Jaipur की 65 साल पुरानी मखमली गजक, एक सीजन में कर लेती है 50 करोड़ से ज्यादा का कारोबार
जयपुर न्यूज़ डेस्क, देश के अलग-अलग शहरों में गजक का स्वाद और स्वरूप दोनों बदल जाते हैं, लेकिन जयपुर में करीब 65 साल पहले शुरू हुआ इसका स्वाद आज भी बरकरार है। जयपुर के परकोटा से निकलकर इस जायके की महक यूएस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया में बैठे राजस्थानियों तक भी पहुंचने लगी है। सर्दियों के 4 महीने में इसकी डिमांड 10 गुना बढ़ जाती है। गुड़, मूंगफली या तिल और देशी घी में जब मखमली गजक तैयार होती है तो इसकी महक से ही खाने को मन ललचाता है। राजस्थानी जायका की इस कड़ी में आपको ले चलते हैं जयपुर की फेमस गजक के जायके के सफर पर।
राजघरानों के समय से ही गजक सर्दियों के खान-पान का हिस्सा रही है। राजा अपने सैनिकों को गुड़, चना और तिल खाने के लिए दिया करते थे, ताकि उनके शरीर में जिंक, कैल्शियम, आयरन और विटामिन बी की कमी न हो। तिल की तासीर गर्म होती है, इसलिए इसे गुड़ के साथ संतुलित मात्रा में ही खाया जाता था। धीरे-धीरे इसी खानपान ने गजक का रूप लिया। ताकि तिल और गुड़ का मिश्रण एकदम बैलेंस रहे।
जयपुर परकोटा (चारदीवारी क्षेत्र) में गजक की सबसे पुरानी दुकानें बोरड़ियों का रास्ता, किशनपोल बाजार में लगा करती थी। इन्हीं दुकानों में नानकराम प्रमुख थे, लेकिन गजक केवल जयपुर तक ही सीमित था। तब दो भाइयों ईश्वरजी और नारायणजी ने उनसे गजक बनाने का तरीका सीखा। उस जमाने में गजक की इतनी वैरायटी भी नहीं मिलती थी। धीरे-धीरे दोनों भाइयों ने कई प्रयोग किए।
ईश्वर चंद ने 1956 में अपनी दुकान खोली और गजक की कई सारी वैरायटी लेकर आए। ताजा बनी गजक का स्वाद लोगों की जुबां पर चढ़ने लगा। धीरे-धीरे इस जायके को दूसरे कारीगरों ने भी सीखा। आज जयपुर में करीब 150 से 200 छोटी-बड़ी दुकानों पर गजक का कारोबार होता है।
गजक खाने में जितनी स्वादिष्ट होती है, इसे बनाने में भी उतनी ही मेहनत लगती है। खासतौर पर तिल की गजक में। तिल को जमीन पर बैठकर घंटों तक कूटा जाता है। फिर तिल और गुड़ के टुकड़ों को हल्की गर्म कढ़ाई में तब तक फेंटा जाता है, जब तक दोनों मिक्स न हो जाएं। बाद में इसके छोटे-छोटे लोए बनाकर लकड़ी के हथौड़े से कूटा जाता है। जिसके के बाद गजक को तीन फोल्ड देकर थाली में जमने के लिए देते हैं। इसके बाद इन्हें डिब्बों में पैक कर दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में 12 से 15 घंटे का समय लगता है।
जैसे ही सर्दी चरम पर होती है, गजक की डिमांड बढ़ जाती है। गजक की दुकानों पर खरीदने वालों की भीड़ उमड़ती है। ताजा बनी गरमा गरम गजक के दीवाने भी बहुत हैं। लोग गरम गजक के लिए गोदाम तक पहुंच जाते हैं। जयपुर में करीब 25 से 30 बड़ी दुकानें हैं। इनमें चार से पांच कारोबारी तो अपने आप में ब्रांड हैं। इनमें ईश्वर जी, नारायण जी, अग्रवाल सहित कई फेमस गजक के ब्रांड हैं। वहीं करीब 120 से 150 के बीच छोटी दुकानें भी हैं। बड़ी दुकानों पर सीजन में गजक की रोजाना खपत करीब 40 किलो है। वहीं सामान्य दुकानों पर 20 से 25 किलो की बिक्री होती है। देशी घी में बनी एक किलो गजक के दाम 450 रुपए से शुरू होते हैं। वहीं साधारण गजक 300 रुपए किलो से शुरू होती है।
एक अनुमान के मुताबिक सर्दी के 3 महीने में गजक का कारोबार 50 करोड़ से भी ज्यादा का है। बड़ी दुकानों पर रोज की औसत बिक्री 1200 किलो से ज्यादा है। जबकि छोटी दुकानों पर कुल बिक्री 30 क्विंटल से ज्यादा है। गजक से जयपुर में करीब 2500 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल रहा है।
वैसे तो तिल और मूंगफली की गजक गुड़ व देशी घी में तैयार होती है, लेकिन जायका बढ़ाने के लिए ड्राई फ्रूट मिक्स किए जाते हैं। मार्केट में मूंगफली गजक, गुड गजक, तिल शकरी, मलाई गजक, समोसा गजक, चमचम, क्रंची लड्डू, ड्राई फ्रूट गजक, गोल चिक्की, चॉकलेट गजक, मैंगो गजक, चॉकलेट रेवड़ी, मैंगो रेवड़ी जैसी 20 से ज्यादा वैरायटी उपलब्ध हैं। देशी घी में बनी गजक कई दिनों तक खराब नहीं होती। इसलिए विदेशों में बैठे राजस्थानी अपने साथ इसे लेकर जाते हैं।
आयुष चिकित्सक की मानें तो छोटा-सा दिखने वाला तिल बहुत से गुणों की खान है। ये हाई ब्लड-प्रेशर को कंट्रोल करता है। दिल की बीमारियों के लिए भी फायदेमंद है। इसमें कैंसर-रोधी ऐंटी-ऑक्सिडेंट मिलते हैं। इसके अलावा डिप्रेशन, खून की कमी जैसी समस्याओं से भी निजात मिलती है। गुड के साथ इसका मिश्रण और भी गुणकारी हो जाता है। गजक को सर्दियों का टॉनिक भी कहा जाता है।
राजस्थान न्यूज़ डेस्क !!!