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वीडियो में देखे कैसे बंजर पड़े थार रेगिस्तान की जीवन रेखा बनी इंदिरा गांधी नहर, जानिए भारत की सबसे बड़ी नहर परियोजना की पूरी कहानी

वीडियो में देखे कैसे बंजर पड़े थार रेगिस्तान की जीवन रेखा बनी इंदिरा गांधी नहर, जानिए भारत की सबसे बड़ी नहर परियोजना की पूरी कहानी

राजस्थान का थार मरुस्थल कभी केवल सूखी रेत, जल संकट और सूखे की मार के लिए जाना जाता था। परंतु आज वही धरती हरियाली और उपज से भरी नज़र आती है। इस असंभव को संभव किया भारत की सबसे बड़ी नहर परियोजना – इंदिरा गांधी नहर (Indira Gandhi Canal) ने। यह केवल एक सिंचाई परियोजना नहीं है, बल्कि यह राजस्थान के जीवन में हरियाली और समृद्धि की एक नई क्रांति है। आइए जानते हैं कैसे यह परियोजना बनी रेगिस्तान की जीवनरेखा और किस तरह इसने लाखों किसानों की तकदीर बदल दी।


इंदिरा गांधी नहर: एक ऐतिहासिक शुरुआत
इंदिरा गांधी नहर परियोजना को पहले “राजस्थान नहर परियोजना” के नाम से जाना जाता था। इसकी नींव 1958 में रखी गई थी, लेकिन इसका नया नाम भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर 1984 में दिया गया। इसकी परिकल्पना स्वतंत्रता के बाद की गई थी, जब भारत सरकार ने थार क्षेत्र में जल संकट और अकाल जैसी समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए एक ठोस योजना पर काम करना शुरू किया।

कहां से निकलती है यह नहर?
यह नहर हरिके बैराज (पंजाब में स्थित) से निकलती है, जो सतलुज और ब्यास नदियों के संगम पर स्थित है। वहां से यह नहर पंजाब, हरियाणा होते हुए राजस्थान में प्रवेश करती है। राजस्थान में यह नहर गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू, जैसलमेर और बाड़मेर जिलों से होकर गुजरती है। इसकी कुल लंबाई करीब 649 किलोमीटर है, और इसके साथ जुड़ी शाखाएं मिलाकर कुल लंबाई 9,245 किलोमीटर से भी अधिक हो जाती है।

रेगिस्तान में हरियाली का चमत्कार
जिस भूमि को कभी बंजर माना जाता था, वहां आज गेहूं, कपास, गन्ना, बाजरा, सरसों और मूंग जैसी फसलें लहलहा रही हैं। इंदिरा गांधी नहर ने राजस्थान के उत्तरी और पश्चिमी हिस्से को सिंचित करके कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया। पहले जहां 10% से कम भूमि सिंचित थी, आज वह आँकड़ा 60% तक पहुँच गया है।

36,00,000 हेक्टेयर भूमि हुई उपजाऊ
इंदिरा गांधी नहर परियोजना के जरिए राजस्थान में करीब 36 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के दायरे में लाया गया है। इससे न केवल किसानों को राहत मिली है, बल्कि खाद्यान्न उत्पादन में भी भारी इजाफा हुआ है। कई गांवों में पहले जहाँ पीने के पानी की भारी किल्लत थी, आज वहां नलों से मीठा पानी आ रहा है।

सामाजिक और आर्थिक बदलाव
इस नहर के कारण न सिर्फ खेती को बढ़ावा मिला बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी बढ़े। किसानों की आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनस्तर सुधरा। कई जगहों पर लोगों ने पशुपालन, डेयरी और बागवानी जैसे वैकल्पिक व्यवसाय शुरू किए हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी आसान हुई है क्योंकि जल संसाधनों की उपलब्धता से जन जीवन में स्थायित्व आया।

पर्यावरणीय प्रभाव
जहां एक ओर यह परियोजना हरियाली और समृद्धि का प्रतीक बनी, वहीं दूसरी ओर इसके पर्यावरणीय प्रभावों की चर्चा भी जरूरी है। नहर के पानी से ज़मीन में जल स्तर बढ़ा, लेकिन कुछ क्षेत्रों में जलभराव और क्षारीयता की समस्या भी देखी गई। भूमिगत जल में वृद्धि से कई बार मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसके लिए सरकार द्वारा ड्रेनेज सिस्टम सुधारने और जल प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

जल विवाद और चुनौतियाँ
पानी की इस बहुमूल्य धारा को लेकर पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच समय-समय पर जल बंटवारे को लेकर विवाद भी होते रहे हैं। सिंचाई के लिए उपलब्ध जल की मात्रा सीमित होने के कारण इसे न्यायसंगत तरीके से बांटने की चुनौती बनी रहती है। इसके अलावा, नहरों की साफ-सफाई और रिसाव को रोकने के लिए भी निरंतर निगरानी की आवश्यकता होती है।

भविष्य की ओर: तकनीकी नवाचार और योजना
वर्तमान में राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार मिलकर माइक्रो इरिगेशन, ड्रिप सिस्टम, और लाइनिंग ऑफ केनाल्स जैसे उपाय अपना रही है ताकि जल का संरक्षण हो और अधिक भूमि को सिंचित किया जा सके। इंदिरा गांधी नहर परियोजना को स्मार्ट जल प्रबंधन से जोड़कर इसे और अधिक कुशल और टिकाऊ बनाया जा रहा है।

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