मालेगांव विस्फोट मामले में असदुद्दीन ओवैसी का हमला – "घटिया जांच के कारण बरी हुए आरोपी, मुस्लिमों को धर्म के आधार पर बनाया गया निशाना"
मालेगांव विस्फोट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत द्वारा सभी आरोपियों को बरी किए जाने के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया का दौर तेज हो गया है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने गुरुवार को इस फैसले को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि यह फैसला "जानबूझकर की गई घटिया जांच" का नतीजा है और इससे देश के न्यायिक तंत्र पर सवाल उठते हैं।
ओवैसी ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "मालेगांव धमाकों में छह नमाजी मारे गए थे और करीब 100 लोग घायल हुए थे। इसके बावजूद सभी आरोपी बरी हो गए। क्यों? क्योंकि जानबूझकर मामले की घटिया जांच की गई।"
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि इस घटना में मुस्लिम समुदाय को धर्म के आधार पर निशाना बनाया गया था। ओवैसी ने लिखा, "इन लोगों को इसलिए मारा गया क्योंकि वे मुसलमान थे। यह न्याय का घोर अपमान है।"
बता दें कि यह मामला 29 सितंबर 2008 का है, जब महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाकों में छह लोगों की मौत हुई थी और सौ से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस केस में बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और अन्य को आरोपी बनाया गया था। हालांकि 17 साल तक चले मुकदमे के बाद 31 जुलाई 2025 को NIA कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया, यह कहते हुए कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
ओवैसी ने इस फैसले को "न्याय की हार" बताते हुए सवाल उठाया कि क्या अब उन मारे गए निर्दोष लोगों को न्याय मिलेगा? उन्होंने यह भी मांग की कि इस मामले में जांच एजेंसियों की भूमिका की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
AIMIM प्रमुख का यह बयान उस समय आया है जब इस केस में एक पूर्व ATS अधिकारी द्वारा भी यह सनसनीखेज दावा किया गया है कि तत्कालीन राजनीतिक दबाव में जांच को संघ प्रमुख मोहन भागवत की ओर मोड़ने की कोशिश की गई थी। ऐसे में ओवैसी का बयान पूरे मामले को और अधिक संवेदनशील बना रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मालेगांव विस्फोट केस अब केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक बहस का भी मुद्दा बन गया है, जहां न्याय व्यवस्था, जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता और सांप्रदायिक सौहार्द पर गंभीर प्रश्न खड़े हो रहे हैं।

