वीडियो में जाने 700 एकड़ में फैले भारत के सबसे विशाल रहस्यमयी किले की कहानी, महाभारत काल से भी है गहरा संबंध

भारत को अगर 'किलों का देश' कहा जाए तो गलत नहीं होगा, क्योंकि प्राचीन काल में राजाओं ने यहां इतने किले बनवाए हैं कि आप उनकी गिनती करते-करते थक जाएंगे। भारत में शायद ही कोई ऐसा राज्य हो जहां कोई ऐतिहासिक किला न हो। आज हम आपको एक ऐसे किले के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे 'भारत का सबसे बड़ा किला' कहा जाता है। इसके निर्माण की कहानी भी महाभारत काल से जुड़ी हुई है, जिसके बारे में शायद ही आप जानते होंगे।इस किले का नाम चित्तौड़गढ़ किला है, जिसे भारत का सबसे बड़ा किला कहा जाता है। यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है। इसे राजस्थान की शान और राजस्थान के सभी किलों का राजा भी कहा जाता है। करीब 700 एकड़ में फैले चित्तौड़ किले को साल 2013 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।
इस किले पर अलग-अलग समय में कई राजाओं ने राज किया है। आठवीं शताब्दी में गुहिल वंश के संस्थापक राजा बप्पा रावल ने यहां शासन किया, जिन्होंने मौर्य वंश के अंतिम शासक मानमोरी को हराकर इस किले पर अधिकार कर लिया। इसके बाद इस पर परमारों और सोलंकियों का शासन रहा। इस पर कई विदेशियों ने भी आक्रमण किया, जिनकी कहानियां इतिहास में अमर हैं। करीब 180 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस किले में कई ऐतिहासिक स्तंभ, स्मारक और मंदिर हैं। विजय स्तंभ के अलावा यहां 75 फीट ऊंचा जैन कीर्ति स्तंभ भी है, जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था। इसके पास ही महावीर स्वामी का मंदिर है। इससे थोड़ा आगे नीलकंठ महादेव का मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि भीम महादेव की इस विशाल प्रतिमा को अपनी भुजाओं में बांधकर रखते थे। इस विशाल किले में प्रवेश करने के लिए कुल 10 दरवाजे हैं। इन सभी को पार करने के बाद ही किले में प्रवेश किया जा सकता है। इन सातों के नाम हैं- पाडन पोल, भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल। पहले द्वार के बारे में कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बहने लगी थी, जिसमें एक पाड़ा (भैंसा) बहता हुआ यहां तक आ गया था। इसी वजह से इस द्वार का नाम पाडन पोल पड़ा। यहां मौजूद हर द्वार की एक अलग कहानी है।
कहा जाता है कि प्राचीन समय में चित्तौड़गढ़ किले में एक लाख से भी ज्यादा लोग रहते थे, जिसमें राजा, रानी, दास और सैनिक शामिल थे। इस महान किले को महिलाओं के लिए प्रमुख जौहर स्थल भी माना जाता है। यहां पहला जौहर 13वीं शताब्दी में राजा रतन सिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान रानी पद्मिनी के नेतृत्व में हुआ था इसके अलावा 16वीं शताब्दी में रानी कर्णावती ने 13000 दासियों के साथ यहां जौहर किया था। उसके कुछ साल बाद रानी फूलकंवर ने हजारों महिलाओं के साथ जौहर किया था। यह भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक है।
हालांकि इस किले का निर्माण किसने और कब कराया, इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसका निर्माण सातवीं शताब्दी में मौर्य वंश के राजा चित्रांगद मौर्य ने कराया था। इसके निर्माण को लेकर एक कहानी यह भी है कि इसका निर्माण महाभारत काल में हुआ था। किवदंती के अनुसार एक बार जब भीम धन की खोज में निकले थे, तो रास्ते में उनकी मुलाकात एक योगी से हुई। भीम ने उनसे चमत्कारी पारस पत्थर मांगा, जिस पर योगी ने कहा कि वह पारस पत्थर तो दे देंगे, लेकिन उन्हें पहाड़ी पर रातों-रात किला बनाना होगा। भीम इस बात के लिए राजी हो गए और अपने भाइयों के साथ किले का निर्माण शुरू कर दिया।
उनका काम लगभग खत्म होने वाला था, किले के दक्षिणी हिस्से पर थोड़ा सा ही काम बचा था। इधर योगी किले का निर्माण तेजी से होता देख चिंतित हो गया, क्योंकि इसके बाद उसे पारस पत्थर भीम को देना पड़ता। इससे बचने के लिए उसने एक उपाय सोचा और अपने साथ रह रहे कुकड़ेश्वर नाम के एक योगी से मुर्गे की तरह बांग देने को कहा, ताकि भीम समझ जाए कि सुबह हो गई है। कुकड़ेश्वर ने वैसा ही किया। अब मुर्गे की बांग सुनकर भीम को गुस्सा आ गया और उसने जमीन पर जोर से लात मारी, जिससे वहां एक बड़ा गड्ढा बन गया। आज लोग इस गड्ढे को लत-लताब के नाम से जानते हैं।