Kabir Das Biography in Hindi: महान समाज सुधारक, कवि और संत कबीर दास जी का जीवन परिचय
संत कबीरदास पंद्रहवीं शताब्दी में पवित्र शहर वाराणसी, उत्तर प्रदेश में पैदा हुए एक भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। उनके लेखन ने हिंदू धर्म भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया, उस समय भारत में मुख्य रूप से हिंदू और इस्लाम में प्रचलित धर्मों में अर्थहीन और गलत प्रथाओं की आलोचना की।कबीरदास के अनुसार जो व्यक्ति हमेशा धार्मिकता के मार्ग पर चलता है, जो किसी से ईर्ष्या नहीं करता है और सभी को समान रूप से प्यार करता है, उसे हमेशा सर्वोच्च शक्ति का समर्थन मिलता है। उनके अनुसार एक ही सर्वोच्च सत्य है जो विभिन्न धर्मों द्वारा अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। अभी भी यह कुछ ही लोगों के लिए जाना जाता है। कबीर की रचनाएँ सरल हैं लेकिन उनके अर्थ में गहरा सत्य छिपा है। ऐसे ही कई महत्वपूर्ण फैक्ट्स हम इस जीवनी लेख में लेकर आए है जो आपको कबीर दास का जीवन-परिचय विस्तार से देंगे| वहीं कई अन्य पॉइन्ट के तहत इस लेख को संकलित किया गया है जो आपको कबीर दास जी को जानने में मदद करेगा।
कबीर का जीवन परिचय |
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पूरा नाम | संत कबीरदास |
अन्य नाम | कबीरा |
जन्म | सन 1398 (लगभग) |
जन्म भूमि | लहरतारा ताल, काशी |
मृत्यु | सन 1518 (लगभग) |
मृत्यु स्थान | मगहर, उत्तर प्रदेश |
पालक माता-पिता | नीरु और नीमा |
पति/पत्नी | लोई |
संतान | कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) |
कर्म भूमि | काशी, बनारस |
कर्म-क्षेत्र | समाज सुधारक कवि |
मुख्य रचनाएँ | साखी, सबद और रमैनी |
विषय | सामाजिक |
भाषा | अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी |
शिक्षा | निरक्षर |
नागरिकता | भारतीय |
कबीरदास कौन है? । Who Is Kabir Das
कबीरदास 15वीं शताब्दी के एक भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे और उन्होंने अपने लेखन ने उन्हें हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया और उनके छंद शिखा धर्म के गुरु ग्रंथ साहिब और संत गरीब दास के सतगुरु ग्रंथ साहिब और कबीर सागर में पाए जाते हैं।
कबीरदास का जन्म | Kabir Das Born/Birth
भारत के महान संत कबीरदास का जन्म 1440 ईस्वी में हुआ था और उन्हें कबीरपंथी के रूप में जाना जाता है जिन्होंने पूरे उत्तर और मध्य भारत में विस्तार किया उनकी वीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, जैसी महान रचना है लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा ए प्रदान करती है।
कबीर दास का जन्म स्थान | Birthplace of Kabir Das
Kabir Das का जन्म मगहर, काशी में हुआ था। कबीर दास ने अपनी रचना में भी वहां का उल्लेख किया है: “पहिले दरसन मगहर पायो पुनि काशी बसे आई” अर्थात काशी में रहने से पहले उन्होंने मगहर देखा था और मगहर आजकल वाराणसी के निकट ही है और वहां कबीर का मकबरा भी है।
कबीरदास का शुरुआती जीवन | Kabir Das Early Life
