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भारत के भौगोलिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अरावली पर्वत श्रृंखला (Aravalli Range) का विशेष स्थान है। यह न केवल भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला मानी जाती है, बल्कि इसका महत्व पर्यावरणीय, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत बड़ा है। आइए इस लेख के माध्यम से जानते हैं अरावली पर्वत श्रृंखला के बारे में विस्तार से।

अरावली पर्वत श्रृंखला का परिचय

अरावली पर्वत श्रृंखला उत्तर-पश्चिम भारत में स्थित एक प्राचीन पर्वतमाला है, जो मुख्यतः राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात राज्यों से होकर गुजरती है। इसका विस्तार राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भाग, गुजरात के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, हरियाणा के दक्षिणी हिस्सों और दिल्ली के कुछ भागों तक है। इस पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई लगभग 692 किलोमीटर है। यह श्रृंखला उत्तर में हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले से शुरू होकर दक्षिण में गुजरात के साबरकांठा जिले तक जाती है।

अरावली का भूवैज्ञानिक महत्व

अरावली पर्वत श्रृंखला को पृथ्वी की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक माना जाता है। इसका निर्माण लगभग 1.8 बिलियन वर्ष पहले हुआ था। इसे धरती की Precambrian rocks से बना माना जाता है, जो कि टेक्टोनिक प्लेटों की टकराहट से बनी थीं। यह पर्वतमाला अब "वृद्ध" यानी बहुत पुरानी होने के कारण बहुत अधिक ऊँची नहीं है, बल्कि जगह-जगह पर खंडित हो चुकी है। इसका सबसे ऊँचा शिखर गुरु शिखर है, जो माउंट आबू में स्थित है और जिसकी ऊँचाई लगभग 1722 मीटर है।

जैव विविधता और पर्यावरणीय महत्व

अरावली पर्वत श्रृंखला जैव विविधता का खजाना है। यह पर्वतमाला शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में हरियाली का प्रमुख स्रोत है। यहां अनेक प्रकार के पेड़-पौधे, झाड़ियाँ, जानवर और पक्षी पाए जाते हैं।

मुख्य वनस्पति में शामिल हैं:

  • बबूल

  • खेजड़ी

  • सागौन

  • बेर

  • खैर

पशु-पक्षियों में शामिल हैं:

  • तेंदुआ

  • सियार

  • लोमड़ी

  • नीलगाय

  • विभिन्न पक्षियों की प्रजातियाँ जैसे मोर, उल्लू और कठफोड़वा

यह पर्वतमाला राजस्थान और दिल्ली जैसे शहरी इलाकों को रेगिस्तानी हवाओं से भी बचाती है, जिससे यहां के जलवायु संतुलन में मदद मिलती है।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

अरावली पर्वत श्रृंखला का भारत के इतिहास में भी अहम योगदान रहा है। प्राचीन समय में यह शृंखला विभिन्न सभ्यताओं और राजवंशों की सीमा बनी रही। कई ऐतिहासिक दुर्ग और किले इस पर्वतमाला की गोद में बसे हैं, जैसे:

  • कुम्भलगढ़ किला (राजस्थान)

  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग

  • अलवर का किला

  • माउंट आबू का दिलवाड़ा जैन मंदिर

इन सभी स्थलों का सांस्कृतिक, धार्मिक और पर्यटन के दृष्टिकोण से बहुत बड़ा महत्व है।

पर्यटन में योगदान

अरावली पर्वत श्रृंखला पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध है। माउंट आबू, जो राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है, इसी पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है। यहां की ठंडी जलवायु, हरियाली, और धार्मिक स्थलों के कारण हर वर्ष लाखों पर्यटक आते हैं।

कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल:

  • माउंट आबू

  • गुरु शिखर

  • नक्की झील

  • दिलवाड़ा जैन मंदिर

  • सरिस्का टाइगर रिज़र्व (अलवर)

  • सांभर झील (अरावली के निकट)

खनिज संपदा

अरावली पर्वत श्रृंखला भारत की खनिज संपदा का भी प्रमुख स्रोत है। यहां अनेक प्रकार के खनिज पाए जाते हैं जैसे:

  • संगमरमर (मार्बल)

  • चूना पत्थर (Limestone)

  • सीसा (Lead)

  • जस्ता (Zinc)

  • लोहा (Iron)

  • फेल्सपार

  • माइका

इन खनिजों का दोहन आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों को बल देता है, जिससे स्थानीय और राज्य की अर्थव्यवस्था को सहयोग मिलता है।

संकट में अरावली: पर्यावरणीय खतरे

हाल के वर्षों में अरावली पर्वतमाला पर मानवीय गतिविधियों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। अवैध खनन, अतिक्रमण, जंगलों की कटाई और शहरीकरण की वजह से अरावली का पर्यावरण संकट में है।

मुख्य खतरे:

  • भूक्षरण (Soil Erosion)

  • जल संकट

  • जैव विविधता में गिरावट

  • दिल्ली और एनसीआर में बढ़ता वायु प्रदूषण

सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, अरावली की लगभग 30% भूमि में वनस्पति समाप्त हो चुकी है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।

संरक्षण के प्रयास

सरकार और पर्यावरणविदों द्वारा अरावली को बचाने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी अरावली क्षेत्र में अवैध खनन पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं। इसके अलावा अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क, हरियाली अभियान, और वन महोत्सव जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

महत्वपूर्ण पहल:

  • खनन पर नियंत्रण

  • वृक्षारोपण

  • इको-टूरिज्म का विकास

  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी

निष्कर्ष

अरावली पर्वत श्रृंखला केवल एक भौगोलिक संरचना नहीं है, बल्कि यह भारत की धरोहर है। इसका संरक्षण न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए जरूरी है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखने हेतु भी अत्यंत आवश्यक है। यह हमारे लिए एक जागरूकता का विषय है कि हम कैसे अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करें और उन्हें संरक्षित रखने में योगदान दें।

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