क्यों बनवाया राणा कुम्भा ने चित्तौड़ में विजय स्तम्भ? वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानें मालवा विजय से लेकर निर्माण तक की प्रेरक कहानी
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले में स्थित विजय स्तम्भ (Victory Tower) सिर्फ एक भव्य स्थापत्य नहीं, बल्कि यह भारत के गौरवशाली इतिहास की एक जीवंत प्रतीक है। यह स्तम्भ न सिर्फ स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि मेवाड़ के महान राजा राणा कुम्भा की युद्ध विजय और उनके स्वाभिमान की कहानी भी बयान करता है। आज भी यह स्तम्भ इतिहास प्रेमियों, पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पर सवाल यह उठता है – आखिर किस युद्ध में मिली जीत के बाद राणा कुम्भा ने इसका निर्माण कराया था? चलिए, इस ऐतिहासिक रहस्य की परतों को खोलते हैं।
मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर शानदार विजय
15वीं सदी में राणा कुम्भा मेवाड़ राज्य के शासक थे। वे न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि कला, संस्कृति और स्थापत्य के महान संरक्षक भी माने जाते हैं। राणा कुम्भा का सबसे बड़ा युद्ध मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के साथ हुआ था, जो उस समय चित्तौड़ पर नियंत्रण की लालसा रखता था।1440 ई. में चित्तौड़गढ़ पर हमले की योजना बनाकर महमूद खिलजी ने मेवाड़ पर चढ़ाई की। लेकिन राणा कुम्भा ने अपने पराक्रम, रणनीति और संगठन शक्ति के दम पर न केवल इस हमले को विफल किया, बल्कि मंडू तक चढ़ाई कर महमूद खिलजी की सेना को पराजित कर दिया। इस युद्ध में राणा की निर्णायक जीत ने उनकी वीरता और राजनैतिक सूझबूझ को पूरे भारत में प्रसिद्ध कर दिया।
विजय स्तम्भ का निर्माण – वीरता की अमिट छाप
इसी ऐतिहासिक विजय को अमर बनाने के लिए राणा कुम्भा ने 1448 ई. में विजय स्तम्भ का निर्माण कार्य शुरू करवाया। यह स्तम्भ लगभग 37 मीटर (122 फीट) ऊँचा है और इसकी कुल 9 मंजिलें हैं। इसे चित्तौड़ दुर्ग के भीतर स्थित समिधेश्वर मंदिर के पास बनवाया गया, ताकि यह दूर से ही दिख सके और आने वाली पीढ़ियाँ राणा की वीरता को याद रख सकें।इस स्तम्भ का वास्तुशिल्प अद्वितीय है। इसमें हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, युद्ध की झलकियां, राजसी प्रतिकृतियाँ और पौराणिक कथाएं सुंदरता से उकेरी गई हैं। यह पूरी तरह से राजस्थानी स्थापत्य शैली में निर्मित है और इसमें रेतीले पत्थर (sandstone) का इस्तेमाल किया गया है।
निर्माण में छिपी रोचक गाथा
इतिहासकारों के अनुसार विजय स्तम्भ के निर्माण में लगभग 10 से 12 साल लगे थे। इस अद्भुत संरचना को बनाने वाले मुख्य शिल्पकार का नाम था जिता और पूजा। स्तम्भ के चारों ओर और अंदर देवनागरी लिपि में शिलालेखों के माध्यम से न केवल राणा कुम्भा की विजय का वर्णन है, बल्कि उनके वंश, शासन और धार्मिक विश्वासों की जानकारी भी मिलती है।एक विशेष तथ्य यह है कि स्तम्भ की दीवारों पर विष्णु पुराण, रामायण, महाभारत और भागवत पुराण से लिए गए दृश्य भी दर्शाए गए हैं, जो इसे धार्मिक महत्व भी प्रदान करते हैं। यह इकलौता ऐसा स्मारक है जिसमें विजेता राजा ने स्वयं की मूर्ति नहीं बनवाई, बल्कि अपनी प्रजा, वीर सैनिकों और ब्राह्मणों को प्रमुख स्थान दिया।
चित्तौड़ के गौरव की प्रतीक
विजय स्तम्भ केवल एक स्थापत्य संरचना नहीं है, यह एक विचारधारा है – धर्म, राष्ट्र और स्वाभिमान की रक्षा के लिए किए गए बलिदान की अमिट छाप। यह स्तम्भ आज भी उस दौर की याद दिलाता है जब भारत की भूमि पर स्वराज, संस्कृति और शौर्य की कहानियाँ हर कोने से गूंजती थीं।वर्तमान समय में यह स्तम्भ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है और हर वर्ष लाखों सैलानी इसे देखने आते हैं। यहां पहुंचने वाले पर्यटकों के मन में गर्व की भावना स्वतः जाग उठती है।

