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अरावली की गोद में बसा सत्ता का शिखर, 2 मिनट के वीडियो में जानिए राष्ट्रपति भवन और इस पर्वत श्रृंखला का अद्भुत संबंध

अरावली की गोद में बसा सत्ता का शिखर, 2 मिनट के वीडियो में जानिए राष्ट्रपति भवन और इस पर्वत श्रृंखला का अद्भुत संबंध

दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है अरावली उत्तर भारतीय पर्वत श्रृंखला। यह पर्वत श्रृंखला 692 किलोमीटर लंबी है और भारत के 4 राज्यों राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली में फैली हुई है। यह पर्वत श्रृंखला गुजरात के खेड़ ब्रह्मा से शुरू होकर राजस्थान के अजमेर और जयपुर से गुज़रती हुई हरियाणा के दक्षिणी हिस्से में प्रवेश करती है और दिल्ली के दक्षिणी हिस्से तक जाती है। दिल्ली तक पहुँचते-पहुँचते इसकी ऊँचाई कम होने लगती है और यह एक मैदानी इलाके में बदल जाता है।


अरावली पर्वत श्रृंखला मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित है। इसमें जरगा पर्वत श्रृंखला, हर्षनाद पर्वत श्रृंखला और दिल्ली पर्वत श्रृंखला शामिल हैं। अरावली में अधिकांश जंगल इसके दक्षिण के पहाड़ों में पाए जाते हैं। उत्तर की पहाड़ियाँ चट्टानी हैं, सिरोही से खेतड़ी तक अरावली दुर्गम है और आगे उत्तर में यह छोटी-छोटी श्रेणियों के रूप में दिल्ली तक फैली हुई है। इसका सबसे ऊँचा शिखर गुरुशिखर सिरोही जिले में ही स्थित है जो 1772 मीटर ऊँचा है। अरावली के पश्चिमी क्षेत्र को मारवाड़ और पूर्वी भाग को मेवाड़ कहा जाता है। इस पर्वत श्रृंखला के आसपास भील जनजाति निवास करती है। इस पर्वत श्रृंखला के केवल दक्षिणी क्षेत्र में ही वन हैं, अन्यथा अधिकांश क्षेत्र रेत और पत्थरों से ढका हुआ है।

अरावली की विशेषताएँ और महत्व
अरावली पर्वत श्रृंखला की अद्भुत विशेषताएँ हैं। यह पर्वत श्रृंखला उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक फैली हुई है। दक्षिण-पश्चिम में नुकीली, तीखी और संकरी पर्वत चोटियाँ पाई जाती हैं। दूसरी ओर, यह श्रृंखला उत्तर-पश्चिमी भारत में वर्षा के सामान्य वितरण को प्रभावित करती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा के कारण, नम हवाएँ इसके समानांतर बहती हैं और बिना रुके हिमालय तक पहुँचती हैं और यही कारण है कि राजस्थान के अधिकांश क्षेत्रों में वर्षा नहीं होती है।

रायसेला पहाड़ी पर राष्ट्रपति भवन
दिल्ली में राष्ट्रपति भवन रायसेला पहाड़ी पर बना है जो अरावली पर्वत श्रृंखला का एक हिस्सा है। इसे इसका उत्तरी छोर कहा जाता है। यह दिल्ली में एकमात्र ऐसी जगह है जहाँ से भूजल रिचार्ज होता है। इसका मतलब है कि घरों और खेतों तक पहुँचने वाला बोरिंग का पानी यहीं से पहुँचता है। इतना ही नहीं, CGWA की रिपोर्ट में इस पूरे इलाके को क्रिटिकल ग्राउंड वाटर रिचार्ज जोन बताया गया है।

रायसीना नाम के पीछे ये है दिलचस्प वजह
क्या आपने कभी सोचा है कि अरावली की पहाड़ियों में बसी इस जगह का नाम रायसीना क्यों पड़ा? इसके पीछे वजह ये है कि साल 1912 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने रायसीना हिल्स पर 'वायसराय हाउस' बनाने का विचार किया था। इस जगह पर 300 परिवार रहते थे जिसे रायसीना के नाम से जाना जाता था। सरकार ने इन रायसीना परिवारों की जमीन अधिग्रहित कर ली और तब से इस जगह का नाम रायसीना पड़ गया। इस पूरी जगह की 4000 एकड़ जमीन पर राष्ट्रपति भवन बना हुआ है।

राष्ट्रपति भवन बनने में 12 साल लगे थे
साल 1911 में अंग्रेजों ने भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने का फैसला किया। इसके बाद साल 1912 में रायसीना पर 'वायसराय हाउस' बनाने का फैसला किया गया। इसके लिए 4 साल का समय तय किया गया था। इसी बीच वर्ष 1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया। इस कारण वायसराय हाउस को बनने में चार साल की जगह 19 साल लग गए। आपको बता दें कि इस इमारत के मुख्य वास्तुकार 'एडविन लैंडसीर लुटियंस' थे। 23 जनवरी 1931 को इसके पूरा होने के बाद 'भारत के वायसराय' लॉर्ड इरविन यहाँ रहने आए। वर्ष 1950 तक इसे 'वायसराय हाउस' कहा जाता था और बाद में इस क्षेत्र का नाम लुटियंस रख दिया गया।

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