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ईरान से लीक हुआ रेडिएशन बन सकता है वैश्विक तबाही की वजह, जाने अगर ऐसा हुआ तो खौफनाक होगा परिणाम ?

ईरान से लीक हुआ रेडिएशन बन सकता है वैश्विक तबाही की वजह, जाने अगर ऐसा हुआ तो खौफनाक होगा परिणाम ?

अमेरिका ने ईरान पर हमला कर दिया है। अमेरिका ने ईरान के सबसे बड़े परमाणु ठिकाने फोर्डो पर बंकर बस्टर बम गिराए। नतांज और इस्फ़हान परमाणु ठिकानों पर टॉमहॉक मिसाइलें दागी गईं। इसराइल और अमेरिका के हमले से ईरान में रेडिएशन लीक होने का ख़तरा है। हालांकि, ईरान का कहना है कि हमले के बाद तीनों परमाणु ठिकानों से कोई रेडिएशन लीक नहीं हुआ है। लीकेज चेकिंग मशीनों से इलाके की जाँच की गई है। तीनों ठिकानों के आस-पास रहने वाले लोग सुरक्षित हैं। सऊदी अरब ने भी साफ़ किया है कि ईरान पर अमेरिका के हमले के बाद कोई रेडियोधर्मी लीक नहीं हुआ है। देश के परमाणु और रेडियोलॉजिकल विनियामक आयोग का कहना है कि ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका की बमबारी के बाद सऊदी अरब और पड़ोसी खाड़ी देशों पर कोई रेडियोधर्मी प्रभाव नहीं पाया गया है, लेकिन क्या परमाणु ठिकानों से रेडिएशन लीक हो सकता है? क्या रेडिएशन आस-पास के इलाकों में फैल सकता है? रेडिएशन लीक ईरान को किस हद तक प्रभावित करेगा? आइए जानते हैं...

ईरान की परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी का कहना है कि अगर ईरान के परमाणु स्थलों से रेडिएशन लीक होता है, तो इससे चेरनोबिल जैसी आपदा आ सकती है। इसका असर पूरे मध्य पूर्व और खाड़ी देशों पर पड़ेगा। लाखों लोगों की जान जोखिम में पड़ सकती है। अब तक फोर्डो, नतांज, इस्फ़हान, अराक और खोंडब परमाणु स्थलों पर हमला हो चुका है। अराक और खोंडब में अभी यूरेनियम उत्पादन शुरू नहीं हुआ है।

फोर्डो और नतांज भूमिगत बने हैं, इसलिए रेडिएशन रिसाव का असर सिर्फ़ 2 से 5 किलोमीटर के दायरे में ही होगा, लेकिन सबसे बड़ा ख़तरा बुशहर परमाणु स्थल पर हमले से होगा। क्योंकि यह एक ऑपरेशनल साइट है और खाड़ी के किनारे बनी है। अगर इस साइट पर हमला हुआ तो रेडियोधर्मी तत्व हवा में फैल जाएँगे और समुद्र के पानी में मिल जाएँगे। इससे सबसे ज़्यादा नुकसान खाड़ी देशों को होगा, क्योंकि ये देश पीने के लिए समुद्र के पानी का इस्तेमाल करते हैं।

कैसे होगा रेडिएशन रिसाव?

विशेषज्ञों का कहना है कि परमाणु संयंत्रों में यूरेनियम को प्रोसेस करने वाले सेंट्रीफ्यूज होते हैं। यूरेनियम को प्रोसेस करते समय जब सेंट्रीफ्यूज घूमता है, तो यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड नामक गैस बनती है। यह गैस यूरेनियम और फ्लोरीन का मिश्रण होती है। अगर किसी हमले के कारण सेंट्रीफ्यूज नष्ट हो जाते हैं, तो उनमें बनने वाली गैस बाहर आ जाएगी, जो रासायनिक विकिरण का सबसे बड़ा कारण बनेगी। इस गैस के कारण विस्फोट भी हो सकते हैं। अगर यह गैस शरीर में भर जाए, तो मौके पर ही मौत हो जाएगी।

अगर विकिरण फैल गया तो क्या होगा?

