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5000 साल पुराने इस माता के मंदिर में रोजाना होता है अनोखा चमत्कार, इस राजा ने करवाया था निर्माण

मां भगवती की आराधना का पर्व चैत्र नवरात्रि आज से शुरू हो गया है। अनुष्ठान स्थल जबलपुर अपनी आस्था, भक्ति और अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है। माँ त्रिपुर सुंदरी का मंदिर जबलपुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर तेवर गाँव में स्थित है। इस मंदिर की ख्याति पूरे विश्व में फैली हुई है। तीन स्वरूपों वाली देवी के दर्शन के लिए देश-प्रदेश ही नहीं बल्कि विश्वभर से श्रद्धालु यहां आते हैं। इस मंदिर का निर्माण लगभग एक हजार वर्ष पूर्व कलचुरी राजा ने करवाया था। नवरात्रि के दौरान त्रिपुर सुंदरी मंदिर में नौ दिनों तक आस्था का मेला लगता है।

कहा जाता है कि मां जगदंबा, जगत जननी, अम्बे, जगदम्बे आदि अनेक ऐसे नाम हैं जिनके स्मरण मात्र से जीवन की सारी मुश्किलें आसान हो जाती हैं। आज हम आपको मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित एक ऐसे ही शक्ति स्थल के दर्शन कराएंगे। उसके स्मरण मात्र से ही हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। उन्हें त्रिपुर सुंदरी कहा जाता है, अर्थात महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का एक रूप। वह कलचुरी राजा दानवीर कर्ण की कुलदेवी थीं। यह पूरे देश में दृश्य रूप में मौजूद एकमात्र प्रतिमा है।

मंदिर के पुजारी रमाकांत दुबे कहते हैं कि मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर का इतिहास सौ-दो सौ साल पुराना नहीं बल्कि हजारों साल पुराना है। ऐसा माना जाता है कि मां त्रिपुर सुंदरी कलचुरी राजा महादानवीर कर्ण की कुलदेवी थीं। कर्ण माँ त्रिपुर सुन्दरी की भक्तिपूर्वक सेवा करता था। मां त्रिपुर सुंदरी ने कर्ण को वरदान दिया था कि वह कितना भी दान कर ले, उसके खजाने में हमेशा डेढ़ मन सोना रहेगा। जब कर्ण ने मां से वरदान मांगा कि जिस प्रकार मैं सदैव आपकी सेवा करता हूं और अपने आपको आपके लिए समर्पित कर दिया है, भविष्य में कृपया कुछ ऐसा उपाय कीजिए जिससे आपके भक्तों को भी आपका आशीर्वाद प्राप्त हो सके। इस पर मां त्रिपुर सुंदरी ने वरदान दिया कि जो भी भक्त उनके दरबार में भक्ति भाव से नारियल चढ़ाएगा उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। तभी से मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर में मान्यता का नारियल बांधा जाने लगा।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर समिति के प्रशासक शिव पटेल बताते हैं कि इस मंदिर का पुरातात्विक महत्व भी है। पुरातत्व विभाग ने भी त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति की जांच की और बताया कि यह मूर्ति करीब 2000 साल पुरानी है, लेकिन धार्मिक मान्यताएं कहती हैं कि यह मूर्ति 5000 साल से भी ज्यादा पुरानी है। खास बात यह है कि महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली का स्वरूप धारण करने वाली मां भगवती त्रिपुर सुंदरी की प्रतिभा दुनिया में अन्यत्र देखने को नहीं मिलती।

त्रिकूट पर्वत पर स्थित मां वैष्णो देवी में भी इन तीनों देवियों का पिंडी रूप विद्यमान है। केवल त्रिपुर सुंदरी मंदिर ही ऐसा मंदिर है जहां देवियों की मूर्ति स्वरूपा मिलती है। यही बात इस मंदिर को विशेष बनाती है। हर साल लाखों लोग मंदिर में दर्शन करने आते हैं। भक्तजन अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए माता के दरबार में नारियल बांधते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त त्रिपुर सुंदरी की पूजा करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष तीनों का लाभ मिलता है। जिस पर देवी प्रसन्न हो जाती हैं, उसका इस लोक और परलोक में जीवन भी सार्थक हो जाता है। लगभग एक हजार वर्ष पूर्व कलचुरी वंश के पराक्रमी राजा कर्ण ने माता त्रिपुर सुंदरी की इस सुन्दर प्रतिमा का निर्माण करवाया था। यहां माता महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के तीन स्वरूप एक साथ दिखाई देते हैं। मान्यता है कि चाहे कोई भी दुख या कठिनाई हो, बस यहां श्रद्धापूर्वक नारियल बांध दें। माँ त्रिपुर सुंदरी भक्तों के सभी दुख और कष्ट हर लेती हैं। यह माता का बहुत ही अनोखा निवास है। मां नर्मदा मां त्रिपुर सुंदरी के चरणों से कुछ ही कदम की दूरी पर बहती है। यहां आकर भक्तों को जो शांति और समृद्धि मिलती है, वह अन्यत्र नहीं मिलती। भगवान शंकर के प्रथम अवतार गुरु शंकराचार्य की भी अपने गुरु से मुलाकात नर्मदा के तट पर हुई थी। माँ त्रिपुर सुन्दरी मंदिर की इन पहाड़ियों और गुफाओं के बीच ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी ने भी गहन साधना की थी।

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