आखिर क्यों भगवान विष्णु को कहा जाता है 'श्री हरी' ? 2 मिनट के शानदार वीडियो में जाने वेदों-पुराणों में छिपा गूढ़ रहस्य
भगवान विष्णु को सृष्टि के रचयिता, जगदीश, लक्ष्मीपति, जगतपिता जैसे उपनामों से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर शांत मुद्रा में लेटे रहते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु सृष्टि के रचयिता हैं और सच्ची श्रद्धा से पूजा करने पर भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं। भगवान विष्णु अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते और उनकी सभी मनोवांछित कामनाएं पूरी करते हैं। पंडित इंद्रमणि घनश्याम बताते हैं कि लक्ष्मीपति नारायण को श्री हरि के नाम से भी पुकारा जाता है, जिसका शास्त्रों और पुराणों में बहुत महत्व है।
नारायण के श्री हरि होने का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार हरि का अर्थ है संहारक, तारणहार और भगवान विष्णु संपूर्ण ब्रह्मांड के पापों और कष्टों का निवारण करते हैं। ऋषि-मुनियों के शास्त्रों और पुराणों में भी उल्लेख मिलता है कि 'हरि हरति पापनि' यानी भक्तों के जीवन के सभी पापों का हरण करने वाले हरि हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से भगवान विष्णु की पूजा करता है और उन्हें विशेष उपायों से प्रसन्न करता है, श्री हरि उसे उसके सभी पापों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करते हैं, इसीलिए नारायण को श्री हरि कहा जाता है। हमारी सनातन संस्कृति भी हमें यही शिक्षा देती है कि भगवान विष्णु की पूजा करते समय हमें उनसे अपने जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करनी चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि सच्चे मन से की गई स्तुति से भगवान श्री हरि शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों का कल्याण करते हैं।
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शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु ने समय-समय पर विभिन्न अवतार लेकर अपने भक्तों और इस सृष्टि के सभी प्राणियों का उद्धार किया है। हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में भी श्री हरि विष्णु के अवतारों और उनके उपनामों पर विस्तार से चर्चा की गई है।