एक समय था जब सरिस्का से गायब हो गए थे बाघ अब कहलाता है 'टाइगर हेवन', वीडियो में देखे कैसे बदली कहानी ?

राजस्थान के अलवर जिले की अरावली पहाड़ियों में स्थित सरिस्का टाइगर रिजर्व कभी बाघों के लिए संकट का क्षेत्र बन गया था, लेकिन आज यह एक ऐसी जगह के रूप में उभर चुका है जिसे ‘बाघों का स्वर्ग’ कहा जाता है। इसकी कहानी सिर्फ वन्यजीव संरक्षण की नहीं, बल्कि एक दृढ़ इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक प्रबंधन और मानवीय प्रयासों की प्रेरणादायक मिसाल है। आइए जानते हैं कि कैसे सरिस्का ने बाघों के पुनर्वास और संरक्षण में अपनी खास पहचान बनाई।
बाघों से खाली हो चुका था जंगल
वर्ष 2004 में जब यह खुलासा हुआ कि सरिस्का टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ जीवित नहीं बचा है, तो पूरे देश में हलचल मच गई। वन्यजीव विशेषज्ञों से लेकर पर्यावरणविदों तक, सभी हैरान थे कि एक संरक्षित क्षेत्र से कैसे अचानक बाघ गायब हो सकते हैं। कई जांचों में सामने आया कि अवैध शिकार और निगरानी की कमी इसके मुख्य कारण थे। उस समय यह देश के वन्यजीव संरक्षण तंत्र की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक माना गया।
बाघों की वापसी की ऐतिहासिक योजना
इस संकट ने सरकार, वन विभाग और कई गैर-सरकारी संगठनों को चेताया। इसके बाद भारत में पहली बार किसी बाघ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर पुनर्स्थापित करने की योजना बनाई गई। 2008 में रणथंभौर टाइगर रिजर्व से दो बाघ और एक बाघिन को हेलीकॉप्टर के माध्यम से सरिस्का लाया गया। यह एक जोखिम भरा और ऐतिहासिक कदम था, लेकिन इसे सफलता मिली।
कैसे किया गया बाघों का पुनर्वास?
बाघों के सरिस्का पहुंचने के बाद उन्हें एक विशेष निगरानी में रखा गया। उनकी गतिविधियों पर रेडियो कॉलर और जीपीएस तकनीक से लगातार नजर रखी गई। इसके साथ ही पूरे रिजर्व क्षेत्र में गश्त बढ़ा दी गई, अवैध शिकार रोकने के लिए कई गांवों को विस्थापित कर बाहर बसाया गया। वन रक्षकों को नई ट्रेनिंग दी गई और उन्हें आधुनिक संसाधनों से लैस किया गया।सरिस्का में बाघों के लिए प्राकृतिक भोजन श्रृंखला को भी संतुलित किया गया। चीतल, सांभर, नीलगाय जैसे शाकाहारी जानवरों की संख्या बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएं चलाई गईं, ताकि बाघों को आसानी से शिकार उपलब्ध हो सके। इसके परिणामस्वरूप बाघों का स्वाभाविक जीवन चक्र बहाल हुआ।
आज कैसा है सरिस्का का बाघ संसार?
2025 की स्थिति की बात करें तो सरिस्का टाइगर रिजर्व में अब 27 से अधिक बाघ मौजूद हैं। इनमें कई बाघ-बाघिनें यहां पैदा हुई हैं, जिनका जीवनचक्र सरिस्का में ही शुरू हुआ है। यह इस बात का प्रमाण है कि बाघों ने इस जंगल को अपने घर के रूप में स्वीकार कर लिया है। कई मादा बाघिनों ने यहां सुरक्षित तरीके से शावकों को जन्म दिया है, जो यह दर्शाता है कि रिजर्व अब पूरी तरह बाघों के अनुकूल बन चुका है।
तकनीक और सतर्कता से हुआ चमत्कार
सरिस्का की सफलता में तकनीक की भी अहम भूमिका रही है। जीपीएस आधारित रेडियो कॉलर, ड्रोन सर्विलांस, ट्रैप कैमरा, और नाइट विजन उपकरणों ने वन्यजीव विभाग को बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में बड़ी मदद की। इसके साथ ही वनकर्मियों की नियमित गश्त और जागरूकता कार्यक्रमों ने सरिस्का को एक आदर्श टाइगर रिजर्व बना दिया।
सामुदायिक भागीदारी भी बनी कुंजी
सरिस्का के आसपास बसे ग्रामीण समुदायों को भी बाघ संरक्षण की इस मुहिम में शामिल किया गया। उन्हें वैकल्पिक रोजगार दिए गए जैसे इको-टूरिज्म, गाइडिंग, और हस्तशिल्प निर्माण। इससे न केवल स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ मिला, बल्कि उन्होंने बाघों को अपना दुश्मन मानने के बजाय संरक्षण का प्रतीक मानना शुरू कर दिया।
पर्यटन का बढ़ता आकर्षण
सरिस्का टाइगर रिजर्व अब केवल वन्यजीव प्रेमियों के लिए ही नहीं, बल्कि आम पर्यटकों के लिए भी बड़ा आकर्षण बन चुका है। यहां आने वाले सैलानी बाघों की झलक पाने के लिए विशेष सफारी बुक करते हैं। इससे न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिला है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी नई जान मिली है।
भविष्य की चुनौतियां और योजनाएं
हालांकि सरिस्का की सफलता प्रेरणादायक है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियां भी हैं। जलवायु परिवर्तन, जंगल की आग, पर्यटन का दबाव, और मानव-वन्यजीव संघर्ष अभी भी चिंताजनक मुद्दे हैं। इनसे निपटने के लिए वन विभाग लगातार निगरानी और संरक्षण रणनीतियों को अद्यतन कर रहा है। साथ ही बाघों की जीन विविधता बनाए रखने के लिए अन्य टाइगर रिजर्व से भी समय-समय पर जनसंख्या विनिमय की योजना बन रही है।