आखिर क्यों रूस ने दी तालिबान सरकार को मान्यता? जानिए क्या है भारत की नीति

अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को आधिकारिक मान्यता मिल गई है। रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह कदम दोनों देशों के बीच सकारात्मक सहयोग में योगदान देगा। तालिबान सरकार के विदेश मंत्रालय ने रूस के इस कदम का स्वागत किया। चीन, यूएई और कई अन्य देशों की कूटनीतिक भागीदारी के बावजूद, रूस राजनयिक मान्यता देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। अगस्त 2021 में अमेरिका और नाटो के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। तब तालिबान ने कहा था कि वे अफगानिस्तान में उदार शासन चलाएंगे, लेकिन तब से उन्होंने सख्त शरिया कानून लागू कर दिया है।
अब तक कई देश तालिबान सरकार के साथ संबंध जारी रखने की नीति पर चल रहे थे, लेकिन किसी ने आधिकारिक मान्यता नहीं दी थी। पश्चिमी देशों ने कर को अलग-थलग रखा पश्चिमी देशों ने महिलाओं के खिलाफ अपनी मजबूत भेदभावपूर्ण नीतियों के कारण तालिबान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग रखा। 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण से लेकर 1989 में मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा अपने सैनिकों की वापसी तक, अफगानिस्तान और रूस एक जटिल ऐतिहासिक द्विपक्षीय संबंध में उलझे रहे हैं। हालांकि, इस साल अप्रैल में 20 साल बाद रूस ने तालिबान को आतंकी संगठनों की सूची से हटा दिया। इसके साथ ही वह आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा था। अफगान क्षेत्र में ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर ऐसी ही एक संभावना है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन भी अफगानिस्तान को मान्यता देने के बारे में सोचेगा।
भारत की नीति क्या होगी?
ऑब्जर्वेशन रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ), दिल्ली के डिप्टी डायरेक्टर और फेलो कबीर तनेजा का कहना है कि आतंकी संगठन आईएसकेपी के मद्देनजर रूस को तालिबान से सुरक्षा सहयोग की जरूरत है। इस समूह ने पिछले साल रूस में आतंकी हमले किए थे जिसमें 130 लोग मारे गए थे। जहां तक भारत का सवाल है, अफगानिस्तान के प्रति उसकी नीति इस बात से तय नहीं होती कि इस संबंध में कोई तीसरा देश क्या करता है। भारत रूस और अफगानिस्तान दोनों के साथ करीबी तौर पर जुड़ा हुआ है।
अब तक का रवैया कैसा है?
15 मई को विदेश मंत्री टैक एस जयशंकर ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी से फोन पर बातचीत की थी। विदेश मंत्री के साथ यह पहली बातचीत थी। इस साल जनवरी में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में मुत्तकी से मुलाकात की थी। पहलगाम हमले के बाद एक प्रतिनिधिमंडल काबुल भी गया था।