उनका पालन पोषण एक बहुत ही गरीब मुस्लिम बुनकर परिवार में हुआ था वह बहुत ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और एक महान साधु बने उन्होंने अपनी प्रभावशाली परंपराओं और संस्कृति के कारण पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त की है। दोस्तों कबीर दास जी के जन्म के माता-पिता का कोई खास सुराग नहीं है क्योंकि उनका पालन पोषण नीरू और नीमा नाम के दंपति ने वाराणसी के एक छोटे से शहर लहरतारा में किया है। नीरू और नीमा एक बेहद ही गरीब और अशिक्षित थे लेकिन उन्होंने दिल से छोटे से बच्चे को गोद लिया और उसे अपने व्यवसाय के बारे में प्रशिक्षित किया फिर भी कबीर दास जी ने एक साधारण और फकीर का संतुलित जीवन व्यतीत किया है।
कबीरदास के जन्म से जुड़ी कहानी
वैसे तो दोस्तों कबीरदास के जन्म के संबंध में लोगों द्वारा अनेक प्रकार की कहानियां कही जाती हैं और कुछ लोगों का ऐसा भी कहना है कि वह जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे और उसे ब्राह्मणी ने नवजात शिशु को एक तालाब के पास छोड़ दिया था। उसी तालाब के पास है नीरू और नीमा नाम का एक दंपति रहता था और जब उन्होंने बच्चे की रोने की आवाज सुनी तो वह दौड़कर तालाब के किनारे गए और वहां से नवजात शिशु को उठाकर अपने घर ले आए।
घर लाने के बाद उन्होंने उस बालक का पालन पोषण बिल्कुल अपने पुत्र की तरह ही किया क्योंकि उनके कोई संतान नहीं थी इसके बाद उस बालक को कबीर के नाम से जाना जाने लगा। इसके साथ ही दोस्तों कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वह जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्हें हिंदू धर्म की बातें मालूम हुई। इसके साथ ही कुछ कबीरपंथी यों का यह भी मानना है कि कबीर दास जी का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ था और कबीर दास ने अपनी रचनाओं में भी काशी का नाम लिया है।
कबीर दास की शिक्षा। Kabir Das Education
दोस्तों कबीर दास जी का पालन पोषण बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था जहां पर शिक्षा के बारे में ना तो सोचा जा सकता था और ना ही यह संभव था उस दौरान रामानंद जी काशी के एक प्रसिद्ध विद्वान और पंडित थे और कभी उदास हो हमसे शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने कई बार उनके आश्रम में जाने और उनसे मिलने की विनती की परंतु उन्हें हर बार भगा दिया जाता था और क्योंकि उस समय जात पात का भी काफी चलन था ऊपर से काशी में पंडितों का ही राज रहता था। एक दिन जब कबीरदास सुबह के समय पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े तो उस समय रामानंद जी गंगा स्नान करने के लिए सीढ़ियों से उतर रहे थे और उनका पैर अचानक कबीरदास के शरीर पर पड़ गया और कबीर दास के मुख्य से तत्काल राम साधन निकल पड़ा उसी राम को कवि ने दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।
कबीर दास व उनके गुरु रामानंद (Kabir Das and his Guru Ramananda)
