भारी विरोध के बीच सरदार वल्लभभाई पटेल वन्यजीव अभयारण्य की प्रक्रिया स्थगित, बाघ कॉरिडोर को झटका

सरकार द्वारा सीहोर और देवास वन मंडल की सीमा पर प्रस्तावित "सरदार वल्लभभाई पटेल वन्यजीव अभयारण्य" के गठन की प्रक्रिया पर भारी विरोध के चलते रोक लगा दी गई है। यह प्रस्तावित अभयारण्य देवास के खिवनी वन्यजीव अभयारण्य और डॉ. विष्णु वाकणकर टाइगर रिजर्व (पूर्व में रातापानी टाइगर रिजर्व) के बीच प्राकृतिक बाघ कॉरिडोर को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से लाया गया था।
क्या था प्रस्ताव?
वन विभाग की योजना थी कि बढ़ती बाघों की आबादी और पुराने भोपाल-देवास टाइगर कॉरिडोर को फिर से सक्रिय बनाया जाए, जिससे वन्यजीवों खासकर बाघों की आवाजाही सुरक्षित और सुविधाजनक हो सके। इस प्रस्ताव के तहत लगभग सीहोर और देवास जिलों की सीमावर्ती वन भूमि को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाना था।
क्यों हुआ विरोध?
प्रस्तावित अभयारण्य क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों और किसानों ने भारी विरोध किया। उनका कहना था कि यदि यह क्षेत्र अभयारण्य घोषित होता है तो
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खेती-किसानी पर असर पड़ेगा,
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वन अधिनियमों के तहत भूमि पर प्रतिबंध बढ़ जाएंगे,
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और स्थानीय निवासियों की आजीविका पर संकट खड़ा हो सकता है।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों, सरपंच संघों और सामाजिक संगठनों ने भी इस कदम का जनहित में विरोध करते हुए ज्ञापन सौंपा और धरना-प्रदर्शन किए।
सरकार का फैसला
सरकार ने जनभावनाओं और क्षेत्रीय विकास के संतुलन को ध्यान में रखते हुए, फिलहाल इस योजना को स्थगित करने का निर्णय लिया है। वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक,
"स्थिति का पुनः मूल्यांकन कर आगे की रणनीति तय की जाएगी।"
बाघ कॉरिडोर को झटका
इस निर्णय से भोपाल-देवास टाइगर कॉरिडोर को पुनर्जीवित करने की दिशा में चल रही कवायद को गंभीर झटका लगा है। पर्यावरणविदों का कहना है कि बाघों के सुरक्षित आवागमन के लिए यह कॉरिडोर अत्यंत आवश्यक है। यदि यह योजना पूरी होती तो यह मध्य प्रदेश के वन्यजीव संरक्षण नेटवर्क को मजबूत कर सकती थी।
विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि बाघों की बढ़ती आबादी के मद्देनज़र नए गलियारों और सुरक्षित आवास क्षेत्रों की आवश्यकता है। हालांकि, यह भी ज़रूरी है कि स्थानीय समुदायों की आजीविका को नुकसान न पहुंचे।