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धरना शाह के स्वप्न से शुरू हुई 1444 स्तंभों वाले अद्भुत मंदिर की यात्रा, वीडियो में देखे रणकपुर जैन मंदिर की दिलचस्प निर्माण गाथा 

धरना शाह के स्वप्न से शुरू हुई 1444 स्तंभों वाले अद्भुत मंदिर की यात्रा, वीडियो में देखे रणकपुर जैन मंदिर की दिलचस्प निर्माण गाथा 

राजस्थान के उदयपुर और माउंट आबू के बीच स्थित रणकपुर गांव, आज दुनियाभर के श्रद्धालुओं और सैलानियों के लिए एक विशेष तीर्थस्थल बन चुका है। इसकी प्रसिद्धि का कारण है — रणकपुर जैन मंदिर, जिसे अद्वितीय शिल्पकला, जटिल स्थापत्य और आध्यात्मिकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्व रखता है, बल्कि इसके निर्माण से जुड़ी कहानी भी बेहद प्रेरक और रहस्यमयी है।

एक स्वप्न से शुरू हुई भव्यता की यात्रा

रणकपुर जैन मंदिर की नींव रखने की प्रेरणा का स्रोत बना एक स्वप्न। 15वीं सदी में मेवाड़ राज्य के समय, स्थानीय व्यापारी और धर्मनिष्ठ श्रावक धरना शाह को भगवान आदिनाथ (जैन धर्म के पहले तीर्थंकर) ने स्वप्न में दर्शन दिए। इस स्वप्न में उन्हें निर्देश मिला कि वे एक भव्य मंदिर बनवाएं जो भगवान आदिनाथ की महिमा का प्रतीक बने।धरना शाह ने अपने इस दिव्य स्वप्न को साकार करने का संकल्प लिया और तत्काल उस स्थान की खोज शुरू कर दी, जहां मंदिर का निर्माण होना था। राजस्थान के अरावली पर्वतों की गोद में स्थित रणकपुर गांव को उन्होंने इस दिव्य कार्य के लिए उपयुक्त स्थान माना।

महाराणा कुंभा का सहयोग और धर्म के प्रति सम्मान

जब धरना शाह ने मंदिर निर्माण की योजना बनाई, तो उन्होंने मेवाड़ के तत्कालीन राजा महाराणा कुंभा से सहायता मांगी। महाराणा कुंभा जैन धर्म के प्रति अत्यंत सहिष्णु और धर्मनिष्ठ राजा थे। उन्होंने न केवल भूमि दान में दी बल्कि मंदिर निर्माण में सहयोग और संरक्षण भी दिया। ऐसा कहा जाता है कि महाराणा कुंभा ने इस मंदिर निर्माण में बिना किसी शर्त के सहायता दी, और इस योगदान की स्मृति में मंदिर परिसर के एक शिखर पर उनका नाम भी अंकित है।

मंदिर का निर्माण: वास्तुकला की अद्वितीय मिसाल

रणकपुर जैन मंदिर का निर्माण कार्य 1437 ईस्वी में प्रारंभ हुआ और इसे बनने में लगभग 50 साल लगे। यह मंदिर पूरी तरह से सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता है – इसकी जटिल नक्काशी और स्थापत्य।मंदिर में कुल 1444 संगमरमर की स्तंभ (pillars) हैं और विशेष बात यह है कि इनमें से कोई भी दो स्तंभ एक जैसे नहीं हैं। हर स्तंभ पर अलग-अलग आकृति और नक्काशी की गई है, जो उस काल के शिल्पकारों की अद्भुत प्रतिभा और श्रम का परिचय देती है।इस मंदिर का मुख्य गर्भगृह भगवान आदिनाथ को समर्पित है, जिनकी चार दिशाओं में चार विशाल प्रतिमाएं स्थित हैं। मंदिर का स्थापत्य इस प्रकार किया गया है कि सूर्य की किरणें दिनभर मंदिर के अंदर रोशनी पहुंचाती हैं, जिससे यह आलोकित बना रहता है।

रचियता सोमपुन और निर्माण की चुनौती

धरना शाह ने इस भव्य मंदिर को बनवाने के लिए प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी देपाक सोमपुन को नियुक्त किया। कहा जाता है कि सोमपुन ने मंदिर का ऐसा डिज़ाइन तैयार किया, जिसमें जैन धर्म के सिद्धांतों के साथ प्रकृति और ब्रह्मांड के संतुलन को भी दर्शाया गया है। मंदिर का नक्शा किसी भी समकालीन भवन निर्माण शैली से अलग था, और इसे जैन धर्म के 'सिद्धांत – समता, अहिंसा और सत्य' को ध्यान में रखकर बनाया गया।निर्माण के दौरान कई बार आर्थिक व भौगोलिक कठिनाइयाँ आईं, लेकिन धरना शाह और महाराणा कुंभा की दृढ़ इच्छाशक्ति और जनभागीदारी ने इसे संभव बना दिया।

मंदिर के रहस्य और आस्था से जुड़े चमत्कार

कई मान्यताओं के अनुसार, रणकपुर मंदिर निर्माण के दौरान अनेक चमत्कार भी घटित हुए। कहा जाता है कि मंदिर के कुछ स्तंभों की खुदाई रातोंरात पूर्ण हो जाती थी। श्रमिकों का विश्वास था कि यह कार्य देवशक्तियों द्वारा संपन्न किया जा रहा है।एक मान्यता यह भी है कि मंदिर का निर्माण इतना जटिल था कि उस समय के तकनीकी साधनों से इस स्तर की नक्काशी असंभव थी। यही कारण है कि आज भी यह मंदिर वास्तुशास्त्र और इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए शोध का विषय बना हुआ है।

वर्तमान में रणकपुर मंदिर का महत्व

आज रणकपुर मंदिर न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थल है, बल्कि यह देश-विदेश से आने वाले लाखों पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुका है। भारतीय पुरातत्व विभाग और जैन ट्रस्ट द्वारा इस मंदिर का संरक्षण किया जा रहा है। यहां आने वाले लोग मंदिर की शांतता, उसकी सुंदरता और दिव्यता से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

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