कबीर का पालन-पोषण उत्तरप्रदेश के काशी में हुआ था। वह मुस्लिम जुलाहा दंपति के यहां बड़े हो रहे थे। काशी में ही उन्हें एक गुरु रामानंद के बारे में पता चला। रामानंद उस समय के एक महान हिंदू संत थे। गुरु रामानंद काशी में ही रहकर के अपने शिष्यों व लोगों को भगवान विष्णु में आसक्ति के उपदेश दिया करते थे। उनके शैक्षणिक उपदेशों के मुताबिक भगवान हर इंसान में हैं, हर चीज में हैं। कबीर गुरु रामानंद के शिष्य बन गए और उनके उपदेशों को सुनने लगे। जिसके बाद ये धीरे-धीरे हिंदू धर्म के वैष्णव की ओर अग्रसर हुए। कबीर दास ने रामानंद को ही अपना गुरु माना। उन्होंने वैष्णव के साथ-साथ सूफी धारा को भी जाना। इतिहासकारों के अनुसार, कबीर गुरु रामानंद के यहां ज्ञान प्राप्त करने के बाद संत बन गए और श्रीराम को अपना भगवान माना।
कबीर दास जी की विशेषताएं (Qualities of Kabir Das)
संत कबीर की विशेषताएं निम्नलिखित है-
एकांतप्रिय
कबीर दास बचपन से ही एकांतप्रिय इंसान थे। वे अकेले में रहना पसंद करते थे। एकांतप्रिय स्वभाव के कारण उनकी बुद्धिमता में बहुत ज्यादा विकास हुआ। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, कबीर दास जी आजीवन अविवाहित रहे।
चिंतनशील
कबीर दास एक चिंतनशील इंसान भी थे। उनका अधिकांश समय काव्य रचना व उसके लिए सोच विचार पर जाता था। वह समाज में व्याप्त बुराइयों पर अच्छी तरह चिंतन करके कटु काव्य खंडों की रचना करते ताकि वे उन बुराइयों को समाज से खत्म कर सकें। कबीर दास की अधिकांश रचनाएं बहुत ही मार्मिक और स्पष्टवादी हैं। अपने चिंतन से भाषा की कठिनाइयों को त्याग करके उन्होंने साधारण व लोकमानस में रचित होने वाली भाषा का प्रयोग किया।
साधुसेवी
कबीर दास जी ने गुरु को सबसे बड़ा बताया। उन्होंने गुरु को ही अपना सगा-संबंधी माना और उन्हीं के प्रति आसक्त रहे। कबीर ने निराकार ब्रह्म को मान करके सांसारिक जीवन से सार्थकता पाने पर विश्वास जताया। निराकार ब्रह्म की अराधना से वे साधु की प्रवृत्ति में बदल गए। उन्होंने मूर्ति-पूजा व बाह्य आडंबरों को नकारते हुए कहा कि हम सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं।
कबीरदास का परिवार। Kabir Das Family
पिता का नाम (Father’s Name) | नीरू (किवदंती के अनुसार) |
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माता का नाम (Mother’s Name) | नीमा (किवदंती के अनुसार) |
बहन का नाम (Sister’s Name) | कोई नहीं |
भाई का नाम (Brother’s Name) | कोई नहीं |
पत्नी का नाम (Wife’s Name) | लोई (विवादास्पद) |
बेटे का नाम (Son’s Name) | कमल (विवादास्पद) |
बेटी का नाम (Daughter’s Name) | कमली (विवादास्पद) |
कबीरदास का विवाह, पत्नी, बच्चे। Kabir Das Wife, Children
दोस्तों कबीर दास के जीवन के अन्य पहलुओं की तरह ही उनके वैवाहिक जीवन का पहलू भी काफी उलझा हुआ है और इसमें भी लोगों की अलग-अलग मान्यताएं देखने को मिलती हैं। जहां एक तरफ बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी विवाह नहीं की तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग मानते हैं कि उन्होंने लोई नाम की एक महिला से विवाह किया था और उनके दो बच्चे हुए थे जिनमें एक बेटा कमल और एक बेटी कमली थी। इसके साथ ही कुछ लोग से यह सुझाव भी प्राप्त होता है कि उन्होंने दो बार शादी की थी हालांकि किसी भी तथ्य को प्रमाणित करने के लिए किसी भी प्रकार के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।
