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तीन मिनट की डॉक्यूमेंट्री में देखे बीसलपुर बांध का पूरा इतिहास, कब और क्यों बना ये डैम और कितनी बार खोले गए गेट 

तीन मिनट की डॉक्यूमेंट्री में देखे बीसलपुर बांध का पूरा इतिहास, कब और क्यों बना ये डैम और कितनी बार खोले गए गेट 

राजस्थान के टोंक जिले में स्थित बीसलपुर बांध न सिर्फ एक प्रमुख जलस्रोत है, बल्कि यह जयपुर, टोंक, अजमेर, दौसा और सवाई माधोपुर जैसे कई जिलों की जीवनरेखा बन चुका है। हर साल बारिश के मौसम में इस बांध की स्थिति पर लोगों की नजरें टिकी होती हैं। आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक और रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बांध का इतिहास, निर्माण से लेकर इसके अब तक खुल चुके गेटों की पूरी जानकारी।

बीसलपुर बांध का इतिहास और निर्माण

बीसलपुर बांध की योजना सबसे पहले 1960 के दशक में प्रस्तावित की गई थी, जब राज्य सरकार ने इस क्षेत्र में एक बहुद्देश्यीय जल परियोजना विकसित करने की आवश्यकता महसूस की। इस बांध का मुख्य उद्देश्य था – सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और बाढ़ नियंत्रण। निर्माण कार्य वर्ष 1985 में शुरू किया गया और यह लगभग दो दशकों तक चलता रहा। वर्ष 1999-2000 के आसपास इस बांध को पूर्ण रूप से कार्यशील कर दिया गया।इस बांध का निर्माण बाणास नदी पर किया गया है, जो कि चंबल नदी की सहायक नदी है। बाणास नदी राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी हिस्से में बहती है और यह क्षेत्र जल संकट से हमेशा जूझता रहा है। ऐसे में बीसलपुर बांध का बनना एक बड़ा जल-क्रांतिकारी कदम माना गया।

बांध की भौगोलिक और तकनीकी विशेषताएं

बीसलपुर बांध की कुल जल भंडारण क्षमता लगभग 315.50 मीटर है, जो कि राजस्थान जैसे जल संकटग्रस्त राज्य के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसकी अधिकतम जलभराव क्षमता लगभग 1,090 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) है। यह एक ग्रेविटी डैम है और इसकी ऊंचाई करीब 39.5 मीटर है, जबकि लंबाई करीब 574 मीटर है।बांध का जल मुख्य रूप से मानसून के समय में एकत्र होता है और फिर इसे विभिन्न जिलों को पाइपलाइन और नहरों के ज़रिये आपूर्ति किया जाता है। जयपुर शहर की पेयजल आपूर्ति का लगभग 60-70 प्रतिशत हिस्सा बीसलपुर से ही आता है।

कितनी बार खोले गए हैं बीसलपुर के गेट?

बीसलपुर बांध के गेट खोलना एक बड़ा प्रशासनिक निर्णय होता है, जो जलस्तर के खतरे के निशान तक पहुंचने के बाद लिया जाता है। 2000 के दशक की शुरुआत में जब यह बांध पूरी तरह कार्यशील हुआ, तब से लेकर अब तक बीसलपुर के गेट कई बार खोले जा चुके हैं।अब तक (2024 तक के आंकड़ों के अनुसार), बीसलपुर बांध के गेट कुल 10 से अधिक बार खोले जा चुके हैं। पहली बार गेट 2005 में खोले गए थे जब बाणास नदी में भारी बारिश के कारण जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर चला गया था। उसके बाद लगभग हर मानसून में या तो सभी गेट या कुछ गेट आंशिक रूप से खोले जाते रहे हैं।विशेष रूप से वर्ष 2016, 2019, 2020 और 2023 में भारी बारिश के चलते गेट पूरी तरह खोलने की नौबत आई। इस दौरान बाणास नदी के निचले हिस्सों में बाढ़ जैसे हालात भी बने, लेकिन समय रहते प्रशासन ने राहत कार्य और नियंत्रण में सफलता प्राप्त की।

गेट खोलने के नियम और सावधानियां

बीसलपुर बांध के गेट तभी खोले जाते हैं जब जलस्तर 315.50 मीटर की अधिकतम सीमा के करीब पहुंच जाता है। इससे पहले जल संसाधन विभाग की तकनीकी टीम लगातार मॉनिटरिंग करती है और मौसम विभाग के अलर्ट को भी ध्यान में रखा जाता है।गेट खोलने से पहले निचले इलाकों में बसे गांवों को चेतावनी जारी की जाती है, और आवश्यकता होने पर लोगों को अस्थायी रूप से सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाता है।गेट खोलने की प्रक्रिया तकनीकी रूप से काफी संवेदनशील होती है, क्योंकि इससे जल की तेज़ निकासी होती है जो आसपास के इलाकों को प्रभावित कर सकती है।

बीसलपुर की वर्तमान स्थिति और महत्व

वर्तमान में बीसलपुर बांध राजस्थान की राजधानी जयपुर सहित अजमेर, टोंक, और कई कस्बों के लिए प्रमुख पेयजल आपूर्ति का स्रोत है। इसके जल से हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि को भी सिंचाई के लिए जल मिलता है।राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार ने इस बांध को एक मॉडल जल परियोजना के रूप में मान्यता दी है। यहां पर पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। मानसून के दौरान जब बांध लबालब हो जाता है, तब इसकी खूबसूरती और विशालता देखने लायक होती है।

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