ट्रंप की जल्दबाज़ी या सोची-समझी चाल? दो हफ्ते की डेडलाइन को दो दिन में खत्म कर क्या अमेरिकी राष्ट्रपति ने खड़ी कर ली मुसीबत

पिछले कई दिनों से इजरायल ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने के लिए अमेरिका की मदद मांग रहा था। खास तौर पर अमेरिकी बंकर बस्टर बम जिसके जरिए ईरान के भूमिगत परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया जा सके। आखिरकार युद्ध के दसवें दिन अमेरिका सीधे तौर पर इसमें शामिल हो गया है और उसने ईरान के तीन बड़े परमाणु ठिकानों फोर्डो, नतांज और इस्फ़हान पर हमला कर दिया है।
मध्य पूर्व युद्ध में अमेरिका
अपने दूसरे कार्यकाल में 'शांति निर्माता' बनकर आए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब अमेरिका को मध्य पूर्व में एक और युद्ध में झोंक दिया है। हालांकि, फिलहाल अमेरिका नियंत्रित तरीके से इस युद्ध में शामिल हुआ है और ट्रंप ने ईरान से शांति बनाने की अपील भी की है। लेकिन ईरान ने सीधे तौर पर जवाबी कार्रवाई का ऐलान कर दिया है। अब अमेरिका को इस युद्ध की कीमत चुकानी पड़ सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरी बार व्हाइट हाउस लौटते वक्त डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को किसी युद्ध में न झोंकने का वादा किया था। लेकिन आखिरकार वे ना-ना कहते हुए ईरान-इजरायल युद्ध में उतर गए। राष्ट्रपति बनने के बाद मध्य पूर्व में शांति लाने की बजाय ट्रंप अब ऐसे क्षेत्र पर शासन कर रहे हैं जो और भी बड़े युद्ध के कगार पर है। एक ऐसा युद्ध जिसमें अमेरिका सक्रिय भागीदार बन गया है।
क्या शांति आएगी या युद्ध छिड़ जाएगा?
ईरान के तीन परमाणु स्थलों पर हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि यह एक सफल अभियान था। उन्हें उम्मीद है कि उनके इस कदम से स्थायी शांति का रास्ता खुलेगा, जहां ईरान के पास अब परमाणु शक्ति बनने की क्षमता नहीं रहेगी। इसके विपरीत, ईरान ने कहा है कि उसके भारी सुरक्षा वाले फोर्डो परमाणु स्थल को केवल मामूली नुकसान हुआ है।साथ ही ट्रंप ने उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, विदेश मंत्री मार्को रुबियो और रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ के साथ मिलकर ईरान को चेतावनी दी कि अगर वे अपना परमाणु कार्यक्रम नहीं छोड़ते हैं, तो उन्हें आगे और हमलों का सामना करना पड़ेगा जो बहुत बुरे होंगे। ट्रंप ने कहा कि अभी भी कई लक्ष्य बचे हैं और अमेरिका उन पर सटीक हमला करेगा। राष्ट्रपति के दावे के बावजूद ईरान में अमेरिकी सैन्य मौजूदगी जारी रहना अमेरिका, क्षेत्र और पूरी दुनिया के लिए एक भयानक स्थिति हो सकती है।
दो सप्ताह की चेतावनी, दो दिन में हमला
राष्ट्रपति ट्रंप ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि ईरान को बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण करना होगा, जिससे राष्ट्रपति के लिए पीछे हटना मुश्किल हो जाएगा। ट्रंप ने ईरान को दो सप्ताह की समयसीमा दी थी, लेकिन यह दो दिन में ही समाप्त हो गई। तो क्या दो सप्ताह की वार्ता महज दिखावा थी? क्या यह ईरान को सुरक्षा का झूठा आश्वासन देने का प्रयास था? या ट्रंप द्वारा नियुक्त शांति दूत स्टीव विटकॉफ की अगुआई में वार्ता विफल हो गई? हमलों से हुए नुकसान के बारे में फिलहाल ज्यादा जानकारी नहीं है और दोनों पक्षों की ओर से सिर्फ दावे किए जा रहे हैं। लेकिन अपने सोशल मीडिया पोस्ट और टेलीविजन संबोधन में ट्रंप ने शांति के लिए द्वार खोलने की कोशिश की। हालांकि, यह एक आशावादी विचार हो सकता है, क्योंकि इजरायल के तमाम हमलों के बावजूद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई के पास अभी भी हथियार हैं।
क्या यह हमला ईरान को कमजोर करेगा?
अब इंतजार का खेल शुरू हो गया है। ईरान अपने तीन स्थलों, जिनमें फोर्डो भी शामिल है, पर हुए हमलों का जवाब कैसे देगा, जिसे उसके परमाणु कार्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है? ट्रंप को उम्मीद है कि अमेरिकी हमले ईरान को बातचीत की मेज पर और रियायतें देने के लिए मजबूर करेंगे, लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि जो देश इजरायली हमले के दौरान बातचीत करने को तैयार नहीं था, वह अमेरिकी बम गिरने के बाद भी बातचीत करने को तैयार होगा।
ट्रंप यह संकेत दे रहे थे कि अमेरिका का हमला एक अनोखी, सफल घटना थी; अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर से हमला करने का दबाव बढ़ेगा। राष्ट्रपति ने सैन्य लाभ के लिए एक गंभीर राजनीतिक जोखिम उठाया है। इससे अमेरिका के 'शांति निर्माता' राष्ट्रपति को राजनीतिक असफलताओं का भी खतरा होगा। इस जोखिम में घरेलू राजनीतिक चिंताओं के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कई गंभीर सवाल भी शामिल हैं।