कबीर दास का वैवाहिक जीवन | Marital life of Kabir Das in Hindi
Kabir Das का विवाह वनखेड़ी बैरागी की पालिता कन्या ‘लोई’ के साथ हुआ। कबीर दास की कमाल और कमाली नामक दो संतानें भी थी जबकि कबीर को कबीर पंथ में बाल ब्रह्मचारी माना जाता है इस पंथ के अनुसार कमाल उसका शिष्य था और कमाली तथा लोई उनकी शिष्या थी।
कबीरदास का धर्म । Kabir Das Religion
कबीरदास के अनुसार जीवन जीने का सही तरीका ही उनका धर्म है वह धर्म से ना तो हिंदू है ना मुसलमान कबीर दास जी धार्मिक रीति-रिवाजों के एक बहुत बड़े निंदा कर रहे हैं। कबीर दास ने धर्म के नाम पर चल रही को प्रथाओं का पूरे जीवन भर विरोध किया है और उनका जन्म सिख धर्म की स्थापना के समकालीन था इसी कारण उनका प्रभाव से कि धर्म में भी दिखाई देता है और उन्होंने अपने जीवन के काल में कई बार हिंदू और मुस्लिमों का विरोध भी झेला है।
कबीरदास और समाज। Kabir Das And Society
कबीर दास जी के दोहे से पता चलता है कि जब जीवित थे तब उन्हें उनके विचारों के लिए समाज द्वारा बहुत सताया गया था। उत्पीड़न और बदनामी के प्रति कबीर की प्रतिक्रिया उनका स्वागत करना था उन्होंने निंदा करने वालों को मित्र कहां बदनामी के लिए आभार व्यक्त किया क्योंकि यह उसे अपने भगवान के करीब ले आया। डेविड लोरेंनजेन के अनुसार कबीर के बारे में किवदंतिया सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण के खिलाफ विरोध को दर्शाती हैं वे गरीबों और शक्तिहीनो के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती हैं जो अमीर और शक्तिशाली नहीं है। हालांकि कई विद्वानों का संदेह है कि उत्पीड़न की यह किवदंती या प्रमाणिक नहीं है क्योंकि ऐसे किसी भी सबूत प्राप्त नहीं हुए हैं और इस बात की संभावना ही नहीं है कि एक मुस्लिम सुल्तान हिंदू ब्राह्मणों से आदेश लेगा या कबीर की अपनी मां ने मांग की थी कि सुल्तान कबीर को दंडित करें विद्वान कबीर की कथाओं की ऐतिहासिकता पर इसी प्रकार से सवाल उठाते हैं।
कबीरदास जी का दर्शन | Kabir Das Philosophy
कबीर दास जी का पूरा जीवन उनके दर्शन का प्रतिबिंब है उनका लेखन मुख्य रूप से पुनर जन्म और कर्म की अवधारणा पर आधारित था जीवन के बारे में कबीर का दर्शन बहुत ही स्पष्ट रहा है वह जीवन को बेहद सादगी से जीने में विश्वास रखते थे और ईश्वर की एकता की अवधारणा में उनका दृढ़ विश्वास था। उनका मूल विचार यह संदेश फैलाना था कि चाहे आप हिंदू भगवान का नाम ले या मुस्लिम भगवान का तथ्य यह है कि केवल भगवान एक है जो इस खूबसूरत दुनिया का और इस दुनिया में मौजूद सभी के निर्माता हैं वही कबीर दास के दर्शन और सिद्धांतों की बात करें तो हिंदू समुदाय द्वारा थोपी गई जाति व्यवस्था के खिलाफ थे और मूर्तियों की पूजा करने के विचार का भरपूर विरोध करते थे।
