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वीडियो में जाने अल्बर्ट हॉल म्यूजियमको क्यों कहा जाता इतिहास प्रेमियों का खजाना, जानिए क्या है 2300 साल पुरानी ममी का रहस्य ?

वीडियो में जाने अल्बर्ट हॉल म्यूजियमको क्यों कहा जाता इतिहास प्रेमियों का खजाना, जानिए क्या है 2300 साल पुरानी ममी का रहस्य ?

जयपुर के सिटी केंद्र में स्थित अल्बर्ट हॉल म्यूजियम न केवल राजस्थान का सबसे पुराना संग्रहालय है, बल्कि भारत के उन चुनिंदा संग्रहालयों में भी शामिल है जहाँ इतिहास, कला और संस्कृति का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है। यह म्यूजियम केवल एक भवन नहीं, बल्कि सदियों पुरानी सभ्यता, कलाओं और परंपराओं का एक जीवंत दस्तावेज है। खास बात यह है कि यहां 2300 साल पुरानी मिस्र की ममी भी प्रदर्शित है, जो दर्शकों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।


मिस्र की ममी: रहस्य और रोमांच का प्रतीक

अल्बर्ट हॉल म्यूजियम की सबसे रहस्यमयी और चर्चित वस्तु है मिस्र की ममी, जिसे करीब 2300 वर्ष पहले संरक्षित किया गया था। यह ममी ‘तूतू’ नाम की एक महिला की है, जिसे मिस्र से 1887 में मंगवाया गया था। यह भारत में केवल कुछ ही जगहों पर मौजूद मिस्र की प्राचीन ममीज़ में से एक है। इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक यहाँ आते हैं।ममी को खासतौर पर एक कांच के केस में रखा गया है, जहाँ तापमान और रोशनी का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि इसके संरक्षण में कोई बाधा न आए। ममी के साथ मिस्र की मृत्यु-संस्कृति, ताबूत, संस्कार, और चित्रों की प्रदर्शनी भी दर्शकों को इतिहास की एक अलग ही दुनिया में ले जाती है।

चित्रकला और हथियारों की भव्यता
इस म्यूजियम में राजस्थानी, मुग़ल और पर्शियन चित्रकला का बेहतरीन संग्रह देखने को मिलता है। यहां की गैलरीज़ में दर्शायी गई पेंटिंग्स 18वीं और 19वीं सदी की हैं, जिनमें राजा-महाराजाओं की कहानियाँ, युद्ध के दृश्य, शिकार, त्योहार और दैनिक जीवन के चित्र बेहद बारीकी और सुंदरता से उकेरे गए हैं।इसके अलावा, यहाँ पर अतीत में उपयोग किए गए हथियारों का विशाल संग्रह भी मौजूद है। तलवारें, भाले, कटार, ढालें और बंदूकें जो उस युग के युद्धकौशल और शौर्य की गवाही देती हैं, वे हर इतिहास प्रेमी को रोमांचित कर देती हैं। हथियारों पर की गई कारीगरी और उनमें जड़ा हुआ सोना-चांदी इस बात का प्रतीक है कि वो सिर्फ युद्ध के उपकरण नहीं, बल्कि शिल्पकला के नमूने भी थे।

दुर्लभ कलाकृतियों और वस्त्रों का संग्राहालय
अल्बर्ट हॉल म्यूजियम में राजस्थानी लोक संस्कृति से जुड़ी कई दुर्लभ वस्तुएं भी संरक्षित हैं। मिट्टी की मूर्तियां, बर्तन, पारंपरिक वस्त्र, आभूषण, कालीन, हुक्के, राजसी झूमर, और शाही फर्नीचर जैसे कई ऐतिहासिक तत्व यहाँ देखे जा सकते हैं। कुछ गैलरीज़ में अफगानी, तिब्बती, चीनी और यूरोपीय सभ्यताओं की वस्तुएं भी संग्रहित हैं, जो इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर का संग्रहालय बनाती हैं।

अल्बर्ट हॉल का स्थापत्य: खुद में एक आकर्षण
अल्बर्ट हॉल म्यूजियम की वास्तुकला भी किसी अजूबे से कम नहीं है। इसे इंडो-सारसेनिक शैली में बनाया गया है, जो भारतीय और इस्लामी स्थापत्य का एक मिश्रण है। इसकी नींव 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स के स्वागत हेतु रखी गई थी और 1887 में इसे संग्रहालय के रूप में खोला गया। गुलाबी पत्थरों से बनी इसकी नक्काशीदार दीवारें, ऊँचे गुंबद और जालीदार खिड़कियाँ इस इमारत को एक शाही स्वरूप प्रदान करती हैं।रात के समय इसे जब रोशनी से सजाया जाता है, तब यह दृश्य और भी मंत्रमुग्ध कर देने वाला हो जाता है। पर्यटक यहाँ बैठकर इसकी खूबसूरती को घंटों निहारते हैं और इतिहास में खो जाते हैं।

टिकट और समय की जानकारी
यदि आप अल्बर्ट हॉल म्यूजियम की सैर करना चाहते हैं, तो नीचे दी गई जानकारी आपके काम की है:

समय:
प्रतिदिन सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक
रात की विजिट (लाइटिंग के साथ) — 7:00 बजे से 10:00 बजे तक

टिकट शुल्क (दिन का समय):
भारतीय पर्यटक: ₹40
विदेशी पर्यटक: ₹300
छात्रों को विशेष छूट उपलब्ध है (आईडी कार्ड के साथ)
रात्रि दर्शन शुल्क: ₹100 प्रति व्यक्ति (सभी के लिए समान)
कैमरा शुल्क: अतिरिक्त, मोबाइल कैमरा अक्सर मुफ्त होता है लेकिन प्रोफेशनल कैमरों के लिए टिकट अलग होता है।

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