H1B Visa के नियमों में बदलाव से (New Applicants ) अमेरिका जाने वाले छात्रों और पेशेवरों पर क्या और कैसे पड़ेगा असर ?
हाल ही में अमेरिकी सरकार ने एच-1बी वीज़ा से जुड़े नियमों में बड़ा बदलाव करते हुए नए आवेदनों पर 1 लाख अमेरिकी डॉलर का शुल्क लगाने की घोषणा की है। यह बदलाव सीधे तौर पर उन भारतीय छात्रों और पेशेवरों को प्रभावित करेगा जो आने वाले वर्षों में अमेरिका जाकर काम करने का सपना देखते हैं।
1. एच-1बी वीज़ा की लागत में भारी वृद्धि

पहले जहाँ एच-1बी वीज़ा आवेदन शुल्क कुछ हजार डॉलर होता था, अब 1 लाख डॉलर का शुल्क नियोक्ता को देना होगा।
• छात्रों के लिए असर: जो भारतीय छात्र अमेरिका में उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) के जरिए नौकरी ढूँढते हैं, उनके लिए स्पॉन्सर ढूँढना कठिन हो जाएगा। छोटी कंपनियाँ और स्टार्टअप इस भारी शुल्क को वहन नहीं कर पाएँगे।
• पेशेवरों के लिए असर: भारतीय आईटी और अन्य क्षेत्रों के पेशेवरों को अब केवल वही कंपनियाँ स्पॉन्सर करेंगी जो वित्तीय रूप से बहुत मजबूत हैं। इससे अवसरों की संख्या घट सकती है।
2. प्रतिस्पर्धा और भी कठिन होगी
चूँकि कंपनियाँ कम आवेदन करेंगी, इसलिए एच-1बी वीज़ा के लिए चुने जाने की संभावना और भी कम हो जाएगी।
• अब कंपनियाँ केवल सबसे योग्य, उच्च वेतन वाले और विशेष कौशल वाले उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता देंगी।
• औसत या शुरुआती स्तर के पेशेवरों के लिए अमेरिका में नौकरी पाना और मुश्किल हो सकता है।
3. वैकल्पिक रास्तों की तलाश
इस बदलाव के बाद छात्र और पेशेवर अन्य विकल्प तलाश सकते हैं:
• कनाडा, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अवसर: जहाँ वीज़ा प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल और सस्ती है।
• रिमोट वर्क: कई कंपनियाँ अब भारत या अन्य देशों में बैठे कर्मचारियों को रिमोट वर्क का विकल्प दे सकती हैं।
• उच्च शिक्षा की योजना में बदलाव: कुछ छात्र अब अमेरिका की जगह अन्य देशों को चुन सकते हैं जहाँ पढ़ाई के बाद नौकरी और वीज़ा प्रक्रिया आसान हो।
4. शिक्षा में निवेश का रिस्क बढ़ेगा

जो छात्र अमेरिका में महँगी पढ़ाई करने के लिए लाखों रुपये खर्च करते हैं, उनके मन में डर रहेगा कि कहीं भारी शुल्क के कारण उन्हें नौकरी स्पॉन्सर न मिले।
• इससे कई परिवार दोबारा सोचेंगे कि क्या अमेरिका में पढ़ाई पर इतना खर्च करना सही है।
• छात्र पढ़ाई के लिए ऐसे कोर्स चुन सकते हैं जिनकी मांग अमेरिका में बहुत ज्यादा हो, ताकि उन्हें स्पॉन्सरशिप मिलने की संभावना बनी रहे।
5. कंपनियों की हायरिंग स्ट्रैटेजी बदलेगी
अमेरिकी नियोक्ता अब:
• केवल खास और महत्त्वपूर्ण पदों के लिए ही विदेशी पेशेवरों को हायर करेंगे।
• ज्यादा से ज्यादा काम को भारत जैसे देशों में आउटसोर्स कर सकते हैं ताकि भारी शुल्क से बचा जा सके।
• इंटरनल टैलेंट को ट्रेन्ड कर के खाली पद भरने की कोशिश करेंगे।
6. छोटे शहरों के पेशेवरों पर असर
भारत के छोटे शहरों और कॉलेजों से आने वाले छात्रों और पेशेवरों के लिए यह बदलाव बड़ा झटका है।
• पहले जहाँ उन्हें भी मौका मिलता था, अब केवल टॉप टैलेंट को ही प्राथमिकता मिलेगी।
• जिनके पास अनुभव या विशेष स्किल नहीं हैं, उनके लिए अमेरिका का सपना दूर हो सकता है।
7. करियर की योजना में बदलाव

नए आवेदकों को अब और लंबी अवधि की योजना बनानी होगी।
• वे पहले से ही स्किल अपग्रेडेशन, इंटरनेशनल सर्टिफिकेशन और उच्च वेतन वाली भूमिकाओं पर ध्यान देंगे।
• छात्र ऐसे स्ट्रीम चुनेंगे जिनमें अमेरिकी नियोक्ता निवेश करने को तैयार हों।
8. मानसिक और आर्थिक दबाव
छात्रों और पेशेवरों पर इस बदलाव का मानसिक दबाव भी बढ़ेगा।
• अमेरिका जाने का सपना अब महँगा और जोखिम भरा लग सकता है।
• परिवारों को भी इस पर दोबारा सोचना होगा कि क्या वे इतना पैसा पढ़ाई और वीज़ा पर खर्च करें।

