'देश में चंद लोगों के पास ज्यादा पैसा', क्या नितिन गडकरी अपनी ही सरकार के दावों से हैं सहमत?
केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी के हालिया बयान ने राजनीतिक और आर्थिक हलकों में हलचल मचा दी है। नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान गडकरी ने भारत में बढ़ती गरीबी और धन के असमान वितरण को लेकर चिंता जताई। उन्होंने साफ कहा कि देश में गरीबों की संख्या बढ़ रही है, जबकि सारा पैसा कुछ अमीर लोगों के पास केंद्रित होता जा रहा है। उनके इस बयान से मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर भी सवाल उठने लगे हैं, खासकर जब यह टिप्पणी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा सार्वजनिक मंच पर की गई है।
गडकरी ने क्या कहा?
गडकरी ने कहा, “धीरे-धीरे गरीबों की संख्या बढ़ रही है और कुछ अमीर लोगों के हाथों में ही सारा धन सिमटता जा रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। देश की अर्थव्यवस्था को इस प्रकार विकसित किया जाना चाहिए जिससे रोजगार सृजित हों और ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिले। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि धन का विकेंद्रीकरण (decentralization of wealth) आवश्यक है ताकि आर्थिक लाभ समाज के हर हिस्से तक पहुंचे। इसके लिए गडकरी ने नौकरी निर्माण, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और ग्रामीण विकास आधारित नीतियों की वकालत की।
मोदी सरकार के लिए असहज सवाल
नितिन गडकरी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब मोदी सरकार खुद को ‘गरीबी हटाने और अमृतकाल की ओर बढ़ते भारत’ के नारे के साथ प्रस्तुत कर रही है। लेकिन गडकरी की बातों से यह संकेत मिलता है कि जमीनी स्तर पर आर्थिक असमानता एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
उनके अनुसार, अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्रों—कृषि, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र—के बीच संतुलन नहीं है। उन्होंने बताया कि:
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सेवा क्षेत्र का जीडीपी में योगदान लगभग 52-54% है,
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विनिर्माण का 22-24%,
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लेकिन 65-70% आबादी कृषि पर निर्भर होने के बावजूद कृषि का योगदान महज 12% के आसपास है।
यह स्थिति ग्रामीण भारत की आर्थिक उपेक्षा को दर्शाती है, जिसे दूर करने की जरूरत है।
पुरानी सरकारों की नीतियों की सराहना
गडकरी ने अपने भाषण में पूर्व प्रधानमंत्रियों पी. वी. नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों की तारीफ की, लेकिन साथ ही अनियंत्रित केंद्रीकरण (centralization) के खतरों को भी उजागर किया। उन्होंने आगाह किया कि अगर आर्थिक नीतियों में संतुलन नहीं लाया गया तो यह सामाजिक असंतोष और असमानता को और बढ़ा सकता है।
विचारधारात्मक गहराई
गडकरी ने स्वामी विवेकानंद का उद्धरण देते हुए कहा, “जिसका पेट खाली हो, उसे दर्शनशास्त्र नहीं पढ़ाया जा सकता।” यह कथन उन्होंने यह स्पष्ट करने के लिए दिया कि आर्थिक आत्मनिर्भरता और रोजगार सृजन, केवल नीतिगत बातें नहीं बल्कि मूलभूत मानवीय आवश्यकताएं हैं।

