कंगाल हुआ पाकिस्तान को आई अब अपनी राष्ट्रीय एयरलाइंस बेचने की नौबत, वीडियो में देखें PIA की 75% हिस्सेदारी आज होगी नीलाम
गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा पाकिस्तान अब अपनी राष्ट्रीय धरोहर मानी जाने वाली पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) को बेचने की तैयारी में है। शहबाज शरीफ सरकार ने PIA की 75 प्रतिशत हिस्सेदारी निजी हाथों में देने का फैसला किया है। यह कदम अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के दबाव और देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति के बीच उठाया गया है। पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, PIA के लिए बोली जमा करने की आखिरी तारीख 23 दिसंबर तय की गई है।
हालांकि, बोली प्रक्रिया पूरी होने से ठीक दो दिन पहले ही एक बड़ा झटका सामने आया है। पाकिस्तानी सेना से जुड़ी खाद बनाने वाली कंपनी फौजी फर्टिलाइजर प्राइवेट लिमिटेड (FFPL) ने इस बोली प्रक्रिया से अपना नाम वापस ले लिया है। FFPL के हटने के बाद अब PIA को खरीदने की दौड़ में केवल तीन दावेदार ही बचे हैं। इससे सरकार की उम्मीदों को झटका लगने की आशंका जताई जा रही है, क्योंकि कम बोलीदाताओं के चलते PIA को अपेक्षित कीमत मिलना मुश्किल हो सकता है।
पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस लंबे समय से घाटे में चल रही है। खराब प्रबंधन, बढ़ते कर्ज, पुराना बेड़ा और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध जैसे कारणों से PIA की हालत लगातार बिगड़ती गई। हालात इतने खराब हो गए कि कई बार कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं मिल पाया। सरकार पर लगातार सब्सिडी का बोझ बढ़ता गया, जिसे अब वह उठाने की स्थिति में नहीं है।
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति की बात करें तो देश 1958 से अब तक 20 बार IMF से कर्ज ले चुका है। हर बार IMF की शर्तों के तहत पाकिस्तान को कड़े आर्थिक फैसले लेने पड़े हैं। मौजूदा संकट में भी IMF के दबाव में सरकार को सब्सिडी खत्म करने, टैक्स बढ़ाने और सरकारी संपत्तियों के निजीकरण जैसे फैसले करने पड़ रहे हैं। PIA का निजीकरण भी इसी नीति का हिस्सा माना जा रहा है।
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान अपनी अहम राष्ट्रीय संपत्तियों को बेच रहा हो। इससे पहले भी पाकिस्तान अपने कई बंदरगाहों और एयरपोर्ट्स को निजी कंपनियों या विदेशी निवेशकों को सौंप चुका है। पिछले साल पाकिस्तान सरकार ने इस्लामाबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट को ठेके पर देने का फैसला किया था, जिसे लेकर देश में काफी विरोध भी हुआ था।
विशेषज्ञों का मानना है कि PIA का निजीकरण सरकार के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकता है। एक ओर इससे सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ कम होगा, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय एयरलाइंस पर नियंत्रण कमजोर होने और कर्मचारियों के भविष्य को लेकर चिंता भी बढ़ेगी। PIA में हजारों कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनके रोजगार पर भी इस फैसले का सीधा असर पड़ सकता है।
फिलहाल पाकिस्तान सरकार बोली प्रक्रिया को तय समय पर पूरा करने की कोशिश में है। 23 दिसंबर के बाद यह साफ हो जाएगा कि PIA की 75 प्रतिशत हिस्सेदारी किसके हाथों में जाती है। यह फैसला न सिर्फ पाकिस्तान की आर्थिक दिशा तय करेगा, बल्कि यह भी बताएगा कि संकट के दौर में देश अपनी रणनीतिक संपत्तियों को बचाने में कितना सक्षम है।

