केवल लैंडिंग नहीं, चांद पर ठिकाना बनाना चाहता है चीन; बड़ी रणनीति आई सामने

अंतरिक्ष विज्ञान में चीन तेजी से नई ऊंचाइयों को छू रहा है। हाल ही में उसने एक महत्वपूर्ण परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया है, जिससे 2030 तक चांद पर अपने तीन अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने का उसका लक्ष्य और करीब आ गया है। इस सफलता ने न केवल चीन की तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन किया है, बल्कि चांद पर मानव मिशन और वहां एक स्थायी उपस्थिति स्थापित करने की उसकी दीर्घकालिक महत्वाकांक्षा को भी रेखांकित किया है।
'ड्रीम शिप' मेंगझोउ का सफल परीक्षण: सुरक्षा सुनिश्चित
चीन ने अपने चंद्र अंतरिक्ष यान मेंगझोउ (जिसका मंदारिन में अर्थ 'ड्रीम शिप' है) पर 17 जून को एक सफल एस्केप फ्लाइट टेस्ट किया। यह 27 साल बाद दूसरा ऐसा 'ज़ीरो-एल्टीट्यूड एस्केप फ्लाइट टेस्ट' था, जिसका उद्देश्य लॉन्च के दौरान किसी भी आपात स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (CNSA) ने मेंगझोउ के रिटर्न कैप्सूल पर लगे 'लॉन्च एस्केप सिस्टम' का परीक्षण किया। यह सिस्टम ठोस रॉकेट मोटर्स (SRMs) से संचालित होता है और आपातकाल में कैप्सूल को रॉकेट से मात्र दो सेकंड के भीतर अलग कर सकता है। 17 जून के परीक्षण में, अंतरिक्ष यान और एस्केप टावर का संयुक्त सिस्टम लगभग 20 सेकंड में निर्धारित ऊंचाई तक पहुंच गया, जो इसकी विश्वसनीयता का प्रमाण है।
2030 तक चांद पर लैंडिंग की दो-चरणीय योजना
CNSA ने चांद पर उतरने की अपनी योजना को विस्तार से बताया है। 2030 तक, चीन लॉन्ग मार्च 10 रॉकेट का उपयोग करके दो अलग-अलग लॉन्च करेगा:
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पहला लॉन्च: लान्युए (चंद्र लैंडर) को चंद्र कक्षा में भेजेगा।
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दूसरा लॉन्च: मेंगझोउ अंतरिक्ष यान को ले जाएगा, जिसमें तीन अंतरिक्ष यात्री होंगे।
चंद्र कक्षा में पहुंचने के बाद, दोनों यान आपस में जुड़ेंगे (डॉकिंग), और अंतरिक्ष यात्री लान्युए में स्थानांतरित होकर चांद की सतह पर उतरेंगे। यह रणनीति इसलिए अपनाई गई है क्योंकि चीन का अधिक शक्तिशाली लॉन्ग मार्च 9 रॉकेट 2030 के बाद ही उपलब्ध होगा। CNSA ने 2027 से 2030 के बीच लॉन्ग मार्च 10 के तीन और प्रक्षेपणों की योजना बनाई है, जिसमें 2030 में चौथा और पांचवां लॉन्च चंद्र लैंडर और अंतरिक्ष यान के लिए समर्पित होंगे।
चांद को 'चीन का दालान' बनाने की महत्वाकांक्षा
चीन की चंद्र योजना केवल मानव को चांद पर उतारने तक सीमित नहीं है। कुछ चीनी टिप्पणीकारों ने इसे एक व्यापक दृष्टिकोण से देखा है। सिचुआन के एक स्तंभकार ने पिछले महीने लिखा, "चांद पर उतरना हमारे देश की चंद्र अन्वेषण योजना का केवल एक छोटा सा हिस्सा है। हमारा बड़ा लक्ष्य चांद को चीन की दालान बनाना है।"
यह बयान संकेत देता है कि चीन चांद पर एक स्थायी आधार स्थापित करने की योजना बना रहा है, जिसका उपयोग भविष्य में वैज्ञानिक अनुसंधान, संसाधन उपयोग और संभावित सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। विशेष रूप से चांद के दक्षिणी ध्रुव पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जहां पानी की बर्फ की उपस्थिति इसे वैज्ञानिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है। पानी का उपयोग जीवन समर्थन और रॉकेट ईंधन दोनों के लिए किया जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बनाम अमेरिकी प्रतिबंध
चीन ने अपने चंद्र मिशन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की भी बात कही है। उसने इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन (ILRS) परियोजना शुरू की है, जिसमें रूस, दक्षिण अफ्रीका, बेलारूस, अजरबैजान, वेनेजुएला, पाकिस्तान और मिस्र जैसे देश शामिल हैं। यह परियोजना अमेरिका के आर्टेमिस प्रोग्राम का एक विकल्प है, जिसमें अमेरिकी कानून (वुल्फ अमेंडमेंट) नासा को चीन के साथ सहयोग करने से रोकता है। ILRS का लक्ष्य चांद पर एक वैज्ञानिक आधार स्थापित करना है, जो सभी भागीदार देशों के लिए खुला होगा।
वैश्विक अंतरिक्ष दौड़ में चीन की मजबूत स्थिति
पिछले दो दशकों में चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम तेजी से विकसित हुआ है। 2003 में अपना पहला अंतरिक्ष यात्री भेजने से लेकर 2011 में अंतरिक्ष स्टेशन के संचालन तक, और चांग'ए मिशनों के माध्यम से चंद्र सतह से नमूने लाने तक, चीन ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। 2024 में चांग'ए 6 मिशन द्वारा चांद के सुदूर हिस्से से नमूने वापस लाना एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। इसके विपरीत, अमेरिका का आर्टेमिस प्रोग्राम, विशेष रूप से अंतरिक्ष यान और लैंडर की तकनीकी चुनौतियों के कारण देरी का सामना कर रहा है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन 2030 तक चांद पर मानव उतारने में अमेरिका को पीछे छोड़ सकता है, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष दौड़ में उसकी स्थिति और मजबूत होगी।