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मशहूर उर्दू साहित्यकार Salam Bin Razzaq के निधन से साहित्य जगत में छाए गम के बादल, यहां जानें इनके बारे में सबकुछ

साहित्य की दुनिया के मशहूर उर्दू लेखक सलाम बिन रज्जाक के बारे में एक चौंकाने वाली खबर है कि उनका लंबी बीमारी के बाद नवी मुंबई में निधन हो गया है। उन्होंने 83 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके निधन की खबर आते ही साहित्य जगत....
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मुंबई न्यूज डेस्क !!! साहित्य की दुनिया के मशहूर उर्दू लेखक सलाम बिन रज्जाक के बारे में एक चौंकाने वाली खबर है कि उनका लंबी बीमारी के बाद नवी मुंबई में निधन हो गया है। उन्होंने 83 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके निधन की खबर आते ही साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गयी. बता दें कि सलाम बिन रज्जाक के निधन की जानकारी उनके करीबी दोस्त ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए दी है, जिसके बाद फैंस उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

सलाम बिन रज्जाक कौन थे?

1941 में रायगढ़ जिले के पनवेल में जन्मे सलाम बिन रज्जाक एक प्रसिद्ध उर्दू लेखक थे, जिनका असली नाम शेख अब्दुल सलाम अब्दुर रज्जाक था। मशहूर छंदों की वजह से उन्हें असली पहचान मिली. इसके अलावा उनकी चार दर्जन से ज्यादा कहानियां ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित हो चुकी हैं. उनके आकस्मिक निधन से साहित्य जगत को बड़ा झटका लगा है। बता दें कि उर्दू लेखक सलाम बिन रज्जाक अपने पीछे पत्नी, दो बच्चे और कई पोते-पोतियां छोड़ गए हैं। इस दुख की घड़ी में परिवार सदमे में है. सलाम बिन रज्जाक को परिवार और दोस्तों की मौजूदगी में मुंबई के मरीन लाइन्स कब्रिस्तान में दफनाया गया।

अनेक कहानियाँ रचीं

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उर्दू लेखक सलाम बिन रज्जाक ने कई कहानियों की रचना की है। उन्हें 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें मशहूर कहानी संग्रह 'शिकस्त बातों के दरमियां' के लिए दिया गया। इसके अलावा उन्हें गालिब पुरस्कार, महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर उनकी जबरदस्त फैन फॉलोइंग थी.

सलाम बिन रज्जाक की साहित्यिक कृतियों में 'नागी दूधा का सिपाही', 'मुदब्बिर' और 'जिंदगी अफसाना नहीं' प्रमुख हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने नवी मुंबई के एक नगर निगम स्कूल में शिक्षक के रूप में भी योगदान दिया। उन्होंने कई मराठी कहानियों का उर्दू में अनुवाद किया। उनके निधन से उर्दू साहित्य जगत में एक युग का अंत हो गया।

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