चित्तौड़गढ़ के दो स्तंभ जो अक्सर समझ लिए जाते हैं एक, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जाने विजय स्तम्भ और कीर्ति स्तम्भ में अंतर?
भारत की ऐतिहासिक धरोहरें सदियों से न केवल देशवासियों को गौरवान्वित करती रही हैं, बल्कि दुनियाभर से पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित दो बेहद प्रसिद्ध स्तंभ—विजय स्तम्भ और कीर्ति स्तम्भ—भी ऐसी ही ऐतिहासिक संरचनाएं हैं, जिनकी भव्यता और कलात्मकता किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देती है। लेकिन एक बड़ी विडंबना यह है कि आज भी कई लोग इन दोनों स्मारकों को एक ही समझ बैठते हैं। जबकि इनका निर्माणकाल, उद्देश्य, स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्व, सभी एक-दूसरे से भिन्न हैं।
विजय स्तम्भ: पराक्रम और राष्ट्र गौरव का प्रतीक
विजय स्तम्भ, जिसे टॉवर ऑफ विक्ट्री के नाम से भी जाना जाता है, चित्तौड़गढ़ किले के भीतर स्थित एक भव्य और ऊंचा स्मारक है। इसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने 1448 ईस्वी में करवाया था। यह स्तम्भ मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय की स्मृति में बनवाया गया था। यह केवल एक स्थापत्य कृति नहीं, बल्कि राजपूत वीरता और सैन्य पराक्रम का प्रतीक है।
विजय स्तम्भ की ऊंचाई लगभग 37 मीटर (122 फीट) है और इसमें 9 मंज़िलें हैं। इसके बाहरी हिस्से में अत्यंत बारीकी से उकेरे गए देवी-देवताओं, युद्ध दृश्यों और संस्कृत शिलालेखों की मूर्तिकला देखने योग्य है। यह स्मारक राजस्थान की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें हिंदू धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों को सुंदरता से दर्शाया गया है।
कीर्ति स्तम्भ: श्रद्धा, धर्म और जैन संस्कृति की अद्वितीय प्रस्तुति
इसके ठीक विपरीत, कीर्ति स्तम्भ, जिसे टॉवर ऑफ फेम भी कहा जाता है, एक जैन स्मारक है। यह भी चित्तौड़गढ़ किले के भीतर ही स्थित है, लेकिन इसका उद्देश्य पूरी तरह धार्मिक और सांस्कृतिक है। कीर्ति स्तम्भ का निर्माण 12वीं शताब्दी में एक जैन व्यापारी जीजा भगवाण शाह ने करवाया था, जो कि जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।
इसकी ऊंचाई विजय स्तम्भ से कम, लगभग 22 मीटर (72 फीट) है और यह भी बेहद कलात्मक रूप से नक्काशीदार है। इसकी दीवारों पर जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां, शास्त्रों से जुड़े दृश्य और धार्मिक प्रतीक उकेरे गए हैं। यह स्मारक जैन धर्म की आस्था और कलात्मक योगदान का प्रतीक है, और धार्मिक दृष्टि से इसकी अपार महत्ता है।
| विशेषता | विजय स्तम्भ | कीर्ति स्तम्भ |
|---|---|---|
| निर्माण काल | 15वीं शताब्दी (1448 ई.) | 12वीं शताब्दी |
| निर्माता | महाराणा कुम्भा | जैन व्यापारी जीजा भगवाण शाह |
| उद्देश्य | युद्ध विजय का स्मरण | जैन धर्म और श्रद्धा का प्रतीक |
| धार्मिक संबद्धता | हिंदू धर्म और राजपूत इतिहास | जैन धर्म |
| ऊंचाई | लगभग 37 मीटर (122 फीट) | लगभग 22 मीटर (72 फीट) |
| स्थापत्य कला | देवी-देवताओं, युद्ध दृश्य, संस्कृत लेख | तीर्थंकरों, जैन प्रतीक व धार्मिक शिल्प |
| दर्शनीय मंज़िलें | 9 मंज़िलें, छत से चित्तौड़ का सुंदर दृश्य | 7 मंज़िलें, जैन मूर्तिकला का खजाना |
आम भ्रम और सही जानकारी
अक्सर पर्यटक या सामान्य दर्शक चित्तौड़गढ़ किले में इन दोनों स्तंभों को एक ही समझ बैठते हैं, क्योंकि दोनों ही ऊंचे, नक्काशीदार और ऐतिहासिक संरचनाएं हैं। लेकिन इनके बीच का मूल अंतर इनका उद्देश्य और धार्मिक जुड़ाव है। विजय स्तम्भ जहां एक ऐतिहासिक युद्ध की विजयगाथा का प्रतीक है, वहीं कीर्ति स्तम्भ धर्म, तप और त्याग की भावना का स्तंभ है।

