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टेरर फ्रेंडली रिपोर्टिंग' पर सवालों के घेरे में पश्चिमी मीडिया! 97 दिन बाद भारतीय सुरक्षा बलों ने किया आतंकियों का सफाया, खुला एजेंडे का खेल

टेरर फ्रेंडली रिपोर्टिंग' पर सवालों के घेरे में पश्चिमी मीडिया! 97 दिन बाद भारतीय सुरक्षा बलों ने किया आतंकियों का सफाया, खुला एजेंडे का खेल

पहलगाम में मासूमों के साथ खूनी खेल खेलने वाले। क्या वो सिर्फ़ 'तीन लोग' थे? तीन लोग? जिन्होंने धर्म के नाम पर 26 ज़िंदगियों को गोलियों से छलनी कर दिया। क्या वो 'तीन लोग' थे? ज़रा मेरी बात पर गौर कीजिए। पहलगाम के आतंकवादी क्या थे, ये दुनिया को बताने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन पश्चिमी मीडिया ने उन्हें 'तीन लोग' कहा। इस्लाम के नाम पर कट्टरता और बर्बरता की हदें पार करने वालों को कट्टर आतंकवादी नहीं, बल्कि 'तीन लोग' कहा गया। सोमवार को जब घाटी में देश की माँ-बेटियों का सिंदूर उड़ाने वालों का सफ़ाया हो रहा था, तो समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने क्या लिखा? उसने लिखा कि भारतीय सेना ने कहा है कि उसने भीषण गोलीबारी के दौरान भारतीय कश्मीर में 'तीन लोगों' को मार गिराया है।

'तीन लोग' पश्चिमी मीडिया की भारत और भारतीयों के साथ ये बौद्धिक बेईमानी पुरानी है। लेकिन अब अगर आतंकवादियों के मारे जाने के बाद भी उनके बारे में रिपोर्टिंग करते हुए 'गलत शब्दों' का इस्तेमाल किया जाए, तो ऐसी सोच पर तरस ही आ सकता है। और जहाँ तक उनकी रिपोर्टों में 'भारतीय कश्मीर' कहने की बात है, तो यह उनकी पुरानी आदत है। और शायद वे इसे तभी छोड़ेंगे जब भारत पीओके वापस लेने के अपने अगले लक्ष्य को हासिल कर लेगा।

रॉयटर्स का झूठ बेनकाब

हद तो देखिए, रॉयटर्स यह सब भारतीय सेना का हवाला देकर कहता है। ज़ाहिर है, रिपोर्टिंग करते समय न सिर्फ़ तथ्यों को नकारा गया, बल्कि भारतीय सेना के हवाले से झूठ का सहारा भी लिया गया! यानी ग़लत तरीक़े से हवाला दिया गया। धोखे का यह सिलसिला यहीं नहीं रुकता। रॉयटर्स अपनी रिपोर्ट में आगे लिखता है कि शक है कि ये लोग 22 अप्रैल को भारतीय कश्मीर में हिंदू पर्यटकों पर हुए हमले में शामिल थे। जिसके बाद भारत और उसके पड़ोसी पाकिस्तान के बीच एक गंभीर सैन्य संघर्ष शुरू हो गया।

97 दिन बाद आतंकवादियों का खात्मा
रॉयटर्स के लिए रिपोर्टिंग करने वाले सज्जन अब दो भारतीय समाचार चैनलों का हवाला देते हुए कहते हैं कि ऐसी संभावनाएँ हैं। जबकि मुठभेड़ की ख़बर से साफ़ हो गया था कि घाटी में सुरक्षा बलों ने पहलगाम के दोषियों को उनके अंजाम तक पहुँचा दिया है। 97 दिन बाद उनका खात्मा हो गया है। लेकिन विदेशी मीडिया का दोहरा चरित्र अभी उजागर होना बाकी है। उनके काम करने के तरीके को जानिए। उनके पूर्वाग्रह को समझिए। इसके लिए अब हम आपको उसी रॉयटर्स की दो रिपोर्ट्स बताएँगे कि भारत और पाकिस्तान की आतंकवादी घटनाओं को दो अलग-अलग नज़रिए से कैसे देखा जाता है? जैसा कि हम आपको पहले ही दिखा और बता चुके हैं। पहली तस्वीर पहलगाम में आतंकवादियों के एनकाउंटर पर रॉयटर्स की रिपोर्ट की है। जबकि दूसरी तस्वीर पाकिस्तान में हुए एक आतंकवादी हमले की रिपोर्ट की है। जिसमें वही रॉयटर्स पाकिस्तानी सेना के हवाले से लिखता है कि एक धार्मिक स्थल पर हमले के बाद पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने 100 आतंकवादियों को मार गिराया है।

पश्चिमी मीडिया का पूर्वाग्रह

कल्पना कीजिए, जब भारतीय सेना आतंकवादियों को मारती है, तो तीन आतंकवादी 'तीन लोग' बन जाते हैं। जब पाकिस्तानी सेना ऐसा करती है, तो उन्हें '100 आतंकवादी' कहा जाता है। गौर करने वाली एक और बात है। भारतीय सेना को गलत तरीके से उद्धृत किया जाता है। जबकि पाकिस्तानी सेना पर भरोसा दिखाया जाता है। लेकिन इस सब में, पश्चिमी मीडिया खुद अपनी गरिमा गिराता है। अपनी विश्वसनीयता खोता है। और साथ ही भारत के प्रति अपना पूर्वाग्रह भी दिखाता है।

क्या पश्चिमी मीडिया समय से बहुत पीछे है?

लेकिन सवाल यह है कि क्या पश्चिमी मीडिया समय से बहुत पीछे है? क्या वह भारत के बारे में पश्चिम की बदलती सोच को नहीं समझ रहा है? क्या वह विभिन्न क्षेत्रों और मोर्चों पर भारत की ताकत को न पहचानने की भूल कर रहा है? आइए आपको एक वीडियो दिखाते हैं। यह ओवल मैदान है। टीम इंडिया पाँचवें और अंतिम टेस्ट के लिए अभ्यास कर रही है। वहीं टीम के मुख्य कोच गौतम गंभीर किसी को डाँट रहे हैं। जिस व्यक्ति को डाँटा जा रहा है, वह ओवल का पिच क्यूरेटर है। कारण का खुलासा नहीं किया गया। लेकिन अंग्रेज़ पिच क्यूरेटर को जो सबक सिखाया जा रहा था, वह लंबा और तीखा था। सोशल मीडिया पर भारतीयों ने इसका खूब आनंद लिया।

भारत के विरुद्ध पश्चिमी देशों का एजेंडा-आधारित रवैया

यही सवाल फिर उठता है कि जब गौतम गंभीर अंग्रेज़ पिच क्यूरेटर को सबक सिखाते हैं, तो हमें राहत क्यों मिलती है? इसका जवाब पश्चिमी मीडिया और पश्चिमी देशों का भारत के विरुद्ध एजेंडा-आधारित रवैया और निशाना साधने वाली सोच है। जब निराश बेन स्टोक्स रवींद्र जडेजा और वाशिंगटन सुंदर के शतक से पहले मैच खत्म करने की कोशिश करते हैं, तो गावस्कर के साथ-साथ पूरा देश यह क्यों कहता है कि मैच तो चलता रहेगा? शायद इसलिए क्योंकि पश्चिम भारत के बारे में अपने पूर्वाग्रहों से बाहर नहीं निकल पा रहा है। रॉयटर्स द्वारा आतंकवादियों के लिए 'तीन लोग' शब्द का इस्तेमाल इसका ताज़ा सबूत है।

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