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क्या सच में ईरान को भस्म कर रहा है एक मजबूर 'बेटी का श्राप'? जानें कौन है 300 कोड़े और फांसी के फंदे को चूमने वाली मासूम

जब एक राष्ट्र की व्यवस्था कट्टरपंथ के नाम पर बेटियों की बलि चढ़ाने लगे, तो इतिहास खुद गवाही देता है कि अंत निकट है। आज जब ईरान इजरायल के हमलों, वैश्विक अलगाव और आंतरिक संकटों से जूझ रहा है, तब सोशल मीडिया पर एक नाम वायरल हो रहा....
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जब एक राष्ट्र की व्यवस्था कट्टरपंथ के नाम पर बेटियों की बलि चढ़ाने लगे, तो इतिहास खुद गवाही देता है कि अंत निकट है। आज जब ईरान इजरायल के हमलों, वैश्विक अलगाव और आंतरिक संकटों से जूझ रहा है, तब सोशल मीडिया पर एक नाम वायरल हो रहा है – अतेफेह रजाबी। लोग कह रहे हैं कि खामेनेई और ईरान आज उसी बेटी का श्राप भुगत रहे हैं, जिसे कभी नाइंसाफी के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया था।

कौन थी अतेफेह रजाबी?

साल 2004, ईरान के नेका प्रांत में रहने वाली एक 16 वर्षीय लड़की – अतेफेह रजाबी – की कहानी ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। उसकी मां की मृत्यु के बाद वह अपने दादा-दादी के पास रहने लगी थी। वहीं, पास में रहने वाला एक 51 वर्षीय फौजी अली दराबी उस पर बुरी नजर रखता था। दराबी ने दो वर्षों तक उसका शोषण किया। जब रजाबी ने इसका विरोध किया, तो उसे ही जेल भेज दिया गया।

अदालत ने दिया कोड़े और फांसी का आदेश

रजाबी के खिलाफ ‘नाजायज संबंध’ का आरोप लगाया गया और अदालत ने उसे तीन बार सौ-सौ कोड़े मारने की सजा सुनाई। जब एक सुनवाई के दौरान उसने गुस्से में हिजाब उतार दिया और जज की ओर जूता फेंका, तो न्याय के नाम पर शरिया कानून के तहत उसे फांसी की सजा दे दी गई। 15 अगस्त 2004 को अतेफेह को फांसी दे दी गई। उसकी उम्र तब सिर्फ 16 साल थी।

श्राप बनकर लौटता अन्याय?

आज जब ईरान वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ा है, हिज्बुल्ला और हूती जैसे आतंकी समूह खामोश हैं, और पाकिस्तान तक अमेरिका की गोद में जा बैठा है, तब लोग कह रहे हैं – "ये सब उस बेटी के श्राप का नतीजा है।" क्योंकि उस मासूम के साथ जो हुआ, वो इंसानियत की हत्या थी।

फिर आई एक और आवाज – मेहसा अमीनी

2022 में जब ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन भड़का, तो अतेफेह रजाबी की कहानी फिर जिंदा हो उठी। इस आंदोलन का चेहरा बनी मेहसा अमीनी। उसे मोरल पुलिस ने सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया क्योंकि वह हिजाब ठीक से नहीं पहने थी। हिरासत में उसे इतना पीटा गया कि उसकी मौत हो गई। सरकार ने इसे दिल का दौरा बताया, लेकिन रिपोर्ट्स ने दिखाया – सिर पर चोट से मौत हुई।

दुनिया भर में गूंजा विरोध

अमीनी की मौत के बाद ईरान में हजारों छात्र-छात्राओं ने सड़कों पर उतरकर विरोध किया। हिजाब जलाए गए, बाल काटे गए, और नारे लगे – "महिलाएं, जीवन, आज़ादी"। तुर्किये की गायिका मेलेक मेसो ने भी मंच पर अपने बाल काटकर विरोध जताया।

ईरान के युवाओं का संदेश

इन दो बेटियों – अतेफेह रजाबी और मेहसा अमीनी – ने आज की पीढ़ी को आवाज दी है। उनकी मौतें अब प्रतीक बन चुकी हैं – अन्याय, उत्पीड़न और कट्टरपंथ के खिलाफ। वे ईरान की उन बेटियों की आवाज हैं, जिन्हें वर्षों तक दबाया गया। और अब यही आवाज़ें खामेनेई के शासन को चुनौती दे रही हैं।

क्या सच में लगा है श्राप?

श्राप एक धार्मिक या मिथकीय अवधारणा हो सकती है, लेकिन जब किसी राष्ट्र का नेतृत्व नारी सम्मान की हत्या करे, तो उसका असर सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक पतन के रूप में भी सामने आता है। आज जब ईरान भीतर से टूट रहा है, और बाहर से घिर रहा है, तो दुनिया याद कर रही है – अतेफेह और मेहसा को। यही दो नाम हैं, जो आने वाले समय में बदलाव की नींव रख सकते हैं।

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