अमेरिका-चीन शांत! आखिर क्यों पुतिन के सामने चाचा चौधरी बन रहा ब्रिटेन?
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच जहां अमेरिका और चीन रणनीतिक रूप से सतर्क बने हुए हैं, वहीं ब्रिटेन सीधे तौर पर रूस को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है। हाल ही में ब्रिटेन ने दावा किया है कि इस युद्ध में 2.5 लाख रूसी सैनिक मारे गए हैं, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी भी संघर्ष में रूस की सबसे बड़ी क्षति माना जा रहा है। ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय का कहना है कि यूक्रेन में रूसी सेना को भारी नुकसान हुआ है और यही कारण है कि रूस अब शांति वार्ता की ओर बढ़ रहा है। वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए एक अनोखा सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका को यूक्रेन के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर नियंत्रण करना चाहिए और वहां से यूक्रेन को ऊर्जा और सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। हालाँकि, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने इस प्रस्ताव को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ये संयंत्र यूक्रेन की संपत्ति हैं और किसी अन्य का उन पर अधिकार नहीं हो सकता। ज़ेलेंस्की ने कहा कि हम इस पर चर्चा नहीं करेंगे। हमारे पास 15 परमाणु संयंत्र हैं और वे हमारे देश के हैं।
यूक्रेन मजबूर?
तीन वर्षों के युद्ध के बाद, यूक्रेन ने अब संकेत दिया है कि वह रूस के साथ शांति वार्ता के लिए तैयार हो सकता है। हालांकि, यूक्रेन की शर्त यह है कि पहले रूस को कब्जे वाले इलाकों को छोड़ना होगा। युद्ध की शुरुआत में रूसी सेना ने यूरोप के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र ज़ापोरिज़िया परमाणु संयंत्र पर कब्ज़ा कर लिया। ज़ेलेंस्की का कहना है कि अगर अमेरिका इस संयंत्र को रूस से मुक्त कराने, इसमें निवेश करने और इसे आधुनिक बनाने में मदद करे तो यह प्रस्ताव विचार करने लायक हो सकता है।
ब्रिटेन चौधरी क्यों बन रहा है?
इस युद्ध में जहां अमेरिका और चीन संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं ब्रिटेन खुलकर रूस के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रहा है। ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय ने दावा किया है कि युद्ध के दौरान करीब 9 लाख रूसी सैनिक हताहत हुए हैं, जिनमें से 2.5 लाख मारे गए हैं। ब्रिटेन के अनुसार यूक्रेनी सेना ने रूस को भारी नुकसान पहुंचाया है और इसी कारण पुतिन शांति वार्ता की ओर बढ़ रहे हैं। हालाँकि, रूस ने ब्रिटेन के इन आंकड़ों को दुष्प्रचार बताकर खारिज कर दिया है।
चीन और अमेरिका का खेल
ब्रिटेन जहां यूक्रेन युद्ध को लेकर खुलकर बयान दे रहा है, वहीं चीन और अमेरिका इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। चीन ने स्वयं को मध्यस्थ के रूप में पेश करने की कोशिश की है और कई बार रूस और यूक्रेन के बीच वार्ता का प्रस्ताव रखा है। दूसरी ओर, ट्रम्प के सुझाव के बावजूद अमेरिका युद्ध में सीधे हस्तक्षेप करने से बच रहा है।
क्या रूस अब कमजोर हो रहा है?
ब्रिटेन के दावे के अनुसार, युद्ध में रूस की क्षमताएं कमजोर हो रही हैं। रूस के पास अब नये सैनिकों की भर्ती करने और युद्ध जारी रखने की सीमित रणनीति है। पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूस की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई है। यही कारण है कि अब पुतिन शांति वार्ता की ओर सोच रहे हैं। हालाँकि, रूस की अब तक की आधिकारिक प्रतिक्रिया यही रही है कि वह यूक्रेन में अपनी सैन्य कार्रवाई जारी रखेगा।
ब्रिटेन की भूमिका पर सवाल उठे
रूस पर ब्रिटेन द्वारा दिए गए आंकड़ों के बाद कई विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि ब्रिटेन इस युद्ध में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहा है? अमेरिका, जो इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल रहा है, भी ऐसे बयान देने से बचता रहा है। ऐसे में क्या ब्रिटेन की यह आक्रामकता उसे रूस के खिलाफ एक बड़े संघर्ष की ओर धकेल रही है?
पश्चिमी देशों की भव्य रणनीति
कई विश्लेषकों का मानना है कि ब्रिटेन का यह कदम पश्चिमी देशों की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ युद्ध को नए कूटनीतिक चरण में ले जाने की कोशिश कर सकते हैं, जिसमें रूस को अलग-थलग करने की नीति अपनाई जा रही है। अब देखना यह है कि क्या ब्रिटेन रूस के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएगा या फिर बयानबाजी तक ही सीमित रहेगा। दूसरी ओर, अमेरिका और चीन की चुप्पी यह संकेत देती है कि वे किसी भी तरह के प्रत्यक्ष टकराव से बचना चाहते हैं। यदि रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता शुरू होती है, तो यह युद्ध समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।