercury) और कई कार्सिनोजेनिक (Cancer-causing) रसायन पाए गए। नतीजतन, यह इलाका अब भी रेड ज़ोन ही है और यहां किसी भी तरह की मानव गतिविधि वर्जित है।
सरकार ने इस जगह को Disease Zone भी करार दिया है, यानी एक ऐसा इलाका जहां बीमारी और मौत दोनों का खतरा बना हुआ है।

🖼️ AI Image 4

डिटेल्स: वैज्ञानिक सुरक्षा सूट पहनकर मिट्टी के सैंपल इकट्ठा कर रहे हैं।
कैप्शन: 2004 में वैज्ञानिकों ने ज़ोन रोग की मिट्टी की जांच की, जिसमें घातक आर्सेनिक मिला।

क्या सच में यहां भूत-प्रेत भी हैं?

ज़ोन रोग को लेकर स्थानीय लोगों में कई अंधविश्वास और भूत-प्रेत की कहानियां भी प्रचलित हैं।
कहा जाता है कि प्रथम विश्व युद्ध में जो सैनिक मारे गए, उनकी आत्माएं अब भी यहां भटकती हैं। रात के समय यहां अजीब-अजीब आवाजें, चीख-पुकार, और भूतिया गतिविधियों की रिपोर्टें मिलती रही हैं।
हालांकि वैज्ञानिक इस बात को मनोवैज्ञानिक प्रभाव या फिर पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव के कारण होने वाली प्राकृतिक ध्वनियों का असर बताते हैं। लेकिन गांव के लोग आज भी इसे भूतहा गांव मानते हैं और कोई भी इसके पास जाने की हिम्मत नहीं करता।

क्या कोई उम्मीद बाकी है?

प्रथम विश्व युद्ध में बर्बाद हुए नौ गांवों में से केवल दो गांवों का आंशिक रूप से पुनर्निर्माण किया गया है।
लेकिन बाकी के छह गांव आज भी पूरी तरह से निर्जन और वीरान पड़े हैं। फ्रांस की सरकार इन गांवों को स्मारक और युद्ध संग्रहालय में बदलने पर विचार कर रही है, ताकि भविष्य की पीढ़ियों को युद्ध की विभीषिका का अहसास कराया जा सके।
कुछ हिस्सों में अब भी सेना और शोधकर्ता ही जा सकते हैं, वो भी सिर्फ विशेष सुरक्षा उपकरणों के साथ।

निष्कर्ष: इतिहास का दर्दनाक सबक

'ज़ोन रोग' सिर्फ एक वीरान गांव नहीं है, बल्कि यह उस दौर की कहानी है जब युद्ध ने मानवता को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
यह इलाका आज भी इंसानी जिद और युद्ध की भयावहता का जीता-जागता उदाहरण है।
जहां एक ओर आधुनिक तकनीक और विज्ञान ने नई ऊंचाइयों को छू लिया है, वहीं दूसरी ओर यह जगह हमें यह याद दिलाती है कि युद्ध कभी किसी समस्या का हल नहीं हो सकता
ज़ोन रोग का यह रेड ज़ोन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक चेतावनी है कि धरती पर जीवन की सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए

Share this story

Tags