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कुम्भलगढ़ फोर्ट: क्यों इस अभेद्य किले को देखने खींचे चले आते है पर्यटक, वीडियो में जाने वो ख़ास बाते जो आपको भी यहां घूमने पर कर देंगी मजबूर

कुम्भलगढ़ फोर्ट: क्यों इस अभेद्य किले को देखने खींचे चले आते है पर्यटक, वीडियो में जाने वो ख़ास बाते जो आपको भी यहां घूमने पर कर देंगी मजबूर

राजस्थान के राजसमंद जिले में अरावली पर्वतों की गोद में बसा कुम्भलगढ़ दुर्ग न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। अपनी रणनीतिक बनावट, ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह किला भारतीय धरोहरों में एक अनमोल रत्न है। यह किला महाराणा कुम्भा की दूरदर्शिता और स्थापत्य कला का ऐसा उदाहरण है, जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है।


इतिहास से जुड़ी वीरगाथा
कुम्भलगढ़ किला 15वीं सदी में महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया था। यह वही शासक थे जिन्होंने मेवाड़ को मजबूत और संगठित किया। खास बात यह है कि इसी किले में महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। ऐसे में यह किला सिर्फ एक पर्यटन स्थल ही नहीं, बल्कि राजपूती शौर्य और बलिदान की निशानी भी है।

एशिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार
कुम्भलगढ़ किले की एक सबसे बड़ी विशेषता इसकी प्राचीर (दीवार) है, जो लगभग 36 किलोमीटर लंबी है। यह दीवार इतनी विशाल है कि इसे अक्सर "भारत की ग्रेट वॉल" भी कहा जाता है। यह दीवार दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है, जो दुर्ग को चारों ओर से सुरक्षा कवच की तरह घेरती है।

अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था
इस किले की बनावट इतनी मजबूत है कि इतिहास में इसे कई बार जीतने की कोशिश की गई, लेकिन यह दुर्ग केवल छल और संयोग से ही जीता जा सका। ऊँचाई पर स्थित यह किला प्राकृतिक रूप से भी सुरक्षित है, क्योंकि यह ऊँची पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ है। दुर्ग के भीतर की संकरी गलियां, ऊंचे प्रवेश द्वार और विशाल दरवाजे इसकी सैन्य रणनीति का हिस्सा थे।

कला और वास्तुकला का अद्भुत मिश्रण
कुम्भलगढ़ सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि एक स्थापत्य चमत्कार भी है। इसकी दीवारें पत्थरों से बनी हैं लेकिन इतनी खूबसूरती से जोड़ी गई हैं कि आज भी मजबूती से खड़ी हैं। किले के अंदर लगभग 300 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें हिंदू और जैन मंदिर दोनों शामिल हैं। बदल महल, जो किले के ऊपरी भाग में स्थित है, अपनी चित्रकारी और शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है। महल की दीवारों पर की गई पेंटिंग्स और जटिल नक्काशी दर्शकों को उस युग की सांस्कृतिक समृद्धि से परिचित कराती हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य का मिलन
कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य से घिरे इस किले की लोकेशन उसे और भी खास बनाती है। यहां की हरियाली, घाटियाँ और दूर-दूर तक फैले जंगल एक अलग ही शांति और प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव कराते हैं। यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का नज़ारा बेहद मोहक होता है, जिसे देखने के लिए विशेष रूप से फोटोग्राफर और प्रकृति प्रेमी खिंचे चले आते हैं।

रात की रोशनी में जगमगाता किला
हर शाम को कुम्भलगढ़ किला कुछ घंटों के लिए रोशनी से सजाया जाता है। जब यह किला जगमगाता है, तब इसकी दीवारें, बुर्ज और मंदिर किसी फिल्मी दृश्य जैसे लगते हैं। यह नज़ारा पर्यटकों के लिए अविस्मरणीय अनुभव बन जाता है।

पर्यटन के लिए बेहतरीन स्थान
राजस्थान घूमने आए पर्यटक अक्सर जयपुर, उदयपुर और जोधपुर जैसी जगहों को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन जो लोग सच्ची ऐतिहासिक और सांस्कृतिक यात्रा चाहते हैं, उनके लिए कुम्भलगढ़ किसी खजाने से कम नहीं। यहां आने वाले सैलानी ट्रेकिंग, फोटोग्राफी, ऐतिहासिक शोध और शांति की तलाश में यहां पहुंचते हैं।

वर्ल्ड हेरिटेज टैग और बढ़ती लोकप्रियता
कुम्भलगढ़ किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में भी शामिल है, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है। हर साल यहां देश-विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं, जिससे यह क्षेत्र राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शुमार हो चुका है।

कैसे पहुंचे कुम्भलगढ़?
कुम्भलगढ़ पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी शहर उदयपुर है, जो लगभग 85 किलोमीटर दूर है। उदयपुर से टैक्सी या बस के जरिए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन भी उदयपुर में ही है, और हवाई अड्डा भी वहीं स्थित है।

कुम्भलगढ़ किला सिर्फ ईंट-पत्थरों की एक मजबूत संरचना नहीं, बल्कि यह इतिहास, परंपरा, संस्कृति, भक्ति और शौर्य का जीवंत प्रतीक है। यहां की वास्तुकला, अद्भुत दीवारें, प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक कहानियां हर सैलानी के मन में ऐसी छाप छोड़ती हैं कि वह यहां बार-बार लौटने की इच्छा करता है। अगर आपने अब तक इस जगह की यात्रा नहीं की है, तो अगली बार राजस्थान की योजना बनाते समय कुम्भलगढ़ को जरूर शामिल करें – क्योंकि ये सिर्फ यात्रा नहीं, एक अनुभव है।

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