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बांसवाड़ा क्यों बन रहा है राजस्थान का नया इको टूरिज्म हब? VIDEO में ऐसा खूबसूरत नजारा देख आप भी प्लान कर लेंगे ट्रिप 

बांसवाड़ा क्यों बन रहा है राजस्थान का नया इको टूरिज्म हब? VIDEO में ऐसा खूबसूरत नजारा देख आप भी प्लान कर लेंगे ट्रिप 

राजस्थान की गोद में बसा बांसवाड़ा जिला अब केवल अपने ऐतिहासिक किलों और भीलों की संस्कृति के लिए ही नहीं, बल्कि एक उभरते हुए इको टूरिज्म हब के रूप में भी जाना जाने लगा है। जहां एक ओर राजस्थान का नाम सुनते ही लोगों के ज़हन में रेगिस्तान, महल और ऊँटों की तस्वीर उभरती है, वहीं बांसवाड़ा उन धारणाओं को तोड़ता नजर आ रहा है। झीलों की नगरी के नाम से मशहूर यह इलाका अब पर्यावरण-प्रेमियों और प्रकृति से जुड़ाव रखने वाले यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।

झीलों, पहाड़ियों और हरियाली का संगम

बांसवाड़ा को 'सिटी ऑफ हंड्रेड आइलैंड्स' कहा जाता है, क्योंकि यहां की मेहंदी झील और माही डैम जैसे जलस्रोतों के बीच सैकड़ों छोटे-बड़े द्वीप हैं। यह प्राकृतिक दृश्य किसी कश्मीर की झलक जैसा एहसास कराते हैं। मेहंदी झील पर सूर्यास्त का नज़ारा देखने लायक होता है। साफ-सुथरे पानी, हरियाली से घिरी पहाड़ियाँ और शांत वातावरण इसे पर्यावरण-पर्यटन (Eco Tourism) के लिए परिपूर्ण बनाते हैं।

ट्राइबल संस्कृति से जुड़ने का अवसर

बांसवाड़ा आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जहाँ भील और मीणा जैसी जनजातियाँ रहती हैं। पर्यटक यहां आकर न सिर्फ उनकी जीवनशैली को करीब से देख सकते हैं, बल्कि लोकनृत्य, पारंपरिक भोजन और हस्तशिल्प का भी अनुभव कर सकते हैं। यह सांस्कृतिक अनुभव युवाओं और विदेशियों के बीच खासा लोकप्रिय हो रहा है, जो "अथेन्टिक इंडिया" को महसूस करना चाहते हैं।

इको-फ्रेंडली स्टे और होमस्टे संस्कृति

बांसवाड़ा में अब पर्यटन विभाग और स्थानीय प्रशासन द्वारा कई ईको-फ्रेंडली रिसॉर्ट्स और होमस्टे विकसित किए जा रहे हैं। इन स्थानों पर पर्यटकों को पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली के अनुभव दिए जाते हैं, जैसे सोलर एनर्जी, स्थानीय भोजन, जैविक खेती का ज्ञान और पानी की बचत तकनीकें। ये सारी चीज़ें आज के जागरूक ट्रैवलर को बेहद आकर्षित कर रही हैं।

वन्यजीवों और बर्ड वॉचिंग के लिए उपयुक्त

बांसवाड़ा के आसपास कई घने वन क्षेत्र हैं जो जैव विविधता से भरपूर हैं। खासकर केलेश्वर, सज्जनगढ़, और गढ़ी के जंगलों में बर्ड वॉचिंग के शौकीनों के लिए ढेरों मौके हैं। यहां प्रवासी पक्षी भी बड़ी संख्या में आते हैं, जो इसे पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग बना देते हैं। इसके अलावा जंगली भालू, तेंदुआ और हिरण जैसे जीव भी यहां देखने को मिलते हैं।

माही डैम – जल पर्यटन की नई पहचान

बांसवाड़ा का माही डैम ना सिर्फ बिजली उत्पादन और सिंचाई के लिए जाना जाता है, बल्कि अब इसे एक जल पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा रहा है। यहां बोटिंग, कायकिंग और अन्य वाटर स्पोर्ट्स को बढ़ावा दिया जा रहा है। डैम के आसपास के इलाके में कैंपिंग और ट्रेकिंग के लिए भी सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं, जो रोमांचप्रिय यात्रियों को लुभा रही हैं।

सरकारी प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे का विकास

राज्य सरकार और पर्यटन विभाग ने बांसवाड़ा को इको टूरिज्म के रूप में विकसित करने के लिए विशेष योजनाएं बनाई हैं। नई सड़कों का निर्माण, साइन बोर्ड्स, लोकल गाइड्स की ट्रेनिंग, स्वच्छता अभियान और पब्लिक टॉयलेट्स जैसी सुविधाओं का तेजी से विकास किया जा रहा है। इससे न केवल पर्यटकों को सुविधाएं मिल रही हैं, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं।

बांसवाड़ा का पारंपरिक भोजन भी यहां के आकर्षण का हिस्सा है। राबड़ी, मक्का रोटी, बाड़ी-बाटी, उड़द दाल की कचौड़ी जैसे व्यंजन न सिर्फ स्वाद में लाजवाब हैं, बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी हैं। कई पर्यटक अब 'फूड टूरिज्म' के हिस्से के रूप में भी बांसवाड़ा का रुख कर रहे हैं।

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