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दूर-दूर से जल महल का दीदार करने आते है पर्यटक लेकिन क्यों नहीं मिलती अन्दर जाने की अनुमति ? वीडियो में जानिए चौकाने वाला कारण 

दूर-दूर से जल महल का दीदार करने आते है पर्यटक लेकिन क्यों नहीं मिलती अन्दर जाने की अनुमति ? वीडियो में जानिए चौकाने वाला कारण 

जयपुर, राजस्थान की राजधानी, अपने शाही किलों, हवेलियों और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इन्हीं धरोहरों में एक है 'जल महल', जो मान सागर झील के बीचों-बीच स्थित है और दूर से देखने पर मानो पानी की गोद में तैरता हुआ महल प्रतीत होता है। लेकिन एक सवाल हर पर्यटक के मन में जरूर आता है—जब यह महल इतना सुंदर और ऐतिहासिक है, तो इसमें प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं दी जाती?

जल महल का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था। राजा माधो सिंह प्रथम ने इसे एक लॉज (विलास स्थल) के रूप में बनवाया था जहाँ वह शिकार के दौरान विश्राम करते थे। बाद में इसे राजा सवाई प्रताप सिंह ने और भी भव्यता दी। महल का वास्तुशिल्प राजपूत और मुग़ल शैली का बेजोड़ मिश्रण है, और इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इसके पांच मंजिलों में से चार पानी में डूबी रहती हैं। सिर्फ ऊपरी मंजिल ही दिखाई देती है।

इतिहास और सुंदरता के बावजूद पर्यटकों को आज भी जल महल के भीतर जाने की अनुमति नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं—कुछ तकनीकी, कुछ प्रशासनिक और कुछ सुरक्षा से जुड़े हुए। सबसे पहला कारण है संरचना की जर्जर स्थिति। समय और पानी के लगातार संपर्क में रहने के कारण महल की निचली मंजिलें काफी हद तक क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। यदि पर्यटकों को अनुमति दी जाती है तो न केवल उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है, बल्कि ऐतिहासिक संरचना को भी नुकसान पहुंच सकता है।

दूसरा बड़ा कारण है कि जल महल अभी तक पूरी तरह से संरक्षित स्मारक के रूप में विकसित नहीं हो पाया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और राजस्थान पर्यटन विभाग के बीच इसकी देखरेख और रखरखाव को लेकर कई वर्षों से चर्चा चल रही है। हालांकि बाहर से महल को कुछ साल पहले रिनोवेट किया गया था, लेकिन अंदरूनी संरचना अब भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है।

तीसरा कारण है मान सागर झील की स्थिति। कभी यह झील शुद्ध और जलचर जीवों से भरपूर हुआ करती थी, लेकिन शहरीकरण, सीवेज और कचरे की वजह से इसका पानी प्रदूषित हो गया है। झील की सफाई और पारिस्थितिकी को बहाल करने के प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी यह पूरी तरह सुरक्षित और स्वच्छ नहीं है। चूंकि महल तक जाने के लिए नावों का उपयोग करना पड़ता है, इसलिए यह भी एक वजह है कि आम लोगों को भीतर जाने की अनुमति नहीं दी जाती।

चौथा महत्वपूर्ण पहलू है सुरक्षा और निगरानी की कमी। जल महल का स्थान ऐसा है जहाँ कोई सुरक्षा व्यवस्था तैनात नहीं है। ना ही वहां सीसीटीवी कैमरे हैं और ना ही नियमित निगरानी। यदि अंदर जाने की अनुमति दे दी जाए, तो भीड़ को नियंत्रित करना और ऐतिहासिक धरोहर को बचाए रखना एक बड़ी चुनौती बन जाएगा।

हालांकि कई बार राज्य सरकार और पर्यटन विभाग ने जल महल को जनता के लिए खोलने की योजना बनाई है। कुछ निजी कंपनियों ने इसे 'हेरिटेज होटल' या 'झील कैफे' के रूप में विकसित करने के प्रस्ताव भी दिए, लेकिन पर्यावरणविदों और संरक्षणवादियों ने इस पर आपत्ति जताई। उनका मानना है कि इससे महल की मौलिकता और पर्यावरण संतुलन पर असर पड़ेगा।

वर्तमान में पर्यटक जल महल का आनंद दूर से ही लेते हैं, झील के किनारे खड़े होकर उसकी भव्यता को कैमरे में कैद करते हैं और सूर्यास्त के समय महल का प्रतिबिंब पानी में देखकर रोमांचित हो जाते हैं। जल महल के सामने बना 'जल महल रोड' भी स्थानीय लोगों और सैलानियों के लिए एक लोकप्रिय वॉकिंग जोन बन चुका है। आसपास मिलने वाली राजस्थानी चाट, जलेबी, कुल्फी और लोक कलाकारों की प्रस्तुतियाँ इस अनुभव को और खास बना देती हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जाए तो जल महल की सुंदरता और ऐतिहासिक महत्ता आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी सदी पहले थी, लेकिन इसके भीतर प्रवेश की अनुमति नहीं मिलना एक सुरक्षा, संरक्षण और संवेदनशीलता का सवाल है। यदि कभी भविष्य में इसकी मरम्मत और निगरानी की व्यवस्था पूरी तरह से हो पाती है, तो यह जयपुर पर्यटन का एक और बड़ा आकर्षण बन सकता है।तब तक, पर्यटकों को इसे दूर से ही निहारकर संतोष करना होगा — और शायद यही इसकी रहस्यमयी खूबसूरती को जीवित भी रखता है।

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