सरिस्का टाइगर रिजर्व की गहराइयों में छिपा है कंकवाड़ी किले का शापित इतिहास, वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखिये इसकी अनसुनी दास्तान

राजस्थान का अलवर जिला ऐतिहासिक और प्राकृतिक सौंदर्य का अनमोल खजाना है। इसी जिले में स्थित है सरिस्का टाइगर रिजर्व, जो न सिर्फ बाघों के संरक्षण के लिए जाना जाता है, बल्कि अपने भीतर कई रहस्यमयी कहानियों और ऐतिहासिक धरोहरों को भी समेटे हुए है। इन्हीं रहस्यों में से एक है कंकवाड़ी किला, जो सरिस्का के घने जंगलों के बीच वीरान खड़ा है और अपने भीतर इतिहास की अनकही परतें समेटे हुए है।
सरिस्का टाइगर रिजर्व: बाघों का घर और रहस्य का संसार
सरिस्का टाइगर रिजर्व की स्थापना 1955 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में हुई थी और 1978 में इसे 'प्रोजेक्ट टाइगर' के तहत टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया। यह इलाका अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ है और करीब 800 वर्ग किलोमीटर में फैला है। सरिस्का सिर्फ बाघों के लिए ही नहीं, बल्कि तेंदुआ, चीतल, सांभर, जंगली सूअर और कई दुर्लभ पक्षियों के लिए भी एक सुरक्षित आश्रय स्थल है।हालांकि एक वक्त ऐसा भी आया था जब यहां से बाघ पूरी तरह गायब हो गए थे। 2004-2005 में सरिस्का में बाघों की संख्या शून्य हो गई थी, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। इसके बाद 2008 में रणथंभौर से बाघों को लाकर यहां पुनर्स्थापित किया गया। आज सरिस्का में एक बार फिर बाघों की दहाड़ सुनाई देती है, लेकिन इसके जंगलों में एक और रहस्य है — कंकवाड़ी का किला।
कंकवाड़ी किला: जहां कैद हुई थी एक रानी
सरिस्का के घने जंगलों के भीतर, पहाड़ियों के बीच बसा कंकवाड़ी किला इतिहास की एक अनकही त्रासदी का साक्षी है। यह किला मूलतः औरंगज़ेब के शासनकाल में 17वीं शताब्दी में बनाया गया था। कहा जाता है कि इस किले में ही औरंगज़ेब ने अपने सगे भाई दारा शिकोह को बंदी बनाकर रखा था, जिसे बाद में दिल्ली ले जाकर हत्या कर दी गई। यह कहानी आज भी किले की दीवारों में गूंजती है और पर्यटकों को एक ठंडक भरा रोमांच महसूस कराती है।कहते हैं कि कंकवाड़ी किला न सिर्फ युद्ध और बंदीगृह का गवाह रहा, बल्कि इसे कभी-कभी शापित भी कहा जाता है। यहां आने वाले कई पर्यटक और स्थानीय लोग बताते हैं कि किले के भीतर एक अजीब-सी रहस्यमयी ऊर्जा महसूस होती है। कुछ लोगों ने रात के समय असामान्य घटनाओं की बात भी कही है, हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
पर्यटक अनुभव: रोमांच और इतिहास का संगम
सरिस्का आने वाले पर्यटकों के लिए कंकवाड़ी किला एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है। जंगल सफारी के दौरान जब आप बाघ या तेंदुए की एक झलक पाते हैं और फिर पहाड़ियों के बीच अचानक से एक प्राचीन किले के अवशेष दिखाई देते हैं, तो वो दृश्य किसी फिल्मी सीन से कम नहीं लगता।हालांकि, किला अब जर्जर हालत में है और पर्यटकों की पहुंच काफी सीमित है। लेकिन हाल के वर्षों में राजस्थान पर्यटन विभाग ने इस ओर ध्यान दिया है और इसे फिर से संरक्षित करने की कोशिशें शुरू की गई हैं।
संरक्षण की चुनौतियाँ
सरिस्का टाइगर रिजर्व और कंकवाड़ी किला दोनों ही संरक्षण की चुनौती का सामना कर रहे हैं। एक ओर जहां बाघों को शिकारियों और अवैध खनन से बचाना है, वहीं दूसरी ओर ऐतिहासिक धरोहर कंकवाड़ी किला भी समय की मार से जूझ रहा है।स्थानीय प्रशासन और वन विभाग के सहयोग से सरिस्का में कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, ताकि पर्यावरणीय संतुलन के साथ-साथ पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सके।
सरिस्का टाइगर रिजर्व सिर्फ एक बाघ परियोजना नहीं, बल्कि यह एक ऐसा जीवंत उदाहरण है जहां प्रकृति और इतिहास साथ-साथ सांस लेते हैं। कंकवाड़ी किला इस क्षेत्र की ऐतिहासिक विरासत को जीवित रखे हुए है, जबकि जंगल के भीतर घूमते बाघ इसकी जैव विविधता की शक्ति को दर्शाते हैं।यदि आप कभी राजस्थान आएं और अलवर की ओर जाएं, तो सरिस्का के जंगलों की खामोशी में छिपे कंकवाड़ी किले की कहानी जरूर सुनें — क्योंकि वहां सिर्फ पत्थर नहीं बोलते, बल्कि इतिहास की आत्मा भी गूंजती है।