गंगनहर से इंदिरा गांधी नहर तक का सफर, वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखे सबसे बड़ी नहर परियोजना की कहानी

राजस्थान की रेत से प्यास बुझाने वाली जिस नहर ने मरुस्थल में हरियाली की नींव रखी, उसका नाम है गंगनहर, जो बाद में इंदिरा गांधी नहर परियोजना के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह सिर्फ एक सिंचाई नहर नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छा शक्ति, तकनीकी दूरदर्शिता और सामाजिक बदलाव का एक ऐसा उदाहरण है जिसने पश्चिमी राजस्थान की सूरत ही बदल दी।
शुरुआत: जब विचार बना सपना
गंगनहर की नींव 1940 के दशक में पड़ी जब भारत की सिंचाई व्यवस्था को सुधारने की जरूरत महसूस की गई। हरियाणा (तब पंजाब का हिस्सा) और राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों को हरा-भरा बनाने के लिए एक बड़ी योजना बनाई गई जिसमें सतलुज और ब्यास नदियों के जल का उपयोग किया जाना था। यह परियोजना बाद में राष्ट्र निर्माण की रीढ़ साबित हुई।
गंगनहर: पंजाब से राजस्थान तक जल यात्रा
गंगनहर मूलतः पंजाब के फिरोजपुर जिले के हरिके बैराज से निकलती है और राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू, जैसलमेर और बाड़मेर तक विस्तारित होती है। यह नहर करीब 649 किलोमीटर लंबी है और इसे एशिया की सबसे लंबी नहरों में गिना जाता है।इसके पहले चरण में गंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों को सिंचाई की सुविधा दी गई, जिससे उन क्षेत्रों में खेती का स्वरूप ही बदल गया। जहाँ पहले सिर्फ बबूल और झाड़ियों का राज था, वहाँ अब गेहूं, कपास, सरसों और चना जैसी फसलें लहलहाने लगीं।
इंदिरा गांधी की भूमिका: जब गंगनहर बन गई राष्ट्रीय परियोजना
1970 के दशक में जब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं, तब इस नहर को एक नई पहचान मिली। उन्होंने इसे केवल एक राज्य की योजना के रूप में नहीं देखा, बल्कि इसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजना में बदल दिया। Indira Gandhi Nehar Project को 1984 में आधिकारिक रूप से ‘इंदिरा गांधी नहर परियोजना’ नाम दिया गया। यह नामकरण उनके योगदान और दूरदृष्टि को सम्मान देने के लिए किया गया।उनकी सरकार ने राजस्थान को विशेष आर्थिक सहायता दी जिससे नहर का दूसरा और तीसरा चरण तेजी से पूरा किया जा सका। यही कारण है कि लोगों की जुबान पर गंगनहर का नाम धीरे-धीरे इंदिरा गांधी नहर के रूप में घर कर गया।
नहर का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
इंदिरा गांधी नहर के आने से राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में हरियाली की लहर दौड़ पड़ी। किसान आत्मनिर्भर बनने लगे, फसल उत्पादन बढ़ा, पलायन रुका और गाँवों में समृद्धि आई। नहर के जरिए पानी पहुंचने से खेतों में तीन फसलें उगाई जाने लगीं, जो पहले संभव नहीं था।
बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर जैसे अति शुष्क क्षेत्रों में भी नहर ने जीवन की संभावना पैदा की। जल संकट से जूझ रहे गाँवों में पेयजल की व्यवस्था सुधरी, पशुपालन को बढ़ावा मिला और लोगों का जीवनस्तर ऊँचा हुआ।
राजनीतिक संदर्भ: नामकरण पर विवाद और राजनीति
हालांकि नहर का नाम इंदिरा गांधी के नाम पर रखने को लेकर समय-समय पर राजनीतिक विवाद भी उठते रहे हैं। कुछ राजनीतिक दल इसे 'गंगनहर' नाम से ही पुकारने की मांग करते रहे, ताकि इसके मूल स्वरूप और ऐतिहासिक जड़ों को भुलाया न जाए। लेकिन यह भी सच है कि इंदिरा गांधी की सक्रिय भागीदारी और समर्थन के बिना यह परियोजना उस पैमाने पर सफल नहीं हो पाती।
तकनीकी और प्रशासनिक चुनौतियां
इस नहर प्रणाली को बनाए रखना आसान काम नहीं है। हर साल इसकी सफाई, मरम्मत और जल प्रबंधन की चुनौतियाँ सामने आती हैं। समय के साथ जल रिसाव, अवैध कब्जे, और जल वितरण में भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ भी उभरती रही हैं। इसके बावजूद, यह परियोजना आज भी लाखों किसानों की जीवनरेखा बनी हुई है।
भविष्य की दिशा: सतत प्रबंधन की आवश्यकता
आज इंदिरा गांधी नहर को केवल तकनीकी सुधार की नहीं, बल्कि सतत जल प्रबंधन की भी आवश्यकता है। राज्य सरकारें और केंद्र को मिलकर इसके रखरखाव, जल संरक्षण और वितरण प्रणाली को और पारदर्शी बनाना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस नहर से लाभान्वित हो सकें।