इन पांच Points में समझें उद्धव और राज की जुगलबंदी एक-दूसरे को राजनीति में क्या कुछ नया दे सकती है?
महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे बंधुओं की राजनीति लगातार चर्चा का केंद्र रही है। कभी उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने की बात कही जाती है, तो कभी उद्धव का भाजपा की ओर झुकाव देखा जाता है। इन्हीं अटकलों के बीच मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने 'मातोश्री' जाकर शिवसेना (यूबीटी) अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को जन्मदिन की बधाई दी। उद्धव ठाकरे के 65वें जन्मदिन पर राज ठाकरे के मातोश्री पहुंचकर उन्हें गले लगाकर बधाई देने के राजनीतिक मायने तलाशे जाने लगे हैं।
'मातोश्री' न केवल उद्धव ठाकरे का घर है, बल्कि ठाकरे परिवार और शिवसेना की राजनीति का भी प्रतीक है। ऐसे में राज ठाकरे लगभग छह साल बाद 'मातोश्री' पहुँचे। राज ठाकरे का मातोश्री जाना न केवल पारिवारिक एकता का प्रतीक है, बल्कि बालासाहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास भी है।
ठाकरे बंधुओं की यह मुलाकात न केवल ठाकरे परिवार का पुनर्मिलन है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में बदलाव का संकेत भी है। इन दिनों जिस तरह से उद्धव-राज के बीच सियासी जुगलबंदी देखने को मिल रही है, उससे यह सवाल लगातार उठ रहा है कि अगर उद्धव और राज ठाकरे साथ आते हैं, तो राजनीतिक रूप से एक-दूसरे के लिए कितने फायदेमंद होंगे?
उद्धव-राज ठाकरे शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे और बेटे उद्धव ठाकरे ने राजनीति में कदम रखा, कितनी दूर, कितनी नज़दीकी। एक समय राज ठाकरे को बाला साहेब का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन जब उन्होंने उद्धव ठाकरे को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया, तो राज ने 2005 में शिवसेना से दूरी बना ली और 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। इसके बाद उद्धव और राज की राजनीतिक राहें अलग हो गईं।
2024 के विधानसभा चुनाव में 'ठाकरे ब्रांड' को सबसे बड़ा झटका लगा। राज ठाकरे खाता भी नहीं खोल पाए और शिवसेना की राजनीति पर कब्ज़ा जमाए एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे को हरा दिया। इसके बाद ठाकरे बंधुओं के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने लगी। उद्धव और राज एक-दूसरे से मिलने लगे। दोनों नेता सात महीने में सात बार किसी न किसी बहाने मिले और एकता के राजनीतिक संदेश देने लगे।
मराठी अस्मिता और हिंदी के दो दशकों के विरोध के बाद 5 जुलाई को उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक साथ आए। उस समय उद्धव ठाकरे ने ऐलान किया था कि वे साथ आए हैं, साथ रहेंगे। इसके बाद ही दोनों के बीच राजनीतिक जोड़-तोड़ देखने को मिली, लेकिन राज ठाकरे का मातोश्री जाकर उद्धव ठाकरे को जन्मदिन की बधाई देना आम बात नहीं है। अगर बीएमसी चुनाव से पहले राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे हाथ मिलाते हैं, तो महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
क्या उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के महाराष्ट्र में आने से ठाकरे ब्रांड को मजबूती मिलेगी, 'ब्रांड ठाकरे' को सबसे बड़ा फायदा मिलेगा। 2024 के विधानसभा चुनाव में उद्धव और राज को बड़ा झटका लगा था। ऐसे में अगर दोनों भाई साथ आते हैं, तो ब्रांड ठाकरे की खोई हुई राजनीतिक स्थिति को फिर से स्थापित करने का मौका होगा, इससे शिवसेना की 'पुरानी ताकत' वापस आ सकती है।
उद्धव-राज का साथ आना बाल ठाकरे की विरासत की वापसी के लिए भी अहम होगा। अगर दोनों साथ आते हैं, तो यह न केवल एक राजनीतिक गठबंधन होगा, बल्कि पारिवारिक एकता और ठाकरे राजनीति की प्रतीकात्मक वापसी भी होगी। यानी बाल ठाकरे की असली विरासत फिर से एक हो गई है, जो शिंदे की राजनीति के लिए एक बड़ा झटका होगा।
उद्धव ठाकरे की शिवसेना और राज ठाकरे की मनसे अलग होकर कमज़ोर हो गई हैं। अगर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक-दूसरे के गिले-शिकवे भुलाकर साथ आते हैं, तो इसका असर महाराष्ट्र की राजनीति पर ज़रूर पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आर्थिक रूप से समृद्ध बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनावों को ध्यान में रखते हुए, राज ठाकरे के नेतृत्व वाली मनसे और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के बीच आगामी नगर निगम चुनावों में मतभेद खत्म होने की संभावना है।
उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के लिए बीएमसी चुनाव जीतना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे, दोनों ही बाल ठाकरे की विरासत के लिए होड़ में हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में एकनाथ शिंदे की पार्टी ने उद्धव ठाकरे की पार्टी से ज़्यादा सीटें और ज़्यादा वोट प्रतिशत हासिल किया था। ऐसे में अगर उद्धव-राज साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो यह दोनों के लिए राजनीतिक रूप से फ़ायदेमंद होगा, क्योंकि दोनों ही पार्टियों का शहरी इलाकों में राजनीतिक आधार है।
बाल ठाकरे की विरासत का लाभ उठाते हुए, महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करके एकनाथ शिंदे पहले से ही मज़बूत हैं, लेकिन बीएमसी चुनावों में अच्छे प्रदर्शन से बालासाहेब की विरासत पर एकनाथ शिंदे का दावा और मज़बूत होगा। साथ ही, अगर उद्धव ठाकरे की पार्टी बीएमसी चुनावों में भी हार जाती है, तो यह उन्हें मौजूदा स्थिति से और भी पीछे धकेल देगा। राज ठाकरे मातोश्री पहुँच चुके हैं और दोनों भाई करीब आ रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक अटकलें तेज़ हैं और कयास लगाए जा रहे हैं कि यह नज़दीकी राजनीतिक नज़दीकी में बदल सकती है।
बीएमसी चुनावों को लेकर दोनों के बीच गठबंधन हुआ था और दोनों ने बीएमसी चुनाव साथ लड़ा था। अगर मराठी वोट एक साथ आते हैं, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के मतदाता एक साथ आते हैं, तो इसका सीधा असर एकनाथ शिंदे की राजनीति पर पड़ेगा। उद्धव और राज ठाकरे के आने से कयास लगाए जा रहे हैं कि मराठी वोट दोनों भाइयों की बजाय एकनाथ शिंदे को मिलेंगे। इस तरह बालसाहेब की विरासत पर फिर से ठाकरे बंधुओं का कब्ज़ा हो जाएगा।
राज-उद्धव दोनों को महाराष्ट्र से राजनीतिक लाभ मिला।
यास में उद्धव और राज ठाकरे अलग-अलग चुनावी किस्मत आजमाकर अपनी राजनीतिक बर्बादी देख चुके हैं। राज ठाकरे अपने पहले चुनाव को छोड़कर किसी भी अन्य चुनाव में कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए। 2024 में राज ठाकरे की पार्टी का खाता भी नहीं खुला और उनके बेटे अमित ठाकरे भी जीत हासिल नहीं कर पाए। वहीं, एकनाथ शिंदे के अलग होने के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) को करारा झटका लगा है। ऐसे में अगर उद्धव-राज ठाकरे साथ आते हैं, तो दोनों भाइयों को राजनीतिक फायदा होने की संभावना है।
राज ठाकरे का राजनीतिक रुख और बोलने का अंदाज युवा मतदाताओं को आकर्षित करता है, जबकि उद्धव ठाकरे की छवि एक 'उदारवादी और परिपक्व' नेता की है। ऐसे में दोनों की एकता शहरी और युवा मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है। मराठी वोट बैंक फिर से एकजुट हो सकता है। हिंदुत्व और मराठी अस्मिता की पुरानी ताकत तेजी से लौट सकती है। राज ठाकरे 2024 से ही भाजपा के करीब हैं और अगर वह उद्धव के साथ आते हैं तो यह भाजपा के लिए एक बड़ा झटका माना जाएगा।
महाराष्ट्र में राजनीतिक केमिस्ट्री बदलेगी। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने से महाराष्ट्र के ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, पुणे, नवी मुंबई, नासिक, छत्रपति संभाजीनगर इलाकों में राजनीतिक असर पड़ सकता है। राज ठाकरे के अलग होने और शिंदे की बगावत ने उद्धव ठाकरे की राजनीतिक पकड़ को कमज़ोर कर दिया है। ऐसे में राज ठाकरे के आने से शिंदे की कमी दूर होगी और उद्धव ठाकरे को मुंबई-पुणे-ठाणे बेल्ट में फिर से मजबूती मिल सकती है।
हिंदुत्व और मराठी अस्मिता के मोर्चे पर उद्धव-राज ठाकरे की जोड़ी को भाजपा से सीधी टक्कर के तौर पर देखा जा सकता है। 2024 में राज ठाकरे की पार्टी को राजनीतिक तौर पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ, बल्कि मराठी एकता को भारी नुकसान हुआ।
उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे के प्रस्ताव पर सहमति जताई है। उन्होंने दृढ़ता से एक कदम आगे बढ़ाते हुए कहा है कि अगर छोटा-मोटा विवाद भी हो, तो मैं महाराष्ट्र के हित में साथ मिलकर काम करने को तैयार हूँ। इस तरह राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच दोस्ती की पटकथा लिखी जा रही है, जो राज्य की राजनीति बदल सकती है।

