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सबसे साफ पानी होने के बावजूद क्यों नहीं होती चंबल नदी की पूजा? वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए वो पौराणिक रहस्य जो आज भी लोगों को सताता है

सबसे साफ पानी होने के बावजूद क्यों नहीं होती चंबल नदी की पूजा? वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए वो पौराणिक रहस्य जो आज भी लोगों को सताता है

भारत में नदियों को मां का दर्जा प्राप्त है। गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी जैसी नदियों की पूजा हजारों सालों से होती आ रही है। हर नदी के साथ पौराणिक कथाएं और आस्थाएं जुड़ी हुई हैं। लेकिन एक नदी ऐसी भी है, जो जल की शुद्धता और प्राकृतिक सौंदर्य में अव्वल होने के बावजूद पूजा की पात्र नहीं बन सकी – यह है चंबल नदी।मध्य भारत की महत्वपूर्ण नदी चंबल, जिसे राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों से गुजरने का गौरव प्राप्त है, देश की सबसे साफ नदियों में मानी जाती है। विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने भी माना है कि चंबल नदी का जल न्यूनतम प्रदूषित है, और इसके पानी की शुद्धता आज भी गंगा से बेहतर स्तर पर है। फिर भी, यह नदी धार्मिक दृष्टि से एक 'अपवित्र नदी' मानी जाती है। न केवल इसकी पूजा नहीं होती, बल्कि लोगों का मानना है कि इसमें स्नान करना भी ‘पाप’ माना जाता है।तो आखिर ऐसा क्यों? क्या है चंबल नदी से जुड़ा वो रहस्य जो इसे देव-पूजन से दूर रखता है? आइए जानें इसके पीछे की पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि।


राक्षसी उत्पत्ति से जुड़ी मान्यता
चंबल नदी से जुड़ी जो सबसे लोकप्रिय पौराणिक कथा है, वह महाभारत काल से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ, तब कौरवों की ओर से लड़ते हुए दुर्योधन ने छल और अधर्म की सारी सीमाएं लांघ दी थीं। युद्ध समाप्त होने के बाद, जब युधिष्ठिर को राजा बनाया गया, तब उन्होंने राजसूय यज्ञ के लिए देशभर से जल मंगवाया।

जब चंबल नदी से जल लाने की बात आई, तो पुरोहितों और ब्राह्मणों ने इससे साफ इनकार कर दिया। उनका मानना था कि चंबल की धारा ‘अधर्म’ से जन्मी है। चंबल को उस 'पाप' का परिणाम बताया गया, जो महाभारत के दौरान छल, कपट और रक्तपात से उत्पन्न हुआ था।कुछ किंवदंतियों में यह भी कहा जाता है कि चंबल नदी की उत्पत्ति द्रौपदी के श्राप से हुई थी। द्रौपदी ने कौरवों को शाप दिया था कि उनके कुल का नाश होगा और जहां-जहां उनका रक्त गिरेगा, वहां कोई नदी नहीं पवित्र मानी जाएगी। माना जाता है कि उसी स्थान पर चंबल प्रवाहित हुई और इसलिए इसे ‘शापित’ नदी माना गया।

दस्यु परंपरा और सामाजिक डर
इतिहास के पन्नों में अगर झांका जाए, तो चंबल घाटी का नाम दस्यु परंपरा (डकैती) के लिए भी कुख्यात रहा है। बीहड़ क्षेत्र में बसे गांव, रावण, फूलन देवी, मलखान सिंह जैसे कुख्यात डकैतों के नाम और चंबल के किनारे से जुड़ी कहानियों ने इस नदी की छवि को वर्षों तक नकारात्मक बनाए रखा।इस इलाके में लोग मानते रहे कि चंबल की लहरें सिर्फ रक्त और हिंसा की साक्षी रही हैं, यहां दया, करुणा या तप की भावना नहीं है। इसीलिए इसे कभी 'मां' नहीं कहा गया, और इसकी पूजा भी नहीं की गई।

वैज्ञानिक नजरिए से सबसे शुद्ध
विरोधाभास यह है कि चंबल नदी को वैज्ञानिक रूप से सबसे स्वच्छ नदी माना गया है। इसमें किसी भी प्रकार की उद्योगिक या मानवीय गंदगी नहीं डाली जाती। चंबल के बहाव क्षेत्र में बड़े-बड़े कारखाने नहीं हैं, जिससे प्रदूषण की मात्रा न्यूनतम रहती है।वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चंबल नदी में घड़ियाल, डॉल्फिन, कछुए और कई दुर्लभ प्रजातियों का निवास है। यह नदी इकोलॉजी के लिहाज से बेहद समृद्ध है। इसके पानी का पीएच स्तर संतुलित है और जल गुणवत्ता उत्कृष्ट श्रेणी में आती है। लेकिन फिर भी श्रद्धा की दृष्टि से इसकी पहचान शून्य के आसपास ही रही है।

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