दुनिया में कई ऐसी चीजें घटित हुई हैं जो आज तक आम लोगों को पता नहीं चलीं लेकिन जब उनकी जानकारी सामने आती है तो लोग चौंक जाते हैं। ऐसी ही एक कहानी दूसरे विश्व युद्ध के बाद की है, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। ऐसा कहा जाता है कि 28 अक्टूबर 1943 को अमेरिकी सेना ने एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने एक जहाज को पूरी तरह से गायब कर दिया।
ऐसा कहा जाता है कि अमेरिकी नौसेना ने डॉ. फ्रैंकलिन रेनो के साथ मिलकर नौसेना विध्वंसक पोत यूएसएस एल्ड्रिज पर फिलाडेल्फिया प्रयोग किया था। यह प्रयोग अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत पर आधारित था, जिसका उपयोग जहाज को दुश्मन के राडार और यहां तक कि आम जनता की नजरों से ओझल करने के लिए किया जा रहा था।
ऐसा कहा जाता है कि यह जहाज दो बड़े जनरेटर, चुंबकीय कॉइल और एम्पलीफायरों से सुसज्जित था। ऐसा माना जाता है कि इस प्रयोग में अमेरिकी सेना चुंबकीय क्षेत्र में रहस्यमय परिवर्तन करना चाहती थी। अमेरिकी सेना इस प्रयोग के माध्यम से जहाज को नष्ट करना चाहती थी। यदि परीक्षण सफल हो जाता तो यह युद्ध का सर्वोत्तम हथियार बन जाता। लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हुआ और अमेरिकी सेना को इस प्रयोग के भयानक परिणाम देखने को मिले।
बताया जाता है कि जैसे ही जेनरेटर चालू किया गया, उसके आसपास के पानी में न केवल बुलबुले उठने लगे, बल्कि हरा धुआं भी निकलने लगा। कहा जाता है कि इस धुएं के बाद पहला जहाज रडार से गायब हो गया और तुरंत ही लोगों की आंखों से भी ओझल हो गया।
जैसे ही जहाज गायब हुआ अमेरिकी सेना खुश हो गई, उन्हें लगा कि उनका प्रयोग सफल हो गया, इसके बाद उन्होंने जहाज को वापस लाने की कवायद शुरू कर दी लेकिन ऐसा हो नहीं सका। उस जहाज में अमेरिकी सैनिक भी थे, इसलिए अधिकारियों को चिंता होने लगी, लेकिन उनके सारे प्रयास विफल हो गए, इसलिए अधिकारियों ने हार मान ली, लेकिन तभी अमेरिकी नौसेना को सूचना मिली कि यूएसएस एल्ड्रिज जहाज परीक्षण स्थल से 300 किलोमीटर दूर देखा गया है।
ऐसा कहा जाता है कि जब सैनिकों को जहाज मिला तो वे बेहोश हो गये, क्योंकि जहाज पर कई सैनिक मर चुके थे। वहीं, जो सैनिक जीवित पाए गए थे उनमें से कुछ पागल हो चुके थे और कुछ सैनिक जहाज के मलबे में दबे हुए पाए गए थे।