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ये है भारत के 10 सबसे प्राचीन मंदिर, जिनका इतिहास है सदियों पुराना, इन गर्मियों की छुट्टियों में आप भी परिवार के साथ करें एक्सप्लोर

हिंदू धर्म में भगवान के कई रूपों की पूजा की जाती है, जिसके लिए धार्मिक स्थान हैं। भारत में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जिनका इतिहास बहुत पुराना है। कुछ धार्मिक स्थलों या मंदिरों को पौराणिक कथाओं से जोड़कर देखा जाता है। भारत के उत्तर से दक्षिण और...

हिंदू धर्म में भगवान के कई रूपों की पूजा की जाती है, जिसके लिए धार्मिक स्थान हैं। भारत में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जिनका इतिहास बहुत पुराना है। कुछ धार्मिक स्थलों या मंदिरों को पौराणिक कथाओं से जोड़कर देखा जाता है। भारत के उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक अनेक भव्य, ऐतिहासिक और विशाल मंदिर हैं, जो न केवल अपनी प्राचीनता बल्कि अपनी अनूठी स्थापत्य कला के लिए भी प्रसिद्ध हैं। यदि आप धर्म के साथ-साथ इतिहास प्रेमी हैं और प्राचीन शैली में निर्मित अद्भुत वास्तुकला का अनुभव करना चाहते हैं, तो आप भारत के 10 सबसे प्राचीन मंदिरों के दर्शन के लिए जा सकते हैं। इसमें वाराणसी के काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से लेकर चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी मंदिर का नाम भी शामिल है। आइए जानते हैं देश के 10 प्राचीन मंदिरों के इतिहास और पौराणिक महत्व के बारे में।

12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादि काल से काशी में है।  इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषदों में भी किया गया है। 11वीं शताब्दी ईसा पूर्व में राजा हरिश्चंद्र ने विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। बाद में सम्राट विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार कराया। सन् 1194 में मुहम्मद गौरी ने काशी के इस मंदिर को लूटने के बाद ध्वस्त करवा दिया था। एक बार फिर 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने मंदिर को ध्वस्त कर दिया। हालाँकि, 1585 ई. में टोडरमल ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। 1669 में औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया।

तमिलनाडु में कुंभकोणम के पास सूर्य भगवान को समर्पित एक ऐतिहासिक मंदिर है, जिसका नाम सूर्यनार कोविल है। सूर्यनाल कोविल एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें सभी ग्रह देवताओं के लिए अलग-अलग मंदिर हैं। मंदिर में मिले शिलालेखों के अनुसार इसका निर्माण चोल राजा कुलोत्तुंग चोल देव ने करवाया था। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

उत्तराखंड में स्थित ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम का निर्माण आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में करवाया था। ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने यहां तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। मंदिर की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ लिखा हुआ है, जिसे स्पष्ट रूप से पढ़ना कठिन है।

बृहदेश्वर मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर जिले में हिंदुओं के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिसका इतिहास 1002 ई. का बताया जाता है। चोल शासक राजा राज चोल प्रथम ने मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में करवाया था। मंदिर की ऊंचाई 66 मीटर है जो अपने समय में दुनिया की सबसे बड़ी संरचनाओं में गिनी जाती है।

ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के एक अवतार को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। इसे भारत के चार धामों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग ने 12वीं शताब्दी में करवाया था। ऐसा माना जाता है कि राजा को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ के दर्शन हुए और उन्होंने गुफा में मूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया। मंदिर में प्रतिवर्ष रथ यात्रा उत्सव मनाया जाता है, जो विश्व प्रसिद्ध है।

ओडिशा के कोणार्क में एक सूर्य मंदिर है, जिसका इतिहास 13वीं शताब्दी का बताया जाता है। गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने इस प्राचीन हिंदू मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर कलिंग वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यूनेस्को ने 1984 में कोणार्क सूर्य मंदिर को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर माना जाता है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात में स्थित है और इसका निर्माण 7वीं शताब्दी में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था। यद्यपि सोमनाथ मंदिर को कई बार ध्वस्त किया गया, फिर भी इसकी भव्यता आज भी वैसी ही बनी हुई है। इस मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है।

मुंडेश्वरी देवी मंदिर बिहार के कैमूर जिले में स्थित है जिसे भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर पंवार पहाड़ी पर स्थित है और यहां रक्तहीन बलि की अनूठी परंपरा है। नागर शैली की वास्तुकला में निर्मित इस मंदिर का निर्माण 108 ई. में हुआ था और यह 1915 से संरक्षित स्मारक है। पुरातत्वविदों के अनुसार, यहां पाए गए शिलालेख लगभग 389 ई. के हैं। पौराणिक कथा के अनुसार चंड-मुंड नामक राक्षसों का वध करने के बाद माता मुंडेश्वरी नाम से प्रसिद्ध हुईं।

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