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सोने-चांदी और अफीम की तस्करी से खड़ी हुई राजस्थान की ये शाही हवेली, 2 मिनट के शानदार वीडियो में जानिए इसकी अनसुनी कहानी

सोने-चांदी और अफीम की तस्करी से खड़ी हुई राजस्थान की ये शाही हवेली, 2 मिनट के शानदार वीडियो में जानिए इसकी अनसुनी कहानी

जैसलमेर (राजस्थान)। भारत के रेगिस्तानी राज्य राजस्थान के दिल जैसलमेर में स्थित ‘पटवों की हवेली’ केवल एक भव्य इमारत नहीं, बल्कि इतिहास, व्यापार और रहस्य का जीवंत प्रतीक है। पीली रेत से बने इस शहर में पीले पत्थरों से गढ़ी गई यह हवेली ‘स्वर्ण नगरी’ की पहचान मानी जाती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस ऐतिहासिक इमारत की नींव जिन हाथों ने रखी थी, उनका साम्राज्य केवल व्यापार तक सीमित नहीं था – बल्कि उनके धन के स्रोतों में सोना, चांदी और अफीम की तस्करी भी शामिल थी।


हवेली नहीं, एक वास्तुशिल्प चमत्कार

जैसलमेर की ‘पटवों की हवेली’ को अक्सर हवेलियों का समूह कहा जाता है, लेकिन यह मूल रूप से एक परिवार की पांच अलग-अलग हवेलियों का संगम है। इनका निर्माण 19वीं सदी के आरंभ में शुरू हुआ था, जब पटवा जाति के गुमानचंद पटवा ने इस शानदार परिसर की योजना बनाई। यह परिवार राजस्थान के धनी व्यापारियों में गिना जाता था, और खासकर सोने-चांदी की ज्वैलरी, कपड़े और बहुमूल्य सामानों के लेनदेन में इनकी गहरी पैठ थी।

सोने-चांदी और अफीम का कारोबार
स्थानीय किवदंतियों और बुजुर्गों की बात मानें तो पटवाओं की संपत्ति का प्रमुख स्त्रोत उनका पारंपरिक व्यापार नहीं, बल्कि तस्करी था। खास तौर पर सोने, चांदी और अफीम की तस्करी से गुमानचंद पटवा ने भारी मुनाफा कमाया। उस समय राजस्थान, गुजरात और अफगानिस्तान के बीच अवैध व्यापार के कई रूट सक्रिय थे, जिनमें जैसलमेर एक प्रमुख केंद्र बन गया था। गुप्त व्यापार मार्गों और ऊँटों के काफिलों के सहारे अफीम का अवैध लेनदेन बड़े पैमाने पर होता था। यही धन हवेलियों के निर्माण में झोंक दिया गया।

50 साल में बना 'पटवों की हवेली' का सपना
इतिहासकारों के अनुसार इस हवेली का निर्माण लगभग 50 वर्षों में पूरा हुआ। इसकी शुरुआत 1805 में हुई थी और यह पाँच भाइयों के लिए पाँच अलग-अलग खंडों में निर्मित की गई। हर हवेली की वास्तुशिल्प शैली एक दूसरे से मेल खाती है, लेकिन भीतर की बनावट और भित्ति चित्रों में अलग-अलग रूचियाँ दिखाई देती हैं। इन हवेलियों की खासियत है उनकी महीन जालीदार खिड़कियाँ, सुंदर झरोखे, दीवारों पर सोने से जड़ी चित्रकारी और लकड़ी की बेहतरीन नक्काशी।

मरुस्थल में कला की नायाब मिसाल
राजस्थान के सुदूर पश्चिमी कोने में बसे जैसलमेर जैसे शुष्क क्षेत्र में इतनी भव्य हवेली का निर्माण कराना अपने-आप में एक मिसाल है। स्थानीय पीले बलुआ पत्थर से तैयार यह हवेली हर उस पर्यटक को मंत्रमुग्ध कर देती है जो इसकी महीन कारीगरी को नजदीक से देखता है। हवेली में बनाए गए जालियों जैसे झरोखे न केवल सौंदर्य में इज़ाफा करते हैं बल्कि गर्मी से भी बचाव करते हैं।

हवेली का अतीत, वर्तमान और पर्यटन
आज पटवों की हवेली राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गिनी जाती है। इसके कुछ हिस्सों को संग्रहालय में बदल दिया गया है, जबकि कुछ अभी भी पटवा वंश के उत्तराधिकारियों के कब्जे में हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित यह हवेली पर्यटकों को जैसलमेर की राजसी विरासत, व्यापारिक इतिहास और संस्कृति की झलक एक ही स्थान पर देती है।

हवेली से जुड़ी रहस्यमय मान्यताएं
जहां एक ओर पटवों की हवेली अपनी भव्यता के लिए मशहूर है, वहीं इसके निर्माण और परित्यक्त हिस्सों से जुड़ी कई रहस्यमय कहानियाँ भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि हवेली के कुछ भागों में वर्षों तक कोई नहीं रह पाया। इसके पीछे वजह बताई जाती है कि जब हवेली का निर्माण हुआ, तब उस धन का एक बड़ा हिस्सा अनैतिक और गैरकानूनी तरीकों से कमाया गया था, जिसकी वजह से इस हवेली को एक “अभिशप्त विरासत” तक कहा जाने लगा।

शाही वास्तुकला और बाजार की सांस्कृतिक धरोहर
पटवों की हवेली न केवल वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि जैसलमेर के हृदयस्थल में स्थित होने के कारण यह आज भी स्थानीय बाजार और संस्कृति से जुड़ी हुई है। इसकी गलियों में चलते हुए आज भी पर्यटक पारंपरिक वस्त्र, हस्तशिल्प और स्थानीय स्वाद का अनुभव ले सकते हैं।

‘पटवों की हवेली’ सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि इतिहास का वो अध्याय है जो राजस्थान के व्यापारिक, सांस्कृतिक और सामाजिक ढांचे की गवाही देता है। चाहे इसकी निर्माण गाथा में छुपी अवैध व्यापार की परछाइयाँ हों या इसकी कारीगरी में छुपा शुद्ध सौंदर्य, यह हवेली हर दृष्टिकोण से एक अद्भुत धरोहर है। जैसलमेर आने वाला हर सैलानी इसकी कहानियों में खो जाता है और सोचता है – कैसे तस्करी से कमाया गया धन एक कालजयी कला में तब्दील हो गया।

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