अगर किसी परमाणु संयंत्र से विकिरण रिसाव होता है, तो यह जानलेवा साबित होगा। विकिरण हवा, पानी और मिट्टी में फैल सकता है। त्वचा जल सकती है। उल्टी होगी और लोग बेहोश हो जाएंगे। कई अंगों के फेल होने से मौत हो सकती है। 1986 में चेरनोबिल में हुए विकिरण रिसाव का लोगों पर ऐसा ही असर हुआ था। कई कर्मचारियों और दमकल कर्मियों की जान चली गई थी। मृतक एक्यूट रेडिएशन सिंड्रोम (ARS) के शिकार पाए गए थे। विकिरण के संपर्क में आने से लोग कैंसर, विकलांगता, बांझपन, थायरॉयड, ल्यूकेमिया जैसी बीमारियों से ग्रसित हो सकते हैं।

पर्यावरण पर इसका क्या असर होगा?

ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में परमाणु विज्ञान और इंजीनियरिंग की प्रतिष्ठित प्रोफेसर और नेशनल काउंसिल ऑन रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड मेजरमेंट की अध्यक्ष कैथरीन एन हिगली का कहना है कि अगर ईरान के परमाणु स्थलों से विकिरण लीक होता है, तो चेरनोबिल जैसी स्थिति पैदा नहीं होगी। पर्यावरण पर भी कोई गंभीर असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि अभी परमाणु स्थलों पर परमाणु हथियार नहीं बनाए जा रहे हैं, बल्कि परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री बनाई जा रही है।

ईरान पर इजरायल और अमेरिका के हमले का मकसद ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता को खत्म करना है। जब संसाधन ही नहीं हैं, तो परमाणु हथियार कैसे बनेंगे? यूरेनियम इतना रेडियोधर्मी नहीं है कि उससे जान को खतरा हो। हां, यूरेनियम के प्रसंस्करण से बनने वाली गैस खतरनाक हो सकती है, लेकिन इसका असर बड़े इलाके में नहीं होगा। इससे बचने के लिए परमाणु स्थल के आसपास के रिहायशी इलाकों को खाली कराया जा सकता है।

अमेरिका ने ईरान पर हमला कर दिया है। अमेरिका ने ईरान के सबसे बड़े परमाणु ठिकाने फोर्डो पर बंकर बस्टर बम गिराए। नतांज और इस्फ़हान परमाणु ठिकानों पर टॉमहॉक मिसाइलें दागी गईं। इसराइल और अमेरिका के हमले से ईरान में रेडिएशन लीक होने का ख़तरा है। हालांकि, ईरान का कहना है कि हमले के बाद तीनों परमाणु ठिकानों से कोई रेडिएशन लीक नहीं हुआ है। लीकेज चेकिंग मशीनों से इलाके की जाँच की गई है। तीनों ठिकानों के आस-पास रहने वाले लोग सुरक्षित हैं। सऊदी अरब ने भी साफ़ किया है कि ईरान पर अमेरिका के हमले के बाद कोई रेडियोधर्मी लीक नहीं हुआ है। देश के परमाणु और रेडियोलॉजिकल विनियामक आयोग का कहना है कि ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका की बमबारी के बाद सऊदी अरब और पड़ोसी खाड़ी देशों पर कोई रेडियोधर्मी प्रभाव नहीं पाया गया है, लेकिन क्या परमाणु ठिकानों से रेडिएशन लीक हो सकता है? क्या रेडिएशन आस-पास के इलाकों में फैल सकता है? रेडिएशन लीक ईरान को किस हद तक प्रभावित करेगा? आइए जानते हैं...

