राजस्थान का पुष्कर क्यों कहलाता है तीर्थों का राजा? वीडियो में जानिए इस ऐतिहासिक शहर का सनातन धर्म में पौराणिक महत्व

राजस्थान के अजमेर ज़िले में स्थित पुष्कर शहर सनातन धर्म में अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह नगर न केवल भारत के तीर्थ स्थलों में से एक है, बल्कि आध्यात्मिकता, संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं का जीवंत संगम भी है। पुष्कर का उल्लेख अनेक पुराणों, शास्त्रों और ग्रंथों में मिलता है, और इसे ‘तीर्थराज’ — अर्थात् तीर्थों का राजा — कहा गया है। यह शहर विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भगवान ब्रह्मा का प्राचीन मंदिर स्थित है। यही कारण है कि पुष्कर न केवल एक तीर्थस्थल है, बल्कि सनातन परंपराओं का जीवित प्रतीक भी है।
पौराणिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने पुष्कर में यज्ञ किया था। मान्यता है कि जब ब्रह्मा जी ने राक्षस वज्रनाभ का वध किया, तब उनके हाथ से कमल पुष्प गिरा, और जहाँ-जहाँ उस पुष्प की पंखुड़ियाँ गिरीं, वहाँ तीन पवित्र सरोवर बन गए — ब्रह्मा सरोवर, रूपतलाय और मध्यम पुष्कर। ब्रह्मा सरोवर को आज भी पुष्कर झील के नाम से जाना जाता है और यह भारत के सबसे पवित्र जल स्रोतों में से एक है।पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर का भी बहुत अधिक महत्व है। यह मंदिर 14वीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है, और यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को विशाल मेला और स्नान पर्व होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र
सनातन धर्म में पुष्कर को पंचतीर्थों में प्रमुख माना गया है। यहाँ 52 घाट और लगभग 500 मंदिर स्थित हैं, जो भक्तों को गहन आध्यात्मिक अनुभूति कराते हैं। घाटों में प्रमुख हैं – ब्रह्मा घाट, गऊ घाट, यज्ञ घाट और वराह घाट। इन घाटों पर स्नान करना मोक्षदायी माना गया है, विशेष रूप से कार्तिक मास में। पुष्कर झील के तट पर दीपदान और मंत्रोच्चारण का दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है, जो भक्तों के मन को शांति और संतुलन प्रदान करता है।यह स्थान साधु-संतों और तपस्वियों की तपोभूमि भी रहा है। अनेक योगियों और संन्यासियों ने यहाँ ध्यान साधना की है। पुष्कर के शांत वातावरण में ध्यान, साधना और भक्ति के लिए उपयुक्त वातावरण मिलता है। यही कारण है कि यहाँ भारतीय और विदेशी साधक भी बड़ी संख्या में आध्यात्मिक अनुभूति के लिए आते हैं।
सांस्कृतिक पहचान
पुष्कर का महत्व केवल धार्मिक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद समृद्ध है। यहाँ का प्रसिद्ध पुष्कर मेला विश्व भर में लोकप्रिय है। यह मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यहाँ ऊँटों की खरीद-फरोख्त, लोक संगीत, नृत्य, हस्तशिल्प और ग्रामीण राजस्थान की जीवंत झलक देखने को मिलती है। यही कारण है कि पुष्कर न केवल तीर्थयात्रियों, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
आधुनिक युग में पुष्कर की भूमिका
आधुनिक समय में भी पुष्कर ने अपनी धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखा है। यहाँ योग, आयुर्वेद और ध्यान से जुड़ी कई संस्थाएँ हैं जहाँ देश-विदेश से लोग स्वास्थ्य और आत्मिक शांति की खोज में आते हैं। पुष्कर का वातावरण आज भी सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ है।इसके अलावा पुष्कर में पर्यावरण संरक्षण और पारंपरिक स्थापत्य को बनाए रखने की दिशा में भी कई प्रयास हो रहे हैं। यहाँ के मंदिरों और घाटों का सौंदर्यीकरण, झील की स्वच्छता और धार्मिक उत्सवों का शांतिपूर्ण आयोजन इसे एक आदर्श तीर्थस्थल बनाता है।
पुष्कर शहर सनातन धर्म की उस परंपरा का जीवंत प्रतीक है, जो जीवन को धर्म, संस्कृति, आस्था और प्रकृति के संतुलन से जोड़ती है। यहाँ आकर श्रद्धालु न केवल पुण्य लाभ अर्जित करते हैं, बल्कि आत्मिक शांति और चेतना का अनुभव भी करते हैं। ब्रह्मा जी का यह नगर आज भी भारतीय सनातन संस्कृति की गरिमा को अक्षुण्ण बनाए हुए है और आने वाली पीढ़ियों को धार्मिकता, संस्कृति और आत्मिकता की ओर प्रेरित करता है।