कांगो-रवांडा में पीस डील के बाद यूएस प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने फिर जताई नोबेल प्राइज की आस

डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) और रवांडा के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव और हिंसा को खत्म करने की दिशा में एक बड़ी पहल सामने आई है। दोनों देशों ने अमेरिका की मध्यस्थता में वॉशिंगटन डीसी में एक प्रारंभिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता पूर्वी कांगो में जारी भीषण हिंसा को रोकने के प्रयास का हिस्सा है, जहां पिछले कई वर्षों से सशस्त्र विद्रोही गुटों के कारण हजारों लोगों की जान जा चुकी है और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं।
अमेरिका की अहम भूमिका के साथ हुआ यह समझौता तीन दिन तक चली गहन राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक चर्चाओं के बाद संभव हो पाया। इस प्रारंभिक मसौदे में प्रमुख रूप से तीन मुद्दों पर सहमति बनी है — हथियारों का इस्तेमाल छोड़ना, गैर-राज्य समर्थित आर्म्ड ग्रुप्स को समाप्त करना, और शरणार्थियों व आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की घर वापसी सुनिश्चित करना।
पूर्वी कांगो, विशेषकर गोमा और बुकारू जैसे क्षेत्रों में, प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे को लेकर विद्रोही गतिविधियां तेज हो गई थीं। जनवरी 2025 में M23 नामक विद्रोही गुट ने गोमा पर कब्जा कर लिया था, जिसे रवांडा समर्थित माना जाता है, हालांकि रवांडा ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया था।
ट्रंप ने फिर दोहराई नोबेल की उम्मीद
इस समझौते की घोषणा के बाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे अपनी एक और “शांति उपलब्धि” बताते हुए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग दोहरा दी है। ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “मुझे कांगो और रवांडा के बीच शांति स्थापित करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा। मुझे भारत और पाकिस्तान, सर्बिया और कोसोवो, मिस्र और इथियोपिया, और यहां तक कि मध्य पूर्व में अब्राहम समझौते के लिए भी नहीं मिला।”
उन्होंने लिखा, “भले ही मैं रूस/यूक्रेन या इजरायल/ईरान में शांति लाऊं, मुझे नोबेल नहीं मिलेगा, लेकिन लोग जानते हैं और वही मेरे लिए मायने रखता है।” ट्रंप पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की तुलना में खुद को हर मामले में बेहतर साबित करने की कोशिश में रहते हैं। ओबामा को 2009 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था, लेकिन ट्रंप को अब तक यह सम्मान नहीं मिला है, जो उन्हें कई बार व्यंग्यात्मक रूप से कचोटता रहा है।
शांति की ओर उम्मीद
इस समझौते पर अंतिम मुहर अगले कुछ हफ्तों में लग सकती है, जिससे कांगो के पूर्वी हिस्से में स्थायित्व लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। हालांकि, इस समझौते की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि दोनों देश वास्तव में जमीनी स्तर पर प्रतिबद्धता दिखाते हैं या नहीं। इस बीच अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें इस शांति प्रक्रिया की प्रगति और ट्रंप की “नोबेल उम्मीद” पर भी टिकी रहेंगी।