चितौड़गढ़ का विजय स्तम्भ रात को क्यों नहीं जाता कोई अकेला? विराल वीडियो में जाने इतिहास के पीछे छुपा है एक डरावना सच
राजस्थान के चितौड़गढ़ किले की शान — विजय स्तम्भ — इतिहास के पन्नों में वीरता, बलिदान और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। लेकिन वही स्तम्भ, जो दिन में हजारों पर्यटकों को अपनी भव्यता से आकर्षित करता है, रात के समय रहस्य और डर का केंद्र बन जाता है। स्थानीय लोग, गाइड्स और यहां तक कि सुरक्षा कर्मचारी भी स्वीकार करते हैं कि सूर्यास्त के बाद कोई भी इस स्तम्भ के आसपास रुकना पसंद नहीं करता। सवाल उठता है: क्या ये सिर्फ पुरानी कहानियां हैं या वास्तव में कोई छुपा हुआ डरावना सच?
दिन में गौरव, रात में सन्नाटा
चितौड़गढ़ का विजय स्तम्भ 15वीं सदी में महाराणा कुम्भा द्वारा महमूद खिलजी पर विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया था। इसकी ऊंचाई लगभग 122 फीट है और इसमें कुल 157 सीढ़ियाँ हैं जो ऊपर तक जाती हैं। दिन में यह स्थापत्य कला का चमत्कार प्रतीत होता है, जहां सैलानी, इतिहास प्रेमी और फोटोग्राफर इसे देखने आते हैं। मगर जैसे ही सूरज ढलता है, यह स्तम्भ वीरान हो जाता है, जैसे इसकी आत्मा सो नहीं रही बल्कि जाग उठी हो।
क्या विजय स्तम्भ में छुपी हैं आत्माओं की परछाइयाँ?
स्थानीय किवदंतियों और सुरक्षा गार्डों की माने तो रात में इस क्षेत्र से अजीब सी आवाजें आती हैं — जैसे कोई सीढ़ियाँ चढ़ रहा हो, किसी की धीमी फुसफुसाहट, स्त्री की कराहती आवाज, या फिर तलवारों की टकराहट की ध्वनि। कई लोगों ने ये भी दावा किया है कि उन्होंने एक सफेद साया स्तम्भ की ऊपरी मंजिल पर खड़े देखा, जो पलभर में हवा में गायब हो गया।
इतिहास का डरावना पहलू
चितौड़गढ़ का किला सिर्फ युद्धों का गवाह नहीं रहा, बल्कि यह जौहर और शाका की त्रासदियों से भी जुड़ा हुआ है। जब भी किले पर आक्रमण हुआ, रानियों और अन्य स्त्रियों ने विजय स्तम्भ के पास स्थित जौहर कुंड में आत्मदाह कर अपनी लाज बचाई। माना जाता है कि उन आत्माओं की पीड़ा आज भी इस जगह पर महसूस की जाती है।एक लोककथा के अनुसार, एक रानी ने अंतिम बार विजय स्तम्भ के शीर्ष से किले को निहारा और अपने अंतिम पलों में यहीं पर प्रार्थना की। तब से लोग कहते हैं कि उसकी आत्मा वहीं पर भटक रही है।
आंखों देखी घटनाएं
विनोद शर्मा, एक स्थानीय गाइड, बताते हैं, “मैं पिछले 15 सालों से यहां टूरिस्ट लाता हूं, लेकिन कभी किसी ने विजय स्तम्भ पर रात में रुकने की ज़िद नहीं की। एक बार दो युवकों ने कहा कि वे ऊपर तक जाकर रात की तस्वीरें खींचेंगे। आधे घंटे बाद दोनों घबराए हुए भागते आए और बोले कि उन्हें ऊपर किसी ने छुआ और एक स्त्री के रोने की आवाज भी आई।”सुरक्षा गार्ड रमेश सिंह का कहना है, “रात की ड्यूटी के दौरान मैं हमेशा किले के मुख्य द्वार के पास ही रहता हूं। विजय स्तम्भ के पास जाकर निगरानी करने की हिम्मत नहीं करता। कभी-कभी वहां से घंटियों और कराहों की आवाजें आती हैं।”
वैज्ञानिक तर्क या मन का भ्रम?
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब मन का भ्रम हो सकता है। पुराने पत्थरों और संकरी सीढ़ियों में ध्वनि का प्रतिध्वनि (echo) होना आम बात है। रात के सन्नाटे में हल्की आवाजें भी ज्यादा डरावनी लग सकती हैं। ऊपर से किले की ऊंचाई, हवा का दबाव और वातावरण में बदलाव मानसिक प्रभाव डालते हैं।लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर यह सिर्फ भ्रम है, तो हर साल यहां आने वाले पर्यटकों और स्थानीय लोगों को एक जैसी अनुभूतियाँ क्यों होती हैं?
क्यों नहीं रुकते लोग रात में?
पर्यटन विभाग ने सुरक्षा कारणों से किले और विजय स्तम्भ क्षेत्र को सूर्यास्त के बाद बंद कर दिया है। लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि असल वजह कुछ और है। वे कहते हैं कि विभाग भी जानता है कि वहां रात को कुछ असामान्य घटनाएं होती हैं, और किसी अनहोनी से बचने के लिए ही ये नियम बनाए गए हैं।
निष्कर्ष: विजय स्तम्भ — शौर्य और रहस्य का संगम
विजय स्तम्भ सिर्फ एक स्मारक नहीं, यह चितौड़ की आत्मा है। इसके पत्थर वीरता की कहानी कहते हैं, लेकिन शायद उन्हीं पत्थरों में कुछ ऐसा भी दफन है जो आज भी चैन से नहीं सो पाया है। यह तय करना कठिन है कि रात के समय यहां दिखाई देने वाली परछाइयाँ हमारे डर की उपज हैं या वाकई कोई आत्मिक उपस्थिति।पर यह निश्चित है कि विजय स्तम्भ न केवल भारत की ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि एक ऐसा स्थल भी है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हर इतिहास सिर्फ किताबों में ही बंद होता है, या वह समय-समय पर हमें खुद को महसूस भी कराता है?

