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पाकिस्तान पर 10 साल में 5 गुना बढ़ा कर्ज, 67.525 ट्रिलियन तक पहुंचा आंकड़ा, क्या डिफॉल्‍ट होगा जिन्‍ना का देश?

'कर्ज लेकर घी पीना' यह कहावत इस वक्त अगर किसी देश पर सबसे सटीक बैठती है तो वह है पाकिस्तान। आर्थिक तंगी, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक संकट के बीच पाकिस्तान लगातार दुनिया भर से कर्ज पर कर्ज लेता जा रहा है, लेकिन उसे चुकाने की....
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'कर्ज लेकर घी पीना' यह कहावत इस वक्त अगर किसी देश पर सबसे सटीक बैठती है तो वह है पाकिस्तान। आर्थिक तंगी, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक संकट के बीच पाकिस्तान लगातार दुनिया भर से कर्ज पर कर्ज लेता जा रहा है, लेकिन उसे चुकाने की कोई स्पष्ट योजना नहीं है। इसके उलट, पाकिस्तानी नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसे बयान दे रहा है मानो वह कोई आर्थिक महाशक्ति हो। हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में पाकिस्तान का कुल कर्ज बढ़कर 76,007 अरब पाकिस्तानी रुपये पहुंच गया है। यह स्थिति खुद पाकिस्तान सरकार ने स्वीकार की है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि पाकिस्तान कब तक कर्ज के सहारे अपनी अर्थव्यवस्था को ढोता रहेगा?

10 वर्षों में पांच गुना बढ़ा कर्ज

पाकिस्तान का मौजूदा कर्ज भार भारतीय रुपये में करीब 23.1 लाख करोड़ और अमेरिकी डॉलर में लगभग 269.3 बिलियन डॉलर के बराबर है। यह आंकड़े न सिर्फ चिंताजनक हैं, बल्कि आगामी आर्थिक संकट का संकेत भी देते हैं। वित्त वर्ष 2020-21 में पाकिस्तान पर 39,860 अरब पाकिस्तानी रुपये का कर्ज था, जो मात्र चार वर्षों में लगभग दोगुना हो चुका है। एक दशक पहले यानी 2013-14 में यह आंकड़ा 17,380 अरब पाकिस्तानी रुपये था। इस तरह बीते 10 वर्षों में पाकिस्तान का कुल सार्वजनिक कर्ज करीब पांच गुना बढ़ा है। आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से चेताया गया है कि यदि इस कर्ज प्रबंधन को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो यह ब्याज भुगतान बढ़ाने, राजकोषीय असंतुलन पैदा करने और दीर्घकालिक आर्थिक असुरक्षा का कारण बन सकता है।

पाकिस्तान की ‘भीख नीति’ और विश्व मंच पर शर्मिंदगी

पाकिस्तान लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय संगठनों और तथाकथित मित्र देशों से राहत पैकेज मांगने के लिए कुख्यात रहा है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ स्वयं यह कह चुके हैं कि “जब हम किसी मित्र देश को फोन करते हैं, तो उन्हें लगता है कि हम पैसे मांगने आए हैं।” उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि कई छोटे देश भी पाकिस्तान से आगे निकल चुके हैं और पाकिस्तान बीते 75 वर्षों से भीख का कटोरा लेकर घूम रहा है। यह बयान पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि को और भी कमजोर करता है। वहीं, विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने रिकॉर्ड स्तर पर लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। इसके उलट पाकिस्तान की करीब 45 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है, जबकि 16.5 प्रतिशत लोग अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं। यानी लगभग आधी आबादी को दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं, लेकिन ऊपर से नेताओं की हेकड़ी कम होने का नाम नहीं ले रही।

IMF, ADB से लगातार कर्ज और अब भी सुधार की उम्मीद

पाकिस्तान ने हाल ही में IMF और ADB जैसे वैश्विक संगठनों से बड़ा कर्ज लिया है। इसके साथ ही सरकार ने घरेलू बैंकों से 51,500 अरब और बाहरी स्रोतों से 24,500 अरब पाकिस्तानी रुपये का ऋण भी लिया है। फिर भी, पाकिस्तान के वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब का दावा है कि देश की अर्थव्यवस्था बीते दो वर्षों से सुधार के रास्ते पर है और यह प्रक्रिया चालू वित्त वर्ष में और तेज हुई है। हालांकि, यह दावा तब और खोखला लगने लगता है जब आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान अपने बजटीय खर्चों का बड़ा हिस्सा केवल कर्ज की किस्तें चुकाने में खर्च कर रहा है। सरकार की समीक्षा रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि वित्त वर्ष 2024-25 में पाकिस्तान सरकार की नीतियों पर गहन नजर रखी जाएगी, ताकि यह देखा जा सके कि क्या देश वाकई आर्थिक सुधार की ओर बढ़ रहा है या फिर यह भी केवल एक राजनीतिक बयानबाजी है।

पाकिस्तान की आर्थिक दिशा पर सवाल

पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति न केवल उसकी विफल आंतरिक नीतियों को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि वहां की सरकारें दीर्घकालिक आर्थिक सोच के बजाय तात्कालिक राहत पैकेजों पर निर्भर रही हैं। न तो निर्यात बढ़ा है, न ही औद्योगिक विकास हुआ है, और न ही विदेशी निवेशकों का भरोसा वापस लौटा है। जहां भारत जैसी अर्थव्यवस्थाएं स्थिरता की ओर बढ़ रही हैं, वहीं पाकिस्तान एक नाजुक कगार पर खड़ा है—जहां से जरा सी चूक उसे एक गहरे वित्तीय संकट में धकेल सकती है।

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