इसके विपरीत उन्होंने आत्मान की वेदांतिक अवधारणाओं की वकालत भी की है उन्होंने न्यूनतम जीवन के विचार का समर्थन किया जिसकी सूफियों ने वकालत की थी संत कबीर के दर्शन के बारे में स्पष्ट विचार रखने के लिए उनकी कविताओं और दोनों में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। कबीरदास पाखंड की प्रथा के सख्त खिलाफ थे और उन्होंने लोगों द्वारा बनाए गए दोहरे मापदंडों को अस्वीकार किया तथा हमेशा लोगों को दूसरे जीवो के प्रति दया भाव रखने और सच्चे प्यार का आभास करने का उपदेश दिया। उन्होंने मूल्यों और सिद्धांतों का पालन करने वाले अच्छे लोगों की संगति की आवश्यकता का आग्रह किया।
कबीरदास का व्यक्तित्व
हिंदी साहित्य के हजारों वर्षों के इतिहास में कबीर दास जी जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ होगा ऐसा व्यक्तित्व तुलसीदास जी का भी था परंतु तुलसीदास जी और कबीर दास जी में बड़ा अंतर रहा है यद्यपि दोनों ही भक्त थे परंतु दोनों स्वभाव, संस्कार, दृष्टिकोण में बिल्कुल अलग अलग थे मस्ती स्वभाव को झाड़ फटकार कर चल देने वाले कबीर ने पूरे हिंदी साहित्य को अद्भुत रूप दिया है। उन्होंने अपनी रचना कबीर वाणी में अनन्य साधारण जीवन रस को भर दिया है और उनके इसी व्यक्तित्व के कारण ही कबीर की उक्तियां श्रोताओं को बलपूर्वक अपनी और आकर्षित करती है और इसी व्यक्तित्व के आकर्षण को सहृदय समालोचक संभाल नहीं पाता और कबीर को कवि कहने में संतोष पाता है ऐसे आकर्षक वक्ता को कभी ना कहा जाए तो और क्या कहा जाएगा।
कबीरदास का साहित्यिक परिचय | Kabir Das Literature
कबीरदास एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे इसीलिए लोगों ने संत कबीर दास के नाम से भी पुकारते थे उन्होंने अपनी कविताओं में पाखंडिओ के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर हो और स्वार्थ पूर्ति की निजी दुकानदारों को ललकारा और असत्य अन्याय की पोल खोल कर रख दी है।
कबीरदास की भाषा, शैली
कबीरदास की भाषा शैली में उन्होंने अपनी बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था वह अपनी जिस बात को जिस रूप में प्रकट करना चाहते थे उसी रूप में प्रकट करने की क्षमता रखते थे। भाषा भी मानव कबीर के सामने कुछ लाचार सी ही दिखाई देती थी उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनकी वह सफर माहिर को ना कह सके वाणी के ऐसे बादशाह को साहित्य रसिक काव्यांद का आस्वादन कराने वाला समझे तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता है। कबीर ने जनता तुमको अपनी रचना से ध्वनित करना चाहा आपको उसके लिए कबीर की भाषा से ज्यादा साफ और जोरदार भाषा की संभावना भी नहीं की जा सकती है और इससे ज्यादा की जरूरत भी नहीं है।
कबीरदास की रचनाएं । Kabir Das Creations
- अगर मंगल
- अठपहरा
- अनुराग सागर
- अमर मूल
- अलिफ नामा
- अक्षर खंड की रमैनी
- अक्षर भेद की रमैनी
- आरती कबीर कृत
- उग्र गीता
- कबीर की वाणी
- कबीर आष्टक
- कबीर की साखी
- कबीर परिचय की साखी
- काया पंजी
- चौका पर की रमैनी
