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रणकपुर जैन मंदिर का रहस्य! क्यों कहा जाता है इसे जैन धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ ? वीडियो में देखे इसका इतिहास, वास्तुकला और धार्मिक महत्व

रणकपुर जैन मंदिर का रहस्य! क्यों कहा जाता है इसे जैन धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ ? वीडियो में देखे इसका इतिहास, वास्तुकला और धार्मिक महत्व

राजस्थान की पावन भूमि सिर्फ अपने महलों, किलों और राजाओं के लिए ही नहीं, बल्कि अपने आध्यात्मिक स्थलों और धार्मिक धरोहरों के लिए भी विख्यात है। इन्हीं धार्मिक धरोहरों में एक बेहद अद्भुत और कलात्मक स्थल है – रणकपुर जैन मंदिर, जो जैन धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि स्थापत्य कला का भी एक अनुपम उदाहरण है, जिसकी भव्यता और सुंदरता विश्वभर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।


कहां स्थित है रणकपुर मंदिर?
रणकपुर मंदिर राजस्थान के पाली जिले में स्थित है, जो उदयपुर से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा हुआ है। चारों ओर हरियाली और पहाड़ियों से घिरा यह स्थान एक दिव्य और शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है, जो साधना, ध्यान और आत्मचिंतन के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।

रणकपुर मंदिर का इतिहास
रणकपुर मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में हुआ था। इसे बनवाने का श्रेय एक धनी जैन व्यापारी धरणा शाह को जाता है, जो जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के अनन्य भक्त थे। कहा जाता है कि उन्होंने एक स्वप्न देखा, जिसमें उन्हें इस मंदिर के निर्माण का आदेश मिला। इसके बाद, राणा कुंभा के शासनकाल में इस मंदिर की नींव रखी गई। राणा कुंभा न केवल एक महान शासक थे बल्कि धर्म के संरक्षक भी थे। उन्होंने इस मंदिर के निर्माण के लिए भूमि दान की और इसे पूर्ण सहयोग प्रदान किया।

स्थापत्य की अद्भुत मिसाल
रणकपुर जैन मंदिर अपनी शिल्पकला और स्थापत्य के लिए विश्वविख्यात है। यह मंदिर पूरी तरह से संगमरमर से निर्मित है और इसे बनाने में करीब 50 वर्षों का समय लगा। मंदिर परिसर में कुल 1444 स्तंभ हैं, और सबसे विशेष बात यह है कि ये सभी स्तंभ एक-दूसरे से भिन्न नक्काशीदार हैं। इनमें से कोई भी दो स्तंभ एक जैसे नहीं हैं। इस अद्भुत शिल्पकला को देखकर पर्यटक और कला प्रेमी स्तब्ध रह जाते हैं।इस मंदिर की छतों पर उकेरी गई नक्काशी और गुम्बदों की डिज़ाइनें अत्यंत जटिल और आकर्षक हैं। मुख्य मंदिर के भीतर भगवान आदिनाथ की चारों दिशाओं में मुख वाली विशाल प्रतिमा स्थापित है, जिससे यह मंदिर ‘चतुर्मुखी मंदिर’ के रूप में भी प्रसिद्ध है।

मंदिर का धार्मिक महत्व
रणकपुर मंदिर केवल स्थापत्य दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्थान श्वेतांबर जैन समुदाय के अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और मोक्ष की ओर मार्ग प्राप्त होता है। यहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, विशेषकर महावीर जयंती और पर्वाधिराज पर्युषण जैसे पावन अवसरों पर हजारों की संख्या में जैन अनुयायी यहां एकत्र होते हैं।

शांति और प्रकृति का संगम
रणकपुर मंदिर केवल धर्म का प्रतीक नहीं बल्कि एक प्राकृतिक सौंदर्य का संगम भी है। अरावली की हरियाली और शांत वातावरण इस मंदिर की भव्यता में चार चांद लगा देता है। यह स्थान ध्यान और साधना के लिए एक आदर्श स्थल माना जाता है, जहां पर्यटक और श्रद्धालु मानसिक शांति की खोज में आते हैं।

विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र
रणकपुर मंदिर भारतीय पर्यटकों के साथ-साथ विदेशी सैलानियों के लिए भी अत्यंत आकर्षक स्थल है। यहां आने वाले विदेशी सैलानी भारतीय संस्कृति, धार्मिक सहिष्णुता और प्राचीन कला की गहराई से परिचित होते हैं। मंदिर परिसर में विदेशी आगंतुकों के लिए विशेष गाइड सेवा, शांति व्यवस्था और जानकारियाँ उपलब्ध कराई जाती हैं, जिससे वे इस अद्भुत धरोहर को और अच्छे से समझ सकें।

संरक्षित धरोहर
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) द्वारा रणकपुर मंदिर को एक संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। इसकी संरक्षण और देखभाल के लिए विशेष योजनाएं और प्रयास जारी हैं। मंदिर प्रशासन और स्थानीय लोग भी इस धरोहर की सुरक्षा को लेकर सजग रहते हैं।

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