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क्यों है विजय स्तंभ मेवाड़ की असली पहचान? जानिए इस ऐतिहासिक स्मारक से जुड़ी दिलचस्प कहानियां जो यहां घूमने के लिए कर देंगी मजबूर 

क्यों है विजय स्तंभ मेवाड़ की असली पहचान? जानिए इस ऐतिहासिक स्मारक से जुड़ी दिलचस्प कहानियां जो यहां घूमने के लिए कर देंगी मजबूर 

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले में स्थित विजय स्तंभ (Victory Tower) सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि भारत के वीरता और आत्मबल का जीता-जागता प्रतीक है। यह स्तंभ मेवाड़ राजवंश की बहादुरी, स्थापत्य कौशल और सांस्कृतिक गौरव को दर्शाता है। विजय स्तंभ से जुड़ी कई रोचक और ऐतिहासिक बातें इसे एक पर्यटक स्थल से कहीं अधिक बना देती हैं। आइए जानें इस महान स्मारक के बारे में कुछ तथ्य, जो इसे और भी खास बनाते हैं।

1. निर्माण का उद्देश्य – एक ऐतिहासिक विजय का प्रतीक

विजय स्तंभ का निर्माण महाराणा कुंभा ने 1442 से 1449 ईस्वी के बीच करवाया था। इसे गुजरात के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय प्राप्त करने की खुशी में बनवाया गया था। यह स्तंभ उस युद्ध की गवाही देता है, जिसमें हिंदू वीरों ने आक्रांताओं को परास्त कर मातृभूमि की रक्षा की थी।

2. अद्भुत स्थापत्य कला का उदाहरण

यह स्तंभ स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इसकी ऊंचाई लगभग 122 फीट (37 मीटर) है और इसमें कुल 9 मंजिलें हैं। हर मंज़िल पर जटिल नक्काशियां, मूर्तियां और धार्मिक प्रतीक बनाए गए हैं, जो उस काल के शिल्पियों की प्रतिभा को दर्शाते हैं। इसकी बनावट में बलुआ पत्थर (sandstone) का उपयोग किया गया है।

3. शिव भक्ति से जुड़ा है शिखर का रहस्य

विजय स्तंभ के शिखर पर भगवान शिव का एक छोटा मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि महाराणा कुंभा स्वयं एक महान शिव भक्त थे और उन्होंने इस स्तंभ को सिर्फ सैन्य विजय के प्रतीक के रूप में नहीं, बल्कि एक धार्मिक श्रद्धा के रूप में भी बनवाया था। स्तंभ की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां खुदी हुई हैं।

4. हर मंज़िल तक पहुँचने के लिए है संकरी सीढ़ियाँ

विजय स्तंभ के अंदर 157 घुमावदार सीढ़ियाँ हैं, जो आपको शिखर तक ले जाती हैं। ऊपर से पूरे चित्तौड़गढ़ किले का नजारा देखने लायक होता है। प्राचीन काल में यह मीनार न सिर्फ विजय की याद दिलाने का कार्य करती थी, बल्कि युद्ध के समय चौकसी के लिए एक वॉच टावर की भूमिका भी निभाती थी।

5. स्तंभ की सतह पर खुदे हैं संस्कृत शिलालेख

विजय स्तंभ की दीवारों पर संस्कृत में कई शिलालेख खुदे हैं, जिनमें से अधिकतर 'महर्षि हरिदत्त' द्वारा लिखे गए हैं। ये शिलालेख न केवल ऐतिहासिक युद्ध का वर्णन करते हैं, बल्कि उस समय की सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थिति का भी प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।

6. विजय स्तंभ का दूसरा नाम – ‘कीर्ति स्तंभ’ नहीं है

कई लोग इसे गलती से ‘कीर्ति स्तंभ’ भी कह बैठते हैं, जबकि कीर्ति स्तंभ एक अलग स्मारक है जो चित्तौड़गढ़ किले में ही स्थित है और जैन धर्म से जुड़ा हुआ है। विजय स्तंभ पूर्णतः हिंदू संस्कृति और मेवाड़ की विजयगाथा को समर्पित है।

7. प्रकाश व्यवस्था से नहाया स्तंभ

आज के समय में विजय स्तंभ को रात्रिकालीन प्रकाश व्यवस्था के माध्यम से विशेष रूप से रोशन किया जाता है। रात में जब रोशनी इसकी नक्काशियों पर पड़ती है, तो यह स्मारक और भी भव्य और जीवंत प्रतीत होता है।

8. एक प्रेरणा स्त्रोत

विजय स्तंभ न केवल इतिहासप्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है, बल्कि यह युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत भी है। यह स्मारक हमें बताता है कि किस प्रकार सीमित संसाधनों के बावजूद भी मातृभूमि की रक्षा के लिए कुर्बानी दी जाती रही है।

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