विशाल थार रेगिस्तान में स्थित माता का ये चमत्कारी मंदिर जहाँ दुश्मन के 450 बम भी हुए बेअसर, वीडियो में जाने चमत्कार की अनोखी गाथा

राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में स्थित जैसलमेर जिले के तनोट गांव में एक ऐसा मंदिर है, जो न सिर्फ आस्था का केंद्र बन गया है, बल्कि देशभक्ति और चमत्कार का प्रतीक भी बन गया है। भारत-पाकिस्तान सीमा के बेहद करीब स्थित तनोट माता मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके चमत्कारी इतिहास ने इसे भारतीय सेना और आम लोगों के बीच खास सम्मान दिलाया है। तनोट माता को 'थार की वैष्णो देवी' और 'सैनिकों की देवी' के नाम से भी जाना जाता है।यहां दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने आते हैं। यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक स्थल है, बल्कि भारत और पाकिस्तान की सीमा पर शांति और शक्ति का प्रतीक भी है। इस चमत्कारी मंदिर की कहानी आज भी लोगों को हैरान करती है और माता तनोट के प्रति उनकी भक्ति को बढ़ाती है। आइए जानते हैं इस मंदिर के प्राचीन इतिहास के बारे में।
तनोट माता मंदिर का चमत्कारी इतिहास
तनोट माता को हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था और यहां मान्यता है कि माता तनोट अपने भक्तों की रक्षा स्वयं करती हैं। यह मान्यता केवल लोककथाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इतिहास ने भी इसे प्रमाणित किया है। पाकिस्तानी सेना ने कई बार मंदिर को निशाना बनाने की कोशिश की, लेकिन माता की कृपा से हर बार उनकी कोशिशें नाकाम हो गईं। मंदिर की दीवारों या ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। यह घटना न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि भारतीय सेना के जवानों के लिए भी एक अद्भुत रहस्य और अटूट आस्था का प्रतीक बन गई।
1965 के भारत-पाक युद्ध में चमत्कार
इस मंदिर की सबसे प्रसिद्ध घटना 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सामने आई थी। पाकिस्तान की ओर से तनोट क्षेत्र में भारी बमबारी हुई थी। मंदिर परिसर और उसके आसपास करीब 3,000 बम गिरे, लेकिन न तो मंदिर को कोई नुकसान पहुंचा और न ही कोई बम फटा। भारतीय सेना के जवानों का मानना है कि यह माता तनोट की कृपा थी।
1971 के युद्ध में भी मिला था आशीर्वाद
1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान इस मंदिर ने चमत्कारिक रूप से भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ाया था। इस युद्ध में भी तनोट क्षेत्र एक महत्वपूर्ण मोर्चा रहा, लेकिन माता के आशीर्वाद से भारतीय सेना ने जीत हासिल की। इसके बाद भारतीय सीमा सुरक्षा बल ने इस मंदिर की देखभाल का जिम्मा संभाला।
मंदिर का संचालन बीएसएफ करती है
आज भी सीमा सुरक्षा बल के जवान तनोट माता मंदिर की देखभाल करते हैं। वे न केवल मंदिर की साफ-सफाई और पूजा-अर्चना का ध्यान रखते हैं, बल्कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा और व्यवस्था भी सुनिश्चित करते हैं। यहां हर दिन सैन्य अनुशासन की तरह ध्वजारोहण और आरती की जाती है।
पर्यटन और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण
तनोट माता मंदिर एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल बन गया है। देश-विदेश से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। जैसलमेर से तनोट की दूरी करीब 120 किमी है और रास्ते में थार रेगिस्तान की खूबसूरती भी श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती है। आज भी मंदिर परिसर में युद्ध के दौरान गिरे बम देखे जा सकते हैं जो फटे नहीं थे। ये बम अब कांच के बक्सों में रखे हुए हैं और भक्तों के लिए इस बात का जीता जागता सबूत हैं कि भगवान पर विश्वास से असंभव भी संभव हो सकता है।