- चौतीसा कबीर का
- छप्पय कबीर का
- जन्म बोध
- निर्भय ज्ञान
- पुकार कबीर कृत
- बारामासी
- बीजक
- ब्रह्मा निरूपण
- मंगल बोध
- रमैनी
- राम रक्षा
- राम सागर
- रेख़ता
- विचार माला
- विवेक सागर
- शब्दावली
- हंस मुक्तावालों
- ज्ञान गुदड़ी
- ज्ञान चौतीसी
- ज्ञान सरोवर
- ज्ञान सागर
- ज्ञान संबोध
- ज्ञान स्तोश्र
- साखी
- सबद
- रमैनी
कबीर जी की कविताएं | Kabir Das Poetry
- तेरा मेरा मनुवां
- बहुरि नहिं आवना या देस
- बीत गये दिन भजन बिना रे
- नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार
- राम बिनु तन को ताप न जाई
- करम गति टारै नाहिं टरी
- भजो रे भैया राम गोविंद हरी
- दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ
- झीनी झीनी बीनी चदरिया
- केहि समुझावौ सब जग अन्धा
- काहे री नलिनी तू कुमिलानी
- मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै
- रहना नहिं देस बिराना है
- कबीर की साखियाँ
- हमन है इश्क मस्ताना
- कबीर के पद
- नीति के दोहे
- मोको कहां
- साधो, देखो जग बौराना
- सहज मिले अविनासी
- तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के
- रे दिल गाफिल गफलत मत कर
- घूँघट के पट
- गुरुदेव का अंग
- सुमिरण का अंग
- विरह का अंग
- जर्णा का अंग
- पतिव्रता का अंग
- कामी का अंग
- चांणक का अंग
- रस का अंग
- माया का अंग
- कथनी-करणी का अंग
- सांच का अंग
- भ्रम-बिधोंसवा का अंग
- साध-असाध का अंग
- संगति का अंग
- मन का अंग
- चितावणी का अंग
- भेष का अंग
- साध का अंग
- मधि का अंग
- बेसास का अंग
- सूरातन का अंग
- जीवन-मृतक का अंग
- सम्रथाई का अंग
- उपदेश का अंग
- कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
- मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया
- अंखियां तो छाई परी
- माया महा ठगनी हम जानी
- सुपने में सांइ मिले
- मोको कहां ढूँढे रे बन्दे
- अवधूता युगन युगन हम योगी
- साधो ये मुरदों का गांव
- मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा
- निरंजन धन तुम्हरा दरबार
- ऋतु फागुन नियरानी हो
कबीर दास के भगवान
कबीर दास के गुरु रामानंद स्वामी ने कबीर दास को केवल एक ही मंत्र दिया था जिसका वो सदैव जाप करते थे और वो मंत्र था भगवान् राम का नाम।
कबीर दास का व्यक्तित्व | Personality of Kabir Das
हिंदी साहित्य के हजार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। ऐसा व्यक्तित्व तुलसीदास का भी था। परंतु तुलसीदास और कबीर में बड़ा अंतर था। यद्यपि दोनों ही भक्त थे, परंतु दोनों स्वभाव, संस्कार दृष्टिकोण में बिल्कुल अलग-अलग थे मस्ती स्वभाव को झाड़-फटकार कर चल देने वाले तेज ने कबीर को हिंदी साहित्य का अद्भुत व्यक्ति बना दिया। उसी ने कबीर की वाणी में अनन्य असाधारण जीवन रस भर दिया। इसी व्यक्तित्व के कारण कबीर की उक्तियां श्रोता को बलपूर्वक आकर्षित करती हैं। इसी व्यक्तित्व के आकर्षण को सहृदय समालोचक संभाल नहीं पाता और रीझकर कबीर को कवि कहने में संतोष पाता है। ऐसे आकर्षक वक्ता को कवि ना कहा जाए तो और क्या कहा जाए?