ईरान की परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी का कहना है कि अगर ईरान के परमाणु स्थलों से रेडिएशन लीक होता है, तो इससे चेरनोबिल जैसी आपदा आ सकती है। इसका असर पूरे मध्य पूर्व और खाड़ी देशों पर पड़ेगा। लाखों लोगों की जान जोखिम में पड़ सकती है। अब तक फोर्डो, नतांज, इस्फ़हान, अराक और खोंडब परमाणु स्थलों पर हमला हो चुका है। अराक और खोंडब में अभी यूरेनियम उत्पादन शुरू नहीं हुआ है।

फोर्डो और नतांज भूमिगत बने हैं, इसलिए रेडिएशन रिसाव का असर सिर्फ़ 2 से 5 किलोमीटर के दायरे में ही होगा, लेकिन सबसे बड़ा ख़तरा बुशहर परमाणु स्थल पर हमले से होगा। क्योंकि यह एक ऑपरेशनल साइट है और खाड़ी के किनारे बनी है। अगर इस साइट पर हमला हुआ तो रेडियोधर्मी तत्व हवा में फैल जाएँगे और समुद्र के पानी में मिल जाएँगे। इससे सबसे ज़्यादा नुकसान खाड़ी देशों को होगा, क्योंकि ये देश पीने के लिए समुद्र के पानी का इस्तेमाल करते हैं।

कैसे होगा रेडिएशन रिसाव?

विशेषज्ञों का कहना है कि परमाणु संयंत्रों में यूरेनियम को प्रोसेस करने वाले सेंट्रीफ्यूज होते हैं। यूरेनियम को प्रोसेस करते समय जब सेंट्रीफ्यूज घूमता है, तो यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड नामक गैस बनती है। यह गैस यूरेनियम और फ्लोरीन का मिश्रण होती है। अगर किसी हमले के कारण सेंट्रीफ्यूज नष्ट हो जाते हैं, तो उनमें बनने वाली गैस बाहर आ जाएगी, जो रासायनिक विकिरण का सबसे बड़ा कारण बनेगी। इस गैस के कारण विस्फोट भी हो सकते हैं। अगर यह गैस शरीर में भर जाए, तो मौके पर ही मौत हो जाएगी।

अगर विकिरण फैल गया तो क्या होगा?

अगर किसी परमाणु संयंत्र से विकिरण रिसाव होता है, तो यह जानलेवा साबित होगा। विकिरण हवा, पानी और मिट्टी में फैल सकता है। त्वचा जल सकती है। उल्टी होगी और लोग बेहोश हो जाएंगे। कई अंगों के फेल होने से मौत हो सकती है। 1986 में चेरनोबिल में हुए विकिरण रिसाव का लोगों पर ऐसा ही असर हुआ था। कई कर्मचारियों और दमकल कर्मियों की जान चली गई थी। मृतक एक्यूट रेडिएशन सिंड्रोम (ARS) के शिकार पाए गए थे। विकिरण के संपर्क में आने से लोग कैंसर, विकलांगता, बांझपन, थायरॉयड, ल्यूकेमिया जैसी बीमारियों से ग्रसित हो सकते हैं।

पर्यावरण पर इसका क्या असर होगा?

ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में परमाणु विज्ञान और इंजीनियरिंग की प्रतिष्ठित प्रोफेसर और नेशनल काउंसिल ऑन रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड मेजरमेंट की अध्यक्ष कैथरीन एन हिगली का कहना है कि अगर ईरान के परमाणु स्थलों से विकिरण लीक होता है, तो चेरनोबिल जैसी स्थिति पैदा नहीं होगी। पर्यावरण पर भी कोई गंभीर असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि अभी परमाणु स्थलों पर परमाणु हथियार नहीं बनाए जा रहे हैं, बल्कि परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री बनाई जा रही है।

ईरान पर इजरायल और अमेरिका के हमले का मकसद ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता को खत्म करना है। जब संसाधन ही नहीं हैं, तो परमाणु हथियार कैसे बनेंगे? यूरेनियम इतना रेडियोधर्मी नहीं है कि उससे जान को खतरा हो। हां, यूरेनियम के प्रसंस्करण से बनने वाली गैस खतरनाक हो सकती है, लेकिन इसका असर बड़े इलाके में नहीं होगा। इससे बचने के लिए परमाणु स्थल के आसपास के रिहायशी इलाकों को खाली कराया जा सकता है।

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