असीम मुनीर का फील्ड मार्शल बनना, पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी! अयूब खान की तरह तख्तापलट न कर दें 'मुल्ला मुनीर'

भारत के ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तानी सेना को चार दिनों में भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस हार के बावजूद पाकिस्तान ने सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत कर दिया, जिसे स्थानीय पत्रकारों ने युद्ध की विफलता को छुपाने की एक चाल बताया। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की स्थिति कमजोर हो रही है और संसद में उनकी आलोचना हो रही है। मुनीर की कट्टरपंथी सोच और सत्ता की भूख तख्तापलट की संभावना को बढ़ा रही है।
भारत से जंग में मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान में सबकुछ बेकाबू हो गया है. जिस तरह से भारत ने महज 4 दिनों में ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया, अब पाकिस्तान के जनरल इस हार को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। पाकिस्तान में पदोन्नति पाने के बाद जनरल असीम मुनीर ने अब नई पटकथा लिखनी शुरू कर दी है। निर्देशक वो स्क्रिप्ट है जो एक बार फिर से एक बार फिर से प्रकाशित हो चुकी है।. आइए जानें कि जनरल मुनीर यह सब कैसे कर रहे हैं।
शहबाज शरीफ की गिरती प्रतिष्ठा और कमजोर होती ताकत
पाकिस्तान में शहबाज शरीफ की स्थिति और रुतबा आप सांसद शाहिद अहमद खट्टक के बयान से समझ सकते हैं। भारत से जंग में मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान में सबकुछ बेकाबू हो गया है. जिस तरह से भारत ने महज 4 दिनों में ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया, अब पाकिस्तान के जनरल इस हार को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। पाकिस्तान में पदोन्नति पाने के बाद जनरल असीम मुनीर ने अब नई पटकथा लिखनी शुरू कर दी है। निर्देशक वो स्क्रिप्ट है जो एक बार फिर से एक बार फिर से प्रकाशित हो चुकी है।. आइए जानें कि जनरल मुनीर यह सब कैसे कर रहे हैं।
जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाने का विवादास्पद निर्णय
पाकिस्तान सरकार ने अपने सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को अब फील्ड मार्शल बनाने का फैसला किया है। इसके अलावा, पाकिस्तान सरकार ने एयर चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर सिद्धू को उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद भी पाकिस्तानी वायुसेना के प्रमुख के रूप में बनाए रखने का फैसला किया है। और ये दोनों निर्णय प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में लिए गए हैं।
एक असफल जनरल को 'नायक' के रूप में सामने लाया गया
पाकिस्तान में प्रधानमंत्री कार्यालय की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि 'जनरल असीम मुनीर को उनके साहसी नेतृत्व, रणनीतिक सोच और भारत के खिलाफ सैन्य अभियान में निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के कारण यह पदोन्नति दी गई है' और जनरल असीम मुनीर ने कहा, 'मैं यह सम्मान पूरे देश, पाकिस्तान के सशस्त्र बलों, विशेष रूप से नागरिक और सैन्य शहीदों और दिग्गजों को समर्पित करता हूं।'
पाकिस्तानी पत्रकारों का गुस्सा
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार मोईद पीरजादा ने भी पाकिस्तान सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान भारत के किसी भी सैन्य अड्डे पर हमला करने में विफल रहा है। हालांकि पाकिस्तान में हार के लिए जनरल असीम मुनीर को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसका मतलब यह है कि शाहबाज शरीफ केवल पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी जनरल की कठपुतली बन गए हैं। और जैसा जनरल आदेश देते हैं, शहबाज शरीफ बिल्कुल वैसा ही कर रहे हैं।
तख्तापलट की तैयारी: क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?