चलिए अब कबीर दास की कृतियों के बारे में जानते हैं, संत कबीर दास ने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, कबीर दास ने इन्हें अपने मुंह से बोला और उनके शिष्यों ने इन ग्रंथों को लिखा। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकांड के घोर विरोधी थे।वे अवतार, मूर्ति, रोजा, ईद, मस्जिद, मंदिर आदि को नहीं मानते थे। कबीर के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या भिन्न-भिन्न लेखों के अनुसार भिन्न भिन्न है। एच. एच. विल्सन के अनुसार कबीर के नाम पर आठ ग्रंथ मौजूद हैं। विशप जी. एच. वेस्टकाॅट ने कबीर के 74 ग्रंथों की सूची प्रस्तुत की तो रामदास गौड़ ने हिंदुत्व में 71 पुस्तकें गिनाई हैं। कबीर की वाणी का संग्रह बीजक के नाम से प्रसिद्ध है।
इसके तीन भाग हैं
- रमैनी
- सबद
- साखी
कबीर दर्शन | Kabir Darshan
यह उनके जीवन के बारे में अपने दर्शन का एक प्रतिबिंब हैं। उनके लेखन मुख्य रूप से पुनर्जन्म और कर्म की अवधारणा पर आधारित थे। कबीर के जीवन के बारे में यह स्पष्ट था कि वह एक बहुत ही साधारण तरीके से जीवन जीने में विश्वास करते थे। उनका परमेश्वर की एकता की अवधारणा में एक मजबूत विश्वास था उनका एक विशेष संदेश था कि चाहे आप हिंदू भगवान या मुसलमान भगवान के नाम का जाप करें, किंतु सत्य यह है कि ऊपर केवल एक ही परमेश्वर है जो इस खूबसूरत दुनिया के निर्माता है। जो लोग इन बातों से ही कबीर दास की महिमा पर विचार करते हैं वे केवल सतह पर ही चक्कर काटते हैं कबीर दास एक बहुत ही महान और जबरदस्त क्रांतिकारी पुरुष थे।
कबीरदास जी के प्रमुख शिष्य | Kabir Das Students
कबीर के प्रिय शिष्य धर्मदास थे। कबीर अशिक्षित थे। लेकिन वह ज्ञान और अनुभव से समृद्ध थे। सद्गुरु रामानंद जी की कृपा से कबीर को आत्मज्ञान तथा प्रभु भक्ति का ज्ञान प्राप्त हुआ। बचपन से ही कबीर एकांत प्रिय व चिंतनशील स्वभाव के थे। उन्होंने जो कुछ भी सीखा। वह अनुभव की पाठशाला से ही सीखा। वह हिंदू और मुसलमान दोनों को एक ही पिता की संतान स्वीकार करते थे। कबीर दास जी ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखें। उन्होंने सिर्फ उसे बोले थे। उनके शिष्यों ने, इन्हें कलमबद्ध कर लिया था। इनके अनुयाईयों व शिष्यों ने मिलकर, एक पंथ की स्थापना की। जिसे कबीर पंथ कहा जाता है। कबीरदास जी ने स्वयं किसी पंथ की स्थापना नहीं की। वह इससे परे थे। यह कबीरपंथी सभी समुदायों व धर्म से आते हैं। जिसमें हिंदू, इस्लाम, बौद्ध धर्म व सिख धर्म को मानने वाले है।
कबीर दास की मृत्यु, जयंती | Kabir Das Death, Death Place, Jyanti
15वीं शताब्दी के एक सूफी कवि कबीरदास के बारे में माना जाता है कि उन्होंने अपनी मृत्यु का स्थान मगहर चुना था जो कि लखनऊ से लगभग 240 किलोमीटर दूर है। उन्होंने ऐसा लोगों के दिमाग से परियों की कहानियों को दूर करने के लिए किया था उन दिनों यह माना जाता था कि जो भी काशी में अंतिम सांस लेता है वह स्वर्ग में जाता है और जो मगहर के क्षेत्र में मर जाता है उसे स्वर्ग में स्थान नहीं मिलता और अगले जन्म में गधे का जन्म लेगा।
लोगों को इसी अंधविश्वास को तोड़ने के लिए ही कबीर दास जी ने अपनी मृत्यु के लिए इस स्थान को चुना था और विक्रम संवत 1575 में हिंदू कैलेंडर के अनुसार उन्होंने 1518 ईस्वी में माल शुक्ल की एकादशी के दिन इस दुनिया को छोड़ कर पंचतत्व में विलीन हो गए। इसके साथ ही दोस्तों हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के वह लोग जो उनके जीवनकाल में उनकी आलोचना करते थे वही उनकी मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर लड़ते रहे। कबीर दास की शिक्षाएं सार्वभौमिक है और सभी के लिए सामान है क्योंकि उन्होंने मुसलमानों से को हिंदुओं और विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच कभी भी कोई अंतर नहीं किया यही कारण है कि मगहर में कबीर दास की मजार और समाधि दोनों है।
कबीरदास जी की मृत्यु पर विवाद | Kabir Das Death Controversies
कबीरदास जी के देह त्यागने के बाद, उनके अनुयाई आपस में झगड़ने लगे। उन में हिंदुओं का कहना था कि कबीरदास जी हिंदू थे। उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार होना चाहिए। वही मुस्लिम पक्ष के लोगों का कहना था कि कबीर मुस्लिम थे। तो उनका अंतिम संस्कार इस्लाम धर्म के अनुसार होना चाहिए। तब कबीरदास जी ने देह त्याग के बाद, दर्शन दिए। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि मैं न तो कभी हिंदू था। न ही मुस्लिम। मैं तो दोनों ही था। मैं कहूं, तो मैं कुछ भी नहीं कहा था। या तो सब कुछ था। या तो कुछ भी नहीं था। मैं दोनों में ही ईश्वर का साक्षात्कार देख सकता हूं।
ईश्वर तो एक ही है। इसे दो भागों में विभाजित मत करो। उन्होंने कहा कि मेरा कफन हटाकर देखो। जब उनका कफन हटाया गया। तो पाया कि वहां कोई शव था, ही नहीं। उसकी जगह उन्हें बहुत सारे पुष्प मिले। इन पुष्पों को उन दोनों संप्रदायों में आपस में बांट लिया। फिर उन्होंने अपने-अपने रीति-रिवाजों से, उनका अंतिम संस्कार किया। आज भी मगहर में कबीर दास जी की मजार व समाधि दोनों ही हैं।
कबीरदास से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रोचक तथ्य | Interesting Facts About Kabir Das
- कबीर दास जी के जन्म के बारे में कोई भी प्रमाणिक साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।
- उनका पालन पोषण नीरू और नीमा नाम के जुलाहे दंपति द्वारा किया गया है।
- उन्होंने अपने पूरे जीवन में धर्मों में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई है।
- वह एकेश्वरवाद को मानते थे और मूर्ति पूजा का विरोध करते थे।
- उन्हें अपने विचारों के कारण अपने जीवन में कई प्रकार की सामाजिक आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
- कवि संत स्वामी रामानंद को अपना गुरु मानते थे।
- उन्होंने अपनी कविताओं में ब्रज, भोजपुरी और अवधि सहित विभिन्न बोलियों का उपयोग किया है।
- उनके दोहो का उपयोग से के धार्मिक के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी किया गया है।
- शालोर्ट वुडविले के अनुसार कबीर और भक्ति आंदोलन के अन्य संतों का दर्शन निरपेक्षता की खोज है।
FAQ:
Ans. कबीरदास का जन्म 1448 ईस्वी में माना जाता है।
Ans. कबीर दास निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और एकेश्वरवाद को मानते थे।
Ans. कबीर दास के जीवन के एकमात्र गुरु रामानंद स्वामी हैं।
Ans. कबीर दास जी ने 1518 ईस्वी में काशी के निकट मगहर स्थान पर अपने प्राण त्याग दिए थे.
Ans. कबीर दास की प्रमुख रचनाओं में बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर आदि आते हैं।
Ans. उन्होंने 25 दोहे लिखे।
Ans. कबीर दासे के गुरु का नाम रामानंद था। रामानंद एक हिंदू भक्ति नेता थे।
Ans. नीरू और नीमा ने कबीर दास को वाराणसी के लहरतारा तालाब में एक नवजात शिशु के रूप में पाया।
Ans. संत कबीर दास के गुरु स्वामी रामानन्द थे।
Ans. संत कबीर दास के कमल नाम का एक बेटा और कमली नाम की एक बेटी थी।
Ans. संत कबीर दास की कविताओं को दोहा कहा जाता है।