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वसुंधरा राजे पर अशोक गहलोत का बड़ा आरोप, वीडियो में देखें नई ERCP में दम है या पुरानी में

राजस्थान की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ERCP) और पावटा-कुचामन कैनाल (PKC) योजना को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर बड़ा हमला बोला है। गहलोत ने कहा है कि वसुंधरा राजे इन परियोजनाओं का वर्षों से अध्ययन कर चुकी हैं, बावजूद इसके अब खुद स्वीकार कर रही हैं कि इन योजनाओं में आगामी 9 वर्षों तक कोई ठोस प्रगति नहीं होने वाली।

गहलोत ने सीधे शब्दों में कहा, "वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं। उन्होंने ईआरसीपी और पीकेसी प्रोजेक्ट का विस्तृत अध्ययन किया है। जब वही कह रही हैं कि आने वाले नौ सालों तक इनमें कुछ नहीं होना है, तो फिर जनता को भ्रमित क्यों किया जा रहा है? साफ है कि इन योजनाओं के नए एमओयू में कोई दम नहीं है। सिर्फ दिखावा किया जा रहा है।"

पूर्व मुख्यमंत्री के इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। गहलोत का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब केंद्र और राज्य सरकारें इन दोनों परियोजनाओं को लेकर दावा कर रही हैं कि इससे राजस्थान के जल संकट को दूर करने में मदद मिलेगी और पूर्वी जिलों को सिंचाई व पेयजल सुविधा प्राप्त होगी।

गहलोत ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार केवल योजनाओं की घोषणाएं कर रही है, लेकिन जमीन पर कोई ठोस कार्य नहीं हो रहा। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर खुद भाजपा की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे ही इन परियोजनाओं की प्रभावशीलता पर सवाल उठा रही हैं, तो फिर आम जनता को किस आधार पर आश्वासन दिया जा रहा है?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गहलोत का यह बयान राज्य की मौजूदा भाजपा सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है, खासकर तब जब आगामी स्थानीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव नजदीक हैं।

हालांकि, भाजपा की ओर से फिलहाल इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन यह स्पष्ट है कि अशोक गहलोत के आरोपों ने ईआरसीपी और पीकेसी जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स को लेकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

गौरतलब है कि ईआरसीपी परियोजना पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों को पेयजल और सिंचाई सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, जबकि पीकेसी योजना नागौर, जयपुर और आसपास के क्षेत्रों को जलापूर्ति से जोड़ने की योजना है। अब देखना होगा कि इन योजनाओं की वास्तविकता को लेकर सरकार क्या स्पष्टीकरण देती है और राजनीतिक दलों के बीच यह मुद्दा किस दिशा में जाता है।

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