अब सवाल यह उठता है कि क्या जनरल मुनीर ने पदोन्नति पाकर पाकिस्तान में तख्तापलट की तैयारी कर ली है। तो चलिए समझते हैं, मुनीर की पूरी योजना क्या है? पाकिस्तान में मंगलवार को बिना किसी उकसावे के तख्तापलट हो गया। भारत के ऑपरेशन सिंदूर के तहत हवाई हमले करने में विफल रहे देश के आतंकवाद-रोधी बल के प्रमुख ने अपनी वर्दी में पदोन्नति के सितारे जोड़ लिए हैं। फील्ड मार्शल बनने की पदोन्नति तुरंत नहीं हुई। बल्कि उन्होंने इसे चरणबद्ध तरीके से सुनिश्चित किया। नवंबर 2024 में असीम मुनीर ने यह सुनिश्चित किया था कि पद पर रहते हुए उन्हें तीन से पांच साल का विस्तार मिल सके। इसके बाद असीम ने पहलगाम की पटकथा लिखी और फील्ड मार्शल के पद पर रहते हुए जीवन भर वर्दी में रहने का फैसला किया। जाहिर है, मुनीर पहले से ज्यादा ताकतवर और बेलगाम भी होगा।
तख्तापलट की पुरानी कहानी: पाकिस्तान का इ तिहास
- जब किसी देश की सेना वर्तमान सरकार को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ले लेती है तो उसे सैन्य तख्तापलट कहा जाता है। पाकिस्तान में ऐसा 4-4 बार हुआ है।
- पाकिस्तान में पहला तख्तापलट 1953-54 में हुआ, जिसके दौरान गवर्नर-जनरल गुलाम मोहम्मद ने प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन की सरकार को बर्खास्त कर दिया।
- दूसरा तख्तापलट 1958 में हुआ, जब पाकिस्तानी राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर अली मिर्ज़ा ने पाकिस्तान की संविधान सभा और फिरोज खान नून की तत्कालीन सरकार को बर्खास्त कर दिया।
- तीसरी बार 1977 में सेना प्रमुख जनरल जियाउल हक के नेतृत्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को उखाड़ फेंका गया।
- चौथा तख्तापलट 1999 में सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ द्वारा किया गया।
- और अब पाकिस्तान में पांचवीं बार जनरल असीम मुनीर ने तख्तापलट के संकेत देने शुरू कर दिए हैं। अब हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि जनरल असीम मुनीर ने ऐसा खेल क्यों खेला।
मुनीर की जिहादी सोच और भारत विरोध
पाकिस्तान सरकार भले ही ऑपरेशन सी दूरी में हार मान लो. पाकिस्तान के लोग भारतीय हमलों से बुरी तरह डरे हुए हैं। लेकिन पाकिस्तान का यह जनरल हार स्वीकार नहीं करना चाहता, क्योंकि आसिम मुनीर आतंक के आकाओं की कठपुतली बन चुका है। पाकिस्तान का जनरल जिहादी बन गया है। यदि वह हार मान लेगा तो उसी दिन उसका अंत निश्चित हो जाएगा। क्योंकि जनरल मुनीर सिर्फ नफरत और आतंक के दम पर पाकिस्तान में टिके हुए हैं। वह पाकिस्तान की नई पीढ़ी में जिहादी सोच को जीवित रखना चाहते हैं।
जो अब तक पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि किस तरह पाकिस्तान में आतंकवाद को खाद-पानी दिया जाता है। जनरल मुनीर पाकिस्तान के अंदर इस रिकॉर्ड को बरकरार रखना चाहते हैं। पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले से ठीक पहले उन्होंने कश्मीर को गले की नस कहा था। विज्ञापन
फील्ड मार्शल बनना - सुरक्षा कवच या तानाशाही की नई चाल?
लेकिन अब झेलम में बहुत पानी बह चुका है, ये नया भारत है, भले ही पाकिस्तान का आर्मी चीफ फील्ड मार्शल बनकर तख्तापलट की साजिश रचे, अब भारतीय सेना पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाएगी, उसकी नस्लें याद रखेंगी। आसिम मुनीर पाकिस्तानी सेना के प्रमुख हैं, अब पाकिस्तान की कठपुतली सरकार ने आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाने का ऐलान किया है। जो लोग पाकिस्तान में जीत का झूठा जश्न मना रहे थे, वे अब मुनीर की पदोन्नति को इनाम के तौर पर देख रहे हैं। आसिम मुनीर को बधाई तो मिल रही है, लेकिन प्रमोशन के पीछे पूरा खेल क्या है, एक युद्ध हारने वाले जनरल को पाकिस्तान में इनाम के तौर पर प्रमोशन क्यों मिला, फील्ड मार्शल का पद, मुनीर को कांटों का ताज क्यों, आइए समझते हैं।
जंग में हार, फिर भी इनाम क्यों?
युद्ध के मैदान में भारतीय योद्धाओं ने आसिम मुनीर की सेना को कुचल दिया। न तो आसिम मुनीर की साजिशें काम आईं और न ही आसिम मुनीर की सेना भारत के योद्धाओं का मुकाबला कर सकी। लेकिन पाकिस्तान की कठपुतली सरकार ने आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बना दिया है। दुनिया जानती है कि इस प्रमोशन के पीछे असीम मुनीर अपनी नाकामी छुपाना चाहता है। क्योंकि जनरल पद छोड़ते ही पाकिस्तान से भाग सकते थे। मुनीर ने ऐसी ही एक सेवानिवृत्ति उपरांत योजना के तहत व्यवस्था की है। योजना वही है जो अन्य जनरलों के साथ हुई थी, मुनीर के साथ ऐसा नहीं होगा। विज्ञापन
मुशर्रफ की तरह अंत से बचने की कोशिश
जब पाकिस्तान सेना प्रमुख के कब्जे में था, तब सरकारें सेना प्रमुख के फैसलों से बनती और गिरती थीं। लेकिन जैसे ही कुर्सी चली जाती है, पाकिस्तानी सेना के जनरलों के अच्छे दिन बुरे दिनों में बदल जाते हैं। परवेज़ मुशर्रफ के बुरे दिन तब शुरू हुए जब उन्होंने सेना छोड़ दी और राजनीति में प्रवेश किया। किस्मत के सितारे इतने खराब हो गए कि सबसे ताकतवर तानाशाह कहे जाने वाले परवेज को देश छोड़ना पड़ा।
पाकिस्तानी सेना के जनरलों पर भ्रष्टाचार के आरोप कोई नई बात नहीं है। मुशर्रफ से लेकर कमर जावेद बाजवा तक, भ्रष्टाचार में पकड़े गए लोग भ्रष्टाचार के मामलों में जेल जाने के डर से देश छोड़कर भाग गए। आसिम मुनीर भी जानते हैं कि कुर्सी जाने के बाद कुछ भी संभव है। यही कारण है कि असीम मुनीर ने देश छोड़कर भाग चुके पूर्व सेना जनरलों से सबक लेते हुए अपनी सेवानिवृत्ति के बाद की योजना बनाई। मुनीर ने फील्ड मार्शल बनने के लिए कई हथकंडे अपनाए।
पाकिस्तानी जनरल मुनीर एक कट्टर मौलाना की तरह बकवास करते हैं और पाकिस्तानी लोग पाकिस्तानी जनता को सिर्फ हिंदुओं के खिलाफ भड़काने का काम करते हैं। अपनी जिहादी सोच के साथ, मुनीर ने देश में पाकिस्तानी सेना के प्रति बढ़ते अविश्वास का मुकाबला करने का प्रयास किया। एक तरफ हिंदुओं के खिलाफ जहर उगला गया, दूसरी तरफ कश्मीर में पहलगाम आतंकी हमले ने शांति छीन ली। ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान के पूर्व जनरल जिया-उल-हक ने किया था। ऑपरेशन टोपैक पार्ट-2 शुरू करके। जनरल जियाउल हक ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से कहा था कि मैं भारत को हजारों घावों से लहूलुहान करना चाहता हूं।
जिया-उल-हक की राह पर मुनीर
दरअसल, 1971 के युद्ध में हार और बांग्लादेश के निर्माण के बाद पाकिस्तान भारत से बदला लेना चाहता था। 1980 के दशक में अफ़गानिस्तान में सोवियत संघ के विरुद्ध युद्ध चल रहा था। पाकिस्तान ने अमेरिका और सऊदी अरब की मदद से अफगान मुजाहिद्दीन को प्रशिक्षण और हथियार मुहैया कराए। जब यह युद्ध ख़त्म होने लगा तो पाकिस्तान ने इन लड़ाकों को कश्मीर की ओर मोड़ दिया। 1988 में जिया-उल-हक ने आईएसआई के रावलपिंडी मुख्यालय में एक बैठक की, जहां ऑपरेशन टोपैक की रूपरेखा तैयार की गई। इसका उद्देश्य धर्म के आधार पर नफरत फैलाकर भारत को अशांत करना था। इसके लिए आईएसआई की मदद से कश्मीर में सशस्त्र मुजाहिद्दीन भेजने का निर्णय लिया गया।
मुनीर का प्रमोशन: 'कांटों का ताज'
अब जिया-उल-हक के पदचिन्हों पर चलते हुए, असीम मुनीर पाकिस्तान के इतिहास में दूसरे फील्ड मार्शल बन गए हैं। इससे पहले अयूब खान को फील्ड मार्शल बनाया गया था, यानी मुनीर को लगता है कि फील्ड मार्शल पाकिस्तान में सुरक्षित रहेंगे, तो यह बहुत बड़